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अनोखा तलाक : पत्नी-बच्चे के हिस्से का समय किताब लिखने में बिताया, अदालत ने दस दिन में विदाई का दिया आदेश

पत्नी से तलाक के लिए बीएचयू के हिंदी विभाग के एक प्रोफेसर की दायर याचिका को परिवार न्यायालय की अपर प्रधान न्यायाधीश ममता सिंह ने खारिज कर दिया। अदालत ने उन्हें दस दिन के अंदर पुनः दाम्पत्य जीवन स्थापित करने का फैसला सुनाया।

By saurabh chakravartiEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 10:18 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 10:54 PM (IST)
अनोखा तलाक : पत्नी-बच्चे के हिस्से का समय किताब लिखने में बिताया, अदालत ने दस दिन में विदाई का दिया आदेश
बीएचयू के एक प्रोफेसर की दायर याचिका को परिवार न्यायालय की अपर प्रधान न्यायाधीश ममता सिंह ने खारिज कर दिया।

वाराणसी, जेएनएन। पत्नी से तलाक के लिए बीएचयू के हिंदी विभाग के एक प्रोफेसर की दायर याचिका को परिवार न्यायालय की अपर प्रधान न्यायाधीश ममता सिंह ने खारिज कर दिया। अदालत ने उन्हें दस दिन के अंदर पुनः दाम्पत्य जीवन स्थापित करने का फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में प्रोफेसर कृष्ण मोहन सिंह को आदेश दिया है कि वह अपनी पत्नी को विदा कराकर अपने घर पर लाये और साथ रहकर अपने दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करें।

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प्रोफेसर कृष्ण मोहन सिंह का किदवई नगर,कानपुर निवासिनी किरन रानी सिंह से वर्ष 1994 में विवाह हुआ था। उस वक्त कृष्णमोहन इलाहाबाद में शोधार्थी थे। दस मई 1998 को उनके एक पुत्र शेखर पैदा हुआ। वर्ष 2007 में बीएचयू में रीडर पद पर नियुक्त हुए। प्रोफेसर कृष्ण मोहन ने वर्ष 2012 में पत्नी से तलाक के लिए परिवार न्यायालय में मुकदमा दायर किया। आरोप था कि तीन मई 2012 को उनकी पत्नी परिवार के सभी लोगों से लड़कर मायके चली गई और उन्हें जेल भिजवाने की धमकी दी। पत्नी के व्यवहार व क्रूरता से आजिज आकर उसने तलाक याचिका दाखिल की है। इसके बाद पत्नी ने भी घरेलू हिंसा,दहेज प्रताड़ना और धमकी का मुकदमा दर्ज कराया। मुकदमे की सुनवाई के दौरान परिवार न्यायालय में कृष्ण मोहन ने बयान दिया कि 'मुक्तिबोध' पुस्तक का लेखक है। इस किताब में उसने लिखा है कि पत्नी व बच्चे के हिस्से का समय किताब लिखने में लगा है जिसकी भरपाई नही हो सकती। अदालत ने इसे भावनात्मक अभिव्यक्ति बताते हुए कहा कि दोनों के सम्बंध पुनर्स्थापना की पूरी संभावना है। लेखक अर्थात याची प्रतिदान के रूप में आपसी पति पत्नी के संम्बन्धों को सुधारें व पुनर्स्थापित करे। ऐसी स्थिति में पत्नी को पूरा अधिकार है कि वह अपने पति के साथ रहे और वैवाहिक सम्बन्धो का पुनर्स्थापन हो। इस मामले में पत्नी ने अपनी बीमार माँ से मिलना कहा है जबकि पति ने उससे लड़कर जाना कहा है परंतु यह तथ्य क्रूरता को साबित नही करता। ऐसे में पति की तलाक याचिका खारिज की जाती है और पति को आदेशित किया जाता है कि अपनी पत्नी को दस दिन में विदा कराकर अपने निवास स्थान पर लाये और दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करे।


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