देव दीपावली पर देश के विभिन्न राज्यों से वाराणसी आए पर्यटकों ने देखा भारतीय संस्कृति का अनुपम दृश्य
पर्व देवों का था आयोजन श्रद्धालुओं का। भक्तों के उल्लास और उनकी श्रद्धा-विश्वास का प्रसाद देने देवगण देवलोक से भू पर उतर आए तो पूरा गंगा तट समानांतर बह रही दीप गंगा की दप-दप ज्योति धारा से दमक उठा।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। पर्व देवों का था, आयोजन श्रद्धालुओं का। भक्तों के उल्लास और उनकी श्रद्धा-विश्वास का प्रसाद देने देवगण देवलोक से भू पर उतर आए तो पूरा गंगा तट समानांतर बह रही दीप गंगा की दप-दप ज्योति धारा से दमक उठा। आस्था के इस अलौकिक पर्व पर अनूठी छटा को नेत्रों व हृदय में समाने के लिए सिर्फ बनारस ही नहीं संपूर्ण विश्व धरा का प्रकाश गंगा तट पर सिमट आया। देश के विभिन्न राज्यों और देशों से लोग सपरिवार इस आयोजन को देखने और आंखों तथा हृदय में समेटने के लिए ही नहीं आए थे, बल्कि स्वयं भी इस आयोजन का हिस्सा बन आस्था की अंजुरी देवों को समर्पित करने का पुण्य उन्होंने प्राप्त किया।
आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से सत्यनारायण राव पिछले नौ वर्षाें से सपरिवार बंधु-बांधवों समेत यहां आते हैं, प्रतिवर्ष शिवाला घाट पर उनका परिवार स्थान लेता है और परिवार के सदस्य गंगा स्नान कर आकर्षक रंगोलियां बनाकर उसे दीपों से सजाकर विधिवत पूजन-अर्चन कर पूरी दैवीय छटा को अपने मानस में संजोते हैं। उनके परिवार की दीप्ति अपनी मां व अन्य बड़ी महिलाओं के साथ शिवलिंग के स्वरूप को अल्पना का आकार देने में व्यस्त रहीं। इसी तरह काशी दुर्गोत्सव समिति के तत्वावधान में बंगाल से आने वाले परिवार भी उसी घाट पर फूलों से रंगोली बनाते मिले। तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात अनेक राज्यों के लोग सपरिवार गंगा तट पर इस आयोजन का हिस्सा बन स्वयं को सौभाग्यशाली मान श्रद्धा से नतमस्तक थे। उधर जर्मनी में आइआइएम के छात्र बोस्निया निवासी माहेर को आइआइएम बंगलुरु में एक वर्ष के लिए अध्ययन का मौका मिला तो स्वयं को भारतीय संस्कृति के इस अनूठे पर्व और उत्सव को देखने तथा भारतीय संस्कृति को जानने की उत्कंठा को नहीं राेक पाए। वह तीन दिन से यहां अस्सी घाट पर एक लाज में कमरा लेकर पड़े हुए हैं। इसी तरह घाट पर अनेक देशों के निवासी इस अनुपम छटा को अपने कैमरों में कैद करने को आतुर दिखे।