Tokyo Olympics : खेल में पहला अवसर होता है आखिरी मौका, वाराणसी में आने पर बोले ललित उपाध्याय
टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारतीय टीम ने हाकी को पुनर्जीवित कर दिया। लीग मैच की शिकस्त से उबरते हुए युवाओं ने जिस दिलेरी के साथ प्रदर्शन किया वह इतिहास में दर्ज हो गया। हर सदस्य ने अपनी पूरी कोशिश की। टीम कांस्य पदक के साथ लौटी जरूर है।
वाराणसी, मुहम्मद रईस। टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारतीय टीम ने हाकी को पुनर्जीवित कर दिया। लीग मैच की शिकस्त से उबरते हुए युवाओं ने जिस दिलेरी के साथ प्रदर्शन किया, वह इतिहास में दर्ज हो गया। हर सदस्य ने अपनी पूरी कोशिश की। टीम कांस्य पदक के साथ लौटी जरूर है, लेकिन पेरिस ओलिंपिक में गोल्ड जीतने के संकल्प के साथ। भारतीय टीम में शामिल बतौर फारवर्ड प्लेयर ललित उपाध्याय बुधवार को अपने गृह जनपद पहुंचे। बाबा दरबार पहुंचकर उन्होंने अपना मेडल स्पर्श कराया। वहीं एयरपोर्ट से लेकर भगतपुर गांव, सिगरा स्टेडियम और यूपी कालेज में उनका भव्य अभिनंदन किया गया। इस दौरान उन्होंने बनारस से लेकर ओलिंपिक तक का अपना सफर जागरण संवाददाता से साझा किया। प्रस्तुत है प्रमुख अंश...।
-ओलिंपिक के लिए जाते समय दिमाग में क्या चल रहा था
- मेडल मैच के दौरान टीम की मनोदशा क्या थी
- सबसे मजबूत टीम कौन सी थी
- अगला लक्ष्य क्या निर्धारित किया है
- सात माह बाद बनारस आए हैं, घरवालाें को कितना समय देंगे
- हाकी के प्रोत्साहन को सरकार और खेल संघ से क्या मांग है
- युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे
- जितना भी हमारी सरकार हमारे लिए कर रही है, वो पहले नहीं हुआ करता था। प्रधानमंत्री मोदी व सीएम योगी जी ने टीम के हारने के बाद भी फोन करके प्रोत्साहित किया। यह इतिहास में पहली बार हुआ, शायद इसी कारण टीम ने इतिहास भी रचा। युवा खेलें, बड़ा सपना देखें और देश के लिए ज्यादा से ज्यादा मेडल लाएं। मेहनत इतना करें कि किसी मदद की जरूरत ही न पड़े।