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Tokyo Olympics : खेल में पहला अवसर होता है आखिरी मौका, वाराणसी में आने पर बोले ललित उपाध्याय

टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारतीय टीम ने हाकी को पुनर्जीवित कर दिया। लीग मैच की शिकस्त से उबरते हुए युवाओं ने जिस दिलेरी के साथ प्रदर्शन किया वह इतिहास में दर्ज हो गया। हर सदस्य ने अपनी पूरी कोशिश की। टीम कांस्य पदक के साथ लौटी जरूर है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 12 Aug 2021 06:20 AM (IST)Updated: Thu, 12 Aug 2021 06:20 AM (IST)
Tokyo Olympics : खेल में पहला अवसर होता है आखिरी मौका, वाराणसी में आने पर बोले ललित उपाध्याय
घर पहुंचते ही ललित ने मां को गले लगा लिया।

वाराणसी, मुहम्‍मद रईस। टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारतीय टीम ने हाकी को पुनर्जीवित कर दिया। लीग मैच की शिकस्त से उबरते हुए युवाओं ने जिस दिलेरी के साथ प्रदर्शन किया, वह इतिहास में दर्ज हो गया। हर सदस्य ने अपनी पूरी कोशिश की। टीम कांस्य पदक के साथ लौटी जरूर है, लेकिन पेरिस ओलिंपिक में गोल्ड जीतने के संकल्प के साथ। भारतीय टीम में शामिल बतौर फारवर्ड प्लेयर ललित उपाध्याय बुधवार को अपने गृह जनपद पहुंचे। बाबा दरबार पहुंचकर उन्होंने अपना मेडल स्पर्श कराया। वहीं एयरपोर्ट से लेकर भगतपुर गांव, सिगरा स्टेडियम और यूपी कालेज में उनका भव्य अभिनंदन किया गया। इस दौरान उन्होंने बनारस से लेकर ओलिंपिक तक का अपना सफर जागरण संवाददाता से साझा किया। प्रस्तुत है प्रमुख अंश...।

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-ओलिंपिक के लिए जाते समय दिमाग में क्या चल रहा था

- खिलाड़ी को यह पता नहीं होता कि वो अगला ओलिंपिक खेल पाएगा या नहीं, क्योंकि खेल में 'फर्स्ट अपार्च्युनिटी लास्ट चांस' होती है। शाहिद सर, विवेक भैया, राहुल भैया के बाद मुझे मौका मिला था। 1980 के बाद से कोई मेडल नहीं आया था। दिमाग में यही चल रहा था कि कुछ नहीं हुआ तो लोग यही कहेंगे कि सिर्फ ओलिंपियन होकर चले आए। मगर सोच ये थी कि कुछ ऐसा कर गुजरना है कि देश का, प्रदेश का और अपने लोगों का सम्मान बढ़े। मेरा सौभाग्य रहा कि मैं ऐसा कर पाया।

- मेडल मैच के दौरान टीम की मनोदशा क्या थी

- सेमीफाइनल में हार के बाद जब कांस्य पदक के लिए मैच चल रहा था तो हर एक के जेहन में यही था हम 40 साल बाद सेमीफाइनल खेले। इतना दूर आने के बाद अगर हार गए तो यही कहा जाएगा कि भारतीय हाकी टीम केवल प्रतिभाग करने गई थी। ऐसे में यहां से कुछ करके ही जाना है। किसी भी तरह हाकी को उपर लाना है। ईश्वर की कृपा रही कि हमने कर दिखाया।

- सबसे मजबूत टीम कौन सी थी

- ओलिंपिक से पहले आप कहते तो मान सकता था, क्यूंकि अभी भारतीय टीम की विश्व रैंकिंग नंबर-3 आ गई है। यह दस साल में पहली बार ऐसा हुआ है। अब यह नहीं कहा जा सकता कि हम अंडरडाग हैं। जितने भी टीमों से अभी हारे हैं, उन्हें ओलिंपिक से पहले हरा कर आए थे। चाहे वर्ल्ड ओलिंपिक चैंपियनशिप में अर्जेंटीना हो या वर्ल्ड लीग में आस्ट्रेलिया। ओलिंपिक में आस्ट्रेलिया से 7-0 से हार हमारे लिए 'वेकअप काल' थी कि यहां कोई टीम कमजोर नहीं है, सब बराबर हैं।

- अगला लक्ष्य क्या निर्धारित किया है

- अगले वर्ष होने वाले एशियन गेम्स व कामनवेल्थ पर ध्यान केंद्रित करना है। एशियन गेम्स में मेडल लाएंगे तो सीधे अगले ओलिंपिक के लिए टीम क्वालिफाई कर जाएंगे। इस बार कांस्य से संतोष करना पड़ा है, लेकिन टीम अगली बार गोल्ड लाने को जी-जान लगा देगी।

- सात माह बाद बनारस आए हैं, घरवालाें को कितना समय देंगे

- यहां आकर सबसे पहले मैंने बाबा विश्वनाथ का दर्शन किया। मुझे नहीं लगता कि परिवारवालों को ज्यादा समय दे पाउंगा, क्योंकि जितने लोगों ने अपना प्यार बरसाया है कोशिश होगी कि सभी को थोड़ा-थोड़ा समय जरूर दूं। हाकी को मैंने उम्मीद जरूर दी है, लेकिन इसे बनारस के लोगों ने ही जिंदा रखा है।

- हाकी के प्रोत्साहन को सरकार और खेल संघ से क्या मांग है

- अभी तक तो किसी चीज की कमी नहीं होने पाई है। हमारी बस यही गुजारिश है कि खिलाड़ियों को इसी तरह प्रोत्साहित करते रहें। उन्हें इस तरह का मंच मिले कि किसी प्रकार की कमी होने पर सीधा संवाद स्थापित किया जा सके। खेल को बढ़ावा देने के लिए यह जरूरी है, क्योंकि बंदा चेंज होता रहेगा और मेडल लगातार आते रहने चाहिए।

- युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे

- जितना भी हमारी सरकार हमारे लिए कर रही है, वो पहले नहीं हुआ करता था। प्रधानमंत्री मोदी व सीएम योगी जी ने टीम के हारने के बाद भी फोन करके प्रोत्साहित किया। यह इतिहास में पहली बार हुआ, शायद इसी कारण टीम ने इतिहास भी रचा। युवा खेलें, बड़ा सपना देखें और देश के लिए ज्यादा से ज्यादा मेडल लाएं। मेहनत इतना करें कि किसी मदद की जरूरत ही न पड़े।


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