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जौनपुर में शह-मात की बिछी सियासी बिसात, जानिए सभी विधानसभा सीटों की स्थिति

भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहे शीराज-ए-हिंद जौनपुर का स्वतंत्र भारत में अलग ही सियासी मिजाज रहा है। यहां जनसंघ के संस्थापक पं. दीनदयाल उपाध्याय व कांग्रेस के दिग्गज नेता पं. कमलापति त्रिपाठी भी चुनाव लड़ चुके हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 05:02 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 05:02 PM (IST)
जौनपुर में शह-मात की बिछी सियासी बिसात, जानिए सभी विधानसभा सीटों की स्थिति
भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहे 'शीराज-ए-हिंद' जौनपुर का स्वतंत्र भारत में अलग ही सियासी मिजाज रहा है।

जौनपुर, जागरण संवाददाता। शर्की सल्तनत में भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहे 'शीराज-ए-हिंद' जौनपुर का स्वतंत्र भारत में अलग ही सियासी मिजाज रहा है। यहां जनसंघ के संस्थापक पं. दीनदयाल उपाध्याय व कांग्रेस के दिग्गज नेता पं. कमलापति त्रिपाठी भी चुनाव लड़ चुके हैं। सियासत में राजे-रजवाड़ों का भी प्रभावी दखल रहा है। 2017 के चुनाव में जिले की कुल नौ में से पांच सीटें जीतकर भाजपा गठबंधन ने बढ़त हासिल की थी तो तीन सीटें सपा व एक बसपा की झोली में गई थी। जौनपुर में गर्म हो चुकी सियासत की बारीकियां बता रही है आनन्द स्वरूप चतुर्वेदी की यह रिपोर्ट...।

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54.09 फीसद मतदान वर्ष 2012 का चुनाव
58.73 फीसद मतदान वर्ष 2017 का चुनाव
34,80,774 मतदाता जौनपुर जिले में

1- बदलापुर - त्रिकोणीय मुकाबले के आसार

क्षेत्र की विशेषताएं : स्वातंत्र्य समर में इस क्षेत्र के बलिदानियों ने महत योगदान किया। प्राचीन गौरीशंकर धाम व करसूलनाथ धाम।

राजनीतिक इतिहास : यह सीट 2012 में खुटहन, गढ़वारा व आंशिक रारी विधानसभा को काटकर अस्तित्व में आई। यहां हुए दो चुनावों में सपा से ओम प्रकाश बाबा दुबे व भाजपा से रमेश चंद्र मिश्र विधायक बने।

सामाजिक परिदृश्य : ब्राह्मण मतदाताओं की बहुलता। अनुसूचित एवं पिछड़ी जाति के मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।

मौजूदा परिदृश्य : इस बार किसका पलड़ा भारी होगा, यह प्रत्याशियों की घोषणा के बाद ही स्पष्ट कहा जा सकता है, लेकिन भाजपा, सपा और बसपा सीट पर निगाह जमाए हुए हैैं। जातीय समीकरण व विकास कार्य भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। यहां कुल मतदाता 3,48,839 हैं। 

2- जौनपुर - विपक्ष के समक्ष ध्रुवीकरण रोकने की चुनौती

क्षेत्र की विशेषताएं: जिला मुख्यालय। पूर्वांचल विश्वविद्यालय, टीडी पीजी कालेज, राज पीजी कालेज। ऐतिहासिक शाही किला, शाही पुल, अटाला मुस्जिद, बड़ी मस्जिद, लाल मस्जिद के साथ शीतला चौकियां धाम।

राजनीतिक इतिहास : क्षेत्र से कांग्रेस को छह बार जीत मिल चुकी है। पं. कमलापति त्रिपाठी, हरगोविंद सिंह कांग्रेस से विधायक रह चुके। भगवा खेमे से राजा यादवेंद्र दत्त दुबे यहां से नुमाइंदगी कर चुके हैं। यहां पांच बार जनसंघ-भाजपा को जीत मिल चुकी है।

सामाजिक समीकरण : अल्पसंख्यक मतदाताओं की बहुलता के लिहाज से सपा और कांग्रेस दोनों इस सीट को अपने लिए मुफीद समझती हैं, लेकिन 2017 के चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी नदीम जावेद अपनी सीट बरकरार रखने में विफल रहे।

मौजूदा परिदृश्य : इस बार के चुनाव में भाजपा के समक्ष अगड़ों-पिछड़ों के जातिगत समीकरण को साधते हुए कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है तो विपक्ष मतों का ध्रुवीकरण कर अपनी सीट वापस लेने की रणनीति बना रहा है। यहां कुल मतदाता 4,28,336 हैं। 

3- जफराबाद - रोमांचक रण में सीधी टक्कर के आसार

क्षेत्र की विशेषताएं : ऐतिहासिक त्रिलोचन महादेव मंदिर, सई-गोमती संगम स्थल, बाबा जोगीबीर समाधिस्थल, जफराबाद जंक्शन।

राजनीतिक इतिहास : नए परिसीमन के बाद 2012 के चुनाव में अस्तित्व में आए इस विधानसभा क्षेत्र में हुए दो चुनावों में पहली बार सपा तो दो दूसरी बार भाजपा का झंडा लहराया। पहले इसका अधिकांश भूभाग तत्कालीन बयालसी विस क्षेत्र का हिस्सा रहा। इस क्षेत्र से पूर्व मंत्री उमानाथ सिंह विधायक चुने जाते रहे। सीट पर कांग्रेस का भी दबदबा रहा तो बसपा ने भी जीत दर्ज की थी।

सामाजिक समीकरण : क्षत्रिय मतदाता इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाते हैैं।

मौजूदा परिदृश्य : 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां मुख्य मुकाबला भाजपा व सपा के बीच रहा। हालांकि मोदी लहर में सपा अपनी यह सीट नहीं बचा सकी। इस बार भी यहां सीधी टक्कर के आसार दिख रहे हैं। यहां कुल मतदाता 3,92,888 हैं। 

4- मछलीशहर (सु.) - यहांं आज तक नहीं खिला 'कमल'

क्षेत्र की विशेषताएं : दियांवा नाथ महादेव मंदिर, नगर पंचायत, तहसील व अस्पताल।

राजनीतिक इतिहास : 1952 से 2007 तक यह सीट सामान्य थी। 2012 में परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। इसके बाद से लगातार समाजवादी पार्टी का ही कब्जा है। भाजपा को जीत नसीब नहीं हुई।

सामाजिक समीकरण : पिछड़े वर्ग के सर्वाधिक मतदाता हैैं। अनुसूचित जातियों व सवर्ण मतदाताओं की भूमिका भी खास होती है।

मौजूदा परिदृश्य : इस बार यहां लड़ाई कांटे की है। अखिलेश यादव की दो दिवसीय यात्रा के बाद सपा का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट के लिए भाजपा ने भी दम लगा दिया है। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के साथ योगी आदित्यनाथ नाथ की सभा के बाद परिदृश्य बदलने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। यहां कुल मतदाता 3,57,038 हैं।

5- केराकत - विकास का मुद्दा रहा प्रभावी

क्षेत्र की विशेषताएं : गोमती तट पर स्थित यह क्षेत्र मछलीशहर लोकसभा सीट का सबसे बड़ा विधानसभा क्षेत्र है। हरिहरपुर के अघोर संत बाबा कीनाराम की समाधि व तपस्थली भी यहीं है।

राजनीतिक इतिहास : यहां सबसे ज्यादा सात बार विधायक कांग्रेस के चुने गए। उसके बाद भाजपा के। बसपा और सपा से भी विधायक जीते। पिछले तीन बार के चुनाव में एक-एक बार बसपा, सपा और भाजपा की जीत हुई।

सामाजिक समीकरण : जनता ने विकास के मुद्दे पर सभी को बारी-बारी से परखा।

मौजूदा परिदृश्य : विकास का मुद्दा यहां हमेशा प्रभावी रहा है। जनता किसे अपना मत देगी, यह 10 मार्च को ही पचा चलेगा। इस बार भी यहां विकास का ही मुद्दा हावी है। यहां कुल मतदाता 4,14,291 हैं। 

6- मल्हनी - सपा का गढ़ भेदने की चुनौती

क्षेत्र की विशेषताएं : माधोपट्टी 'अफसरों के गांव' के नाम से प्रसिद्ध है। ख्यात विज्ञानी डा. लालजी सिंह द्वारा स्थापित जीनोम फाउंडेशन कलवारी, शहीद स्मारक स्थल हैदरपुर, साईनाथ मंदिर, कृषि विज्ञान केंद्र।

राजनीतिक इतिहास : यह क्षेत्र वर्ष 2012 में अस्तित्व में आया। नवसृजित मल्हनी में पूर्ववर्ती रारी विधानसभा क्षेत्र के अधिकांश भूभाग को जोड़ा गया। यहां उपचुनाव समेत अब तक हुए तीन चुनावों में सपा का झंडा बुलंद रहा है। शुरुआती दोनों में सपा के कद्दावर नेता पारसनाथ यादव ने प्रतिनिधित्व किया तो उनके निधन के बाद उपचुनाव में बाजी उनके बेटे लकी यादव के हाथ रही।

सामाजिक समीकरण : यादव मतदाताओं की बहुलता है। पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की भी बड़ी संख्या है। यहां क्षत्रिय, ब्राह्मण व अनुसूचित जाति के मतदाता भी सियासी समीकरण प्रभावित करने में सक्षम हैं।

मौजूदा परिदृश्य : जीत की हैट्रिक बनाने वाली सपा का मुख्य मुकाबला हर बार निर्दलीय धनंजय सिंह से ही हुआ है। गठबंधन के इस दौर में सपा के मुकाबले में किस दल से कौन प्रत्याशी सपा को चुनौती देने उतरेगा, यही चर्चा है। यहां कुल मतदाता 3,73,159 हैं।

7- मडिय़ाहूं - पिछड़े क्षेत्र में विकास हो मुद्दा तो बने बात

क्षेत्र की विशेषताएं : जवाहर नवोदय विद्यालय, अजोशी महावीर मंदिर, कबीर मठ, सिधवन औद्योगिक क्षेत्र।

राजनीतिक इतिहास : यहां 1969 में जनसंघ के जगन्नाथ राव की जीत के बाद से यह क्षेत्र भगवा खेमे के लिए सूखा ही रहा। 2017 के चुनाव में भाजपा-अपना दल (एस) गठबंधन प्रत्याशी के रूप में अद की डा. लीना तिवारी ने हार का सिलसिला तोड़ा।

सामाजिक समीकरण : विकास की दृष्टि से पिछड़े इस क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का बाहुल्य है। अगड़ों व बहुसंख्यक कुर्मी मतदाताओं की जुगलबंदी समीकरण को बहुत हद तक प्रभावित करती है।

मौजूदा परिदृश्य : भगवा खेमा अगड़ों-पिछड़ों की जुगलबंदी कायम रखने को जी-जान से जुटा है। उधर, मुंगराबादशाहपुर की निवर्तमान विधायक सुषमा पटेल ने बसपा छोड़कर सपा का हाथ थाम लिया है। सपा इस कवायद से वापसी की तैयारी में है। यहां कुल मतदाता 3,35,722 हैं। 

8- मुंगराबादशाहपुर - त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना

क्षेत्र की विशेषताएं : प्राचीन गौरीशंकर धाम सुजानगंज, दौलतिया हनुमान मंदिर, सतहरिया औद्योगिक क्षेत्र।

राजनीतिक इतिहास : 2012 में नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए नवसृजित इस क्षेत्र में पहली बार भाजपा की सीमा द्विवेदी यहां से विधायक चुनी गईं। मोदी लहर के बावजूद 2017 में वह अपनी जीत कायम नहीं रख सकीं और बसपा की सुषमा पटेल ने उन्हें परास्त कर दिया। हालांकि अब सपा में शामिल होकर सुषमा ने बसपा को करारा झटका दिया है।

सामाजिक समीकरण : इस क्षेत्र में ब्राह्मण व कुर्मी मतदाता जीत-हार के समीकरण को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। क्षत्रिय व अनुसूचित जाति के मतदाताओं की भी अहम भूमिका होती है।

मौजूदा परिदृश्य : यहां फिलहाल मुख्य मुकाबला भाजपा, सपा व बसपा के बीच होने की संभावना दिख रही है। हालांकि तस्वीर प्रत्याशियों की घोषणा के बाद साफ होगी। यहां कुल मतदाता 3,85,480 हैं। 

9- शाहगंज - 2002 से कायम है सपा का दबदबा

क्षेत्र की विशेषताएं : पूर्वांचल की बड़ी गल्ला मंडी, शाहगंज जंक्शन, पीर शाह बाबा, बुढिय़ा माई मंदिर।

राजनीतिक इतिहास : 2012 में नए परिसीमन के बाद इस क्षेत्र को सुरक्षित से मुक्त कर सामान्य सीट कर दिया गया। पूर्व राज्यपाल रहे माता प्रसाद कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में यहां से लगातार पांच बार विधायक रहे। 2002 से यहां लगातार सपा का दबदबा है। सामान्य सीट होने पर सपा के शैलेंद्र यादव ललई यहां से पिछले दोनों चुनाव जीते हैं।

सामाजिक समीकरण : अल्पसंख्यक, यादव मतदाताओं की एकजुटता जीत-हार के समीकरण बनाती है। सवर्ण व अनुसूचित जाति के मतदाता भी प्रभावी हैं। निषाद व राजभर समाज की भी अहम भूमिका होती है।

मौजूदा परिदृश्य : अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुझान समाजवादी पार्टी की ओर रहा है। हालांकि उसमें सेंधमारी को ओवैसी की पार्टी से जुड़े लोग लगे हैं। सुभासपा का समर्थन सपा के लिए मुफीद साबित हो सकता है। भाजपा भी इस बार सपा का गढ़ तोडऩे की जुगत में है। यहां कुल मतदाता 4,01,222 हैं। 


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