लोक आस्था का महापर्व : छठ में आधुनिकता नहीं देसी परंपराओं और अंदाज का रहता है बोलबाला
सूर्य उपासना के इस पर्व का सीधा मतलब सूर्य से अपने लिए छह ऊर्जा ग्रहण करना है। सबसे प्राचीन वेद ऋगवेद में भी छठ का जिक्र आता है। वैदिक काल में ऋषि भोजन से दूर रह कर सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने लिए यह व्रत करते थे।
बलिया, जागरण संवाददाता। छठ की पवित्रता और संस्कार पर भूमंडलीकरण का असर नहीं पड़ा है। दीपावली में जहां चाइनीज बल्बों व पटाखों की धूम रहती है, छठ में परंपरा व पवित्रता को महत्व दिया जाता है। मिट्टी के चूल्हे, आम की लकड़ी, जाते में पीसे गए गेहूं के आटे, गुड़ और चावल के अयपन का कोई विकल्प नहीं होता। शहर में अब घरों में जाता नहीं के बराबर है। हर मोहल्ले में आटा चक्की की धुलाई कर छठ प्रसाद के लिए गेहूं की पिसाई की जाती है। पुण्य कमाने के लिए मिल मालिक प्रसाद का गेहूं मुफ्त भी पीसते हैं। लोक आस्था का महापर्व छठ के साथ हर्षोल्लास के अलावा कई रहस्यों को भी समेटे हुए है।
अध्यात्म और योग के मेल का उदाहरण भी यह पर्व है। सूर्य उपासना के इस पर्व का सीधा मतलब सूर्य से अपने लिए छह ऊर्जा ग्रहण करना है। सबसे प्राचीन वेद ऋगवेद में भी छठ का जिक्र आता है। वैदिक काल में ऋषि भोजन से दूर रह कर सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने लिए यह व्रत करते थे। छठ का महात्म महाभारत काल में भी मिलता है। कहा जाता है कि पांडवों के वनवास के समय द्रौपदी ने भी सूर्य की उपासना की थी। कर्ण भी छठ व्रत करते थे।
मार्कण्डेय पुराण में भी आता है जिक्र
आचार्य पंडित ओमप्रकाश चौबे ने बताया कि मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छह दिनों के बाद भी इन्हीं देवी की पूजा करके बच्चे के स्वस्थ, सफल और दीर्घ आयु की प्रार्थना की जाती है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी मिलता है, जिनकी नवरात्र की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।
हर फल भगवान के नाम
छठ व्रत के दौरान पवित्रता और संस्कार की झलक हर घर-आंगन में दिखती है। मान्यता है कि छठ व्रत के दौरान की हर फल-सब्जी भगवान सूर्य की देन है। पहला हक सूर्य देव और उनके उपासकों का है। प्रथम अर्ध्य के दिन लोग बाजार से खरीद कर फल तक सेवन नहीं करते। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन का फल भगवान सूर्य देव के लिए है। उनकी पूजा संपन्न होने बाद व्रतियों के पारण तक फल के सेवन से परहेज करते हैं।