बभनियांव गांव में सातवें ट्रेंच की खोदाई के दौरान मिला मिट्टी का मनका, आठवें ट्रेंच की खोदाई शुरू
बभनियांव गांव में लॉकडाउन के बाद चौथे दिन शुक्रवार को पुरातत्व विभाग की टीम ने सातवें ट्रेंच की खोदाई की। इसमें शुंग काल के ही सुपारी की तरह मिट्टी से बना गुरिया (मनका) मिला।
वाराणसी, जेएनएन। बभनियांव गांव में लॉकडाउन के बाद चौथे दिन शुक्रवार को पुरातत्व विभाग की टीम ने सातवें ट्रेंच की खोदाई की। इसमें शुंग काल के ही सुपारी की तरह मिट्टी से बना गुरिया (मनका) मिल रहा है। इसके बाद वहां पहले का डिपाजिट नहीं मिला। दिक्कत होने की वजह से उक्त ट्रेंच को छोड़कर टीम ने आठवें ट्रेंच की खोदाई शुरू कर दी। बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. ओंकारनाथ सिंह और प्रो. अशोक सिंह ने बताया कि बरसात शुरू होने से पहले छठी शताब्दी ईशा पूर्व (गौतम बुद्ध काल) करीब 2500 साल पूर्व की संस्कृति का पता लगाने के लिए खोदाई की जा रही है।
बताया आठवें ट्रेंच की खोदाई से लौह काल व उस काल से पहले के बसे लोगों के बारे में जानने का प्रयास किया जा रहा है। बरसात का मौसम भी है और समय कम है इसलिए दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन प्रयास जारी है। कहा ट्रेंच की खोदाई निचले सतह से की जाती है, ताकि प्रारंभिक या पहले के लोगों के बसाव का कालखंड का पता लगाया जा सके। खोदाई से पता चला कि यहां की जमीन पानी की लहरों की तरह असमतल है। वहीं पहले ट्रेंच में जटाधारी शिवलिंग के अरघे के नीचे मिले पत्थर के आधार के विस्तार का पता लगाने के लिए शनिवार से खोदाई शुरू की गई।
गुप्तकालीन मंदिरों में शिखर का लोप
बता दें कि फरवरी और मार्च माह में बभनियांव गांव मे पुरातत्व विभाग की टीम ने छह ट्रेंच की खुदाई की थी, जिसमें सदियों पुरानी शिवलिंग व अन्य मूर्तियां पाई गई थी। कोरोना महामारी के चलते बीएचयू की पुरातत्व विभाग की टीम ने खुदाई का काम 20 मार्च को बंद कर दिया था। गर्भ गृह के ठीक बीच में मिला मुख आकृति वाला जटाधारी शिवलिंग अब नीचे से और भी चौड़ा व विशाल हो गया है। प्रो. अशोक कुमार सिंह के मुताबिक आरंभिक गुप्त कालीन मंदिरों में शिखर का लोप रहता था। शिखर का उल्लेख बाद के कालखंडों में द्रविड़, नागर व बेसर शैली के मंदिरों में ही प्राय: देखा जाता है। गुप्तकालीन मंदिर की छत सपाट या खुले रहते थे। प्रो. सिह ने बताया कि उत्खनन में गर्भ गृह के चारों कोने स्पष्ट दिख रहे हैं। वहीं, इसके एक कोने पर मिले स्तंभ गर्त पर ही मंदिर स्थित रहा होगा। यह प्रमाण गुप्तकाल के ही मंदिर होने के संकेत दे रहे हैं।