तंत्र के गण : सरस्वती के वरद पुत्रों ने पूर्वांचल में बहाई ज्ञान की गंगा, महामना मदन मोहन की राह अपनाई
राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को तारने के लिए भगीरथ अपने तप से गंगा को धरा पर लाए कुछ उसी तरह पूरब की गरीब-गुरबा आबादी का भविष्य संवारने के लिए वाराणसी में सरस्वती के कई वरद पुत्र सामने आए।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को तारने के लिए भगीरथ अपने तप से गंगा को धरा पर लाए कुछ उसी तरह पूरब की गरीब-गुरबा आबादी का भविष्य संवारने के लिए सरस्वती के कई वरद पुत्र सामने आए। पूर्वांचल में अशिक्षा का अंधियारा छांटने के इस अनुष्ठान में योग आहुति का सिलसिला देश आजाद होने के बाद शुरू हुआ लेकिन बनारस ने परतंत्र भारत में ही यह उपक्रम शुरू कर दिया था। उसमें भी दूरदर्शी सोच समाहित थी कि जब देश स्वतंत्र होगा तो इन शिक्षण संस्थानों से पढ़-लिखकर निकला युवा भविष्य की चुनौतियों से निबट लेगा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर महामना पं. मदन मोहन मालवीय ने राह दिखाई तो भारत रत्न शिवप्रसाद गुप्त ने काशी विद्यापीठ व भिनगा राज राजर्षि उदय प्रताप जूदेव ने बड़ा योगदान दिया। आज उनके द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान हजारों-हजार युवाओं को करियर का आसमान दे रहे हैं। ये सिर्फ काशी ही नहीं समूचे पूर्वांचल में शिक्षा की किरणें बांट रहे हैं। आजादी के 75 वर्षों में इनका विस्तार होता गया। आज बनारस में पांच विश्वविद्यालय, चिकित्सा, अभियंत्रण समेत तमाम महाविद्यालय विद्या दान में जुटे हुए हैं।
भदोही में सात दशक में आइआइसीटी से लेकर पालिटेक्निक और केवी तक की उपलब्धि
भदोही में आइआइसीटी (इंडियन इंस्टीट््यूट आफ कारपेट टेक्नोलाजी) से लेकर राजकीय पालीटेक्निक कालेज का बड़ा नाम है। आइआइसीटी कालेज से हर साल तीन से चार हजार छात्र पास होकर देश-विदेश में नौकरी पा रहे हैं। इसकी स्थापना में पूर्व केंद्रीय मंत्री पं. श्यामधर मिश्र व भदोही के तत्कालीन सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का बड़ा योगदान रहा। पंडितजी ने जिले में उच्च व तकनीकी शिक्षा के साथ केएनपीजी कालेज को विश्वविद्यालय बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया। उनके संघर्षों को तत्कालीन सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने 2001 में आइआइसीटी कालेज की स्थापना कराकर पूर्ण कराया। यह एशिया का इकलौता ऐसा कालेज है जिसमें छात्रों को अखिल भारतीय इंजीनियङ्क्षरग प्रवेश परीक्षा (एआइईईई) परीक्षा पास करनी पड़ती है। इसी तरह राजकीय पालिटेक्निक कालेज की स्थापना पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्र के प्रयास से हुई।
मऊ में कल्पनाथ राय की रखी नींव पर सुनहरे भविष्य की दीवार
पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय ने मऊ के विकास की इबारत तो लिखी ही केंद्रीय विद्यालय, पालीटेक्निक, सीबीएसई बोर्ड स्कूल की भी नींव रखी। खुद उन्होंने इंटर कालेज खोला। उन्हीं की तर्ज पर सहरोज निवासी डा. मनीष राय ने पहला आइटीआइ कालेज खोला और फिर महिला नर्सिंग कालेज, इंटर कालेज, डिग्री कालेज भी खोले। मुहम्मदाबाद गोहना मुख्य मार्ग पर स्थित संत गणिनाथ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के लिए स्थानीय निवासी राजाराम गुप्ता ने जमीन दान में दी। देश आजाद होने के बाद 1979 में यह राजकीय स्नातक और फिर स्नातकोत्तर महाविद्यालय तक पहुंचा है।
मनीषियों की जलाई शिक्षा की लौ से जगमग गाजीपुर
गाजीपुर में मनीषियों ने शिक्षा की जो लौ जलाई उससे पूरा जनपद जगमग हो रहा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आदर्श मानकर स्वतंत्रता संग्राम में कूदने वाले बहरियाबाद निवासी शिक्षाविद डा. बृजनाथ सहाय द्वारा बहरियाबाद में 1948 में स्थापित सुभाष विद्या मंदिर इंटर कालेज की आज एक बड़े शिक्षण संस्थान के रूप में पहचान है। उनके शिष्य पूर्व शिक्षामंत्री कालीचरण यादव ने 1977 में राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कालेज, राजकीय महिला पीजी कालेज, समता पीजी कालेज सादात की स्थापना की। वहीं समाजसेवी स्व. बाबू राजेश्वर ङ्क्षसह ने पीजी कालेज, टेक्निकल डिग्री कालेज व आदर्श इंटर कालेज जैसे प्रतिष्ठित कालेज स्थापित किए जहां के कई छात्र यूपी बोर्ड परीक्षा में टापटेन में जगह बना चुके हैं। जखनियां तहसील क्षेत्र में हथियाराम मठ के महंत बालकृष्ण यति ने 1994 में बालिका कालेज शुरू किया। वहीं जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रयास से महर्षि विश्वामित्र राजकीय मेडिकल कालेज की स्थापना की गई। सादात में 1949 में बापू इंटर कालेज की स्थापना के लिए दौलतनगर गांव के प्रभुनारायण सिंह ने अपनी तीस बीघे से ज्यादा जमीन दान में दे दी।
चंदौली में विद्यार्थीजी व लोकनाथ सिंह ने 70 वर्ष पूर्व शिक्षा की अलख जगाई
धानापुर कांड के नायक व दो बार विधायक रहे कामता प्रसाद विद्यार्थी ने शहीद गांव में वर्ष 1949 में बालकों के लिए अमर शहीद विद्या मंदिर इंटर कालेज तो 1966 में बालिका शिक्षा के लिए अमर शहीद बालिका इंटर कालेज की स्थापना की। डा. संपूर्णानंद व पं कमलापति त्रिपाठी जैसे तमाम जनप्रतिनिधियों ने इनकी समितियों का प्रतिनिधित्व किया। इसी दौर में रामगढ़ निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व विधायक लोकनाथ सिंह ने वर्ष 1945 में सरस्वती इंटर कालेज टांडा, 1946 में इंटर कालेज धरांव व 1947 में बाबा कीनाराम इंटर कालेज रामगढ़ की स्थापना कर ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा दिया। दोनों मनीषियों ने सक्रिय राजनीति में पद की लालसा न कर आजाद भारत मे शिक्षा के महत्व को समझा व उस दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया।
सात दशक में बलिया को मिला विश्वविद्यालय, मिली उपलब्धि
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का सपना था कि बलिया में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए ताकि यहां के युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए बाहर न जाना पड़े। उनके पुत्र राज्यसभा सदस्य नीरज शेखर ने सपा सरकार में 2016 में संकल्प को पूरा कराया। करीब सवा सौ कालेज यहां से जुड़े हैं। आजादी के बाद शहर में टाउन इंटर व डिग्री कालेज की स्थापना समाजसेवी मुरली बाबू ने की थी। इन्होंने बालिकाओं के लिए गुलाब देवी इंटर व डिग्री कालेज भी शहर में बनवाए। शिक्षक अमरनाथ मिश्र ने सबसे पिछड़े इलाके बैरिया में भी काम किया। दुबे छपरा में इंटर कालेज व महाविद्यालय की स्थापना की। पूर्व विधायक मैनेजर ङ्क्षसह ने भी बैरिया में महाविद्यालय की स्थापना की है। वहीं 2017 में शिलान्यासित सूबे का चौथा स्पोट्स कालेज जिले में मूर्तरूप ले रहा है। यहां फुटबाल, कुश्ती, वालीबाल, एथलेटिक्स, क्रिकेट, तैराकी आदि के खिलाड़ी तैयार होंगे।
आजादी के 75वें साल में आजमगढ़ को राज्य विश्वविद्यालय की सौगात
आजादी के 75वें साल में आजमगढ़ ने राज्य विश्वविद्यालय के रूप में शिक्षा क्षेत्र की बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की। इसमें डा. सुजीत श्रीवास्तव भूषण और उनकी टीम का महत्वपूर्ण योगदान है। डा. भूषण ने राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए बाकायदा विश्वविद्यालय अभियान टीम ही बना डाली थी। उनके नेतृत्व में लगातार कई महीने जिले के कालेजों में शिक्षकों-छात्रों का पोस्टर व पोस्टकार्ड अभियान चला। बात नहीं बनी तो 2014 के लोकसभा चुनाव के समय डा. भूषण के नेतृत्व में नेहरू हाल के सामने अनिश्चितकालीन धरना चला। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने प्रतिनिधि के रूप में मंत्री दारा सिंसह चौहान को मौके पर भेज कर राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना का आश्वासन दिया था।
सोनभद्र में 1990 में जिला मुख्यालय पर खुला पहला डिग्री कालेज
अति पिछड़ा माने जाने वाले सोनभद्र को आजादी के 75 साल में शिक्षा के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल हुईं। यह बात और है कि जिला मुख्यालय पर पहला महाविद्यालय (कीनाराम डिग्री कालेज) 1990 के दशक में खुला। सपा शासन काल में यहां चुर्क में राजकीय इंजीनियरिंग कालेज और लोढ़ी ग्राम पंचायत में घोरावल के तत्कालीन विधायक रमेश चंद्र दुबे की पहल पर पालीटेक्निक कालेज स्थापित किया गया। नगवां ब्लाक के पौनी गांव में राजकीय डिग्री कालेज भी खुला। अभी हाल में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रौप ग्राम पंचायत में राजकीय मेडिकल कालेज का शिलान्यास किया, जिस पर कार्य चल रहा है।
सात दशक में विश्वविद्यालय से लेकर मेडिकल कालेज तक की उपलब्धि
आजादी के 75 साल में जौनपुर ने शिक्षा के क्षेत्र कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। इसमें वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय से लेकर उमानाथ सिंह राजकीय मेडिकल कालेज का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। विश्वविद्यालय से प्रतिवर्ष तीन से चार लाख छात्र उत्तीर्ण होकर निकल रहे हैं। विश्वविद्यालय की स्थापना में पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर वीर बहादुर सिंह व तत्कालीन जौनपुर सांसद अर्जुन सिंह यादव का तो मेडिकल कालेज में सपा सरकार के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव का अहम योगदान रहा। वहीं जौनपुर में शिक्षा की अलख जगाने वाले दो सबसे पुराने शिक्षा के मंदिर राज पीजी कालेज व तिलकधारी महाविद्यालय को भी नहीं भुलाया जा सकता है। राज कालेज की स्थापना राजा यादवेंद्र दत्त दुबे व टीडी कालेज की स्थापना तिलकधारी सिंह ने की थी।