तंत्र के गण : योद्धा की तरह कोरोना से किया मुकाबला, वाराणसी व बलिया के चिकित्साधिकारियों को मिली वीरगति
वैश्विक महामारी कोरोना न केवल इंसान बल्कि उसके धैर्य की भी परीक्षा ले रहा है। इस युद्ध में सबसे अग्रिम पंक्ति के मोर्चे पर चिकित्सक डटे हैं तो दूसरी तरफ सुरक्षाकर्मियों से लेकर हर आम व खास भी क्षमतानुसार योगदान दे रहा है।
वाराणसी, जेएनएन। वैश्विक महामारी कोरोना न केवल इंसान, बल्कि उसके धैर्य की भी परीक्षा ले रहा है। इस युद्ध में सबसे अग्रिम पंक्ति के मोर्चे पर चिकित्सक डटे हैं, तो दूसरी तरफ सुरक्षाकर्मियों से लेकर हर आम व खास भी क्षमतानुसार योगदान दे रहा है। घर-परिवार, बीवी-बच्चों से दूर कोरोना योद्धा डाक्टर मरीजों की जान बचाने और लोगों को संक्रमण से बचाने में जुटे हैं। इस क्रम में कई योद्धाओं को अपने प्राणों तक की आहूति देनी पड़ी। प्रस्तुत है वीरगति पाने वाले ऐसे ही कोरोना योद्धाओं पर आधारित बलिया से लवकुश सिंह व वाराणसी से मुहम्मद रईस की रिपोर्ट।
कोरोना से मुकाबला करते हुए बलिया के सीएमओ रहे डा. जितेंद्र पाल जिंदगी की जंग हार गए। उन्होंने दैनिक जागरण के बाल संवाद कार्यक्रम में कोरोना से बचाव के सवाल पर कहा था कि आपदा की घड़ी में यदि चिकित्सक, पुलिसकर्मी, मीडिया के लोग, राजनीतिक लोग पीछे रहेंगे तो उन पर कई तरह के सवाल उठेंगे।
मुश्किल वक्त में बलिया के स्वास्थ्य सेवाओं की संभाली थी कमान
पीक पर पहुंचने से पहले कोरोना का शोर ऐसा था कि लोगों ने अपनों के यहां भी आना-जाना बंद कर दिया था। महानगरों से सिर पर गठरी लिए लोग पैदल ही अपने गांव की ओर जाते हुए सड़कों पर दिख रहे थे। कोरोना वायरस का शोर पूरे देश में बढ़ता जा रहा था। आम आदमी संग चिकित्सक भी चिंतित थे। उसी दरम्यान जुलाई 2020 में डा. जितेंद्र पाल का सीएमओ के रूप में बलिया में पदार्पण हुआ था। अपने कार्यकाल में उन्होंने कोरोना का डटकर मुकाबला किया। उनसे कोई भी मिलने जाता तो उनके हंसमुख स्वभाव से आनंदित हो जाता था। कोरोना संक्रमित होने के बाद अचानक 29 दिसंबर को उनका आक्सीजन स्तर गिरने लगा और उन्हें पीजीआइ रेफर किया गया। वहां चार जनवरी 2021 की रात कोरोना से जिंदगी की जंग लड़ते हुए उन्हें वीरगति की प्राप्ति हुई।
विभागवार किए थे बहुत बदलाव
कोरोना योद्धा सीएमओ डा. जितेंद्र पाल के कार्यकाल में स्वास्थ्य विभाग में कई बदलाव दिखे। सीएमओ कार्यालय की पूरी व्यवस्था बदली। कोरोना लैब की स्थापना हुई। एल-2 अस्पताल की व्यवस्था हुई। दिवंगत सीएमओ संत कबीरनगर के मूल निवासी थे। वर्तमान में वह मैत्रीपुरम, बिछिया जिला गोरखपुर में बस गए थे। परिवार में पत्नी के अलावा एक पुत्र व पुत्री हैं। पुत्र एमबीबीएस करने के बाद आगरा में इंटरर्नशिप कर रहे हैं, जबकि पुत्री एमबीए करने के बाद मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं।
कोरोना को हराते हुए जीवन हार गए बनारस के डा. जंग बहादुर
जिले में विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के संचालन में अहम भूमिका निभाने वाले हर दिल अजीज अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डा. जंग बहादुर नाम के अनुरूप मिजाज से योद्धा थे। 21 मार्च को पहला मरीज मिलने से लेकर संक्रमण की दर पीक पर पहुंचने तक हर मोर्चे पर कोरोना का डटकर मुकाबला किया था और अंत समय तक अपने शहर, अपने लोगों को संक्रमण की जद से बचाने का भरसक प्रयास किया। कोविड आपरेशन के नोडल आफिसर के तौर पर जनपदवासियों को कोरोना संक्रमण के दंश से बचाते हुए 11 अगस्त 2020 को उन्हें अपने प्राणों की आहूति दे दी।
जिले में समय-समय पर विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के सफल संचालन में डा. जंग बहादुर का महत्वपूर्ण योगदान आज भी महकमे के लिए नजीर है। संचारी रोगों के नोडल अधिकारी के साथ ही उन्होंने विभिन्न राजकीय कार्यों का कुशलतापूर्वक संपादन भी किया। जनपद की घनी आबादी में लोगों को जागरूक बनाने और संक्रामक रोगों के प्रभावी नियंत्रण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। कोरोना संक्रमण का प्रभाव शुरू होने पर उन्हें सभी तरह के उठाए जाने वाले रक्षात्मक उपायों के प्रभारी पद का जिम्मा सौंपा गया। दायित्वों का बखूबी निर्वहन करते हुए नौ अगस्त 2020 को वे संक्रमण की जद में आ गए। तबीयत खराब होने पर नौ अगस्त की ही रात बीएचयू अस्पताल में भर्ती कराया गया। 11 अगस्त की सुबह उनकी रिपोर्ट कोरोना पाजिटिव आई, जिसके बाद उन्हें कोविड लेवल-थ्री हास्पिटल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान ही 11 अगस्त की देर रात उन्होंने अंतिम सांस ली। डा. जंग बहादुर मूलरूप से जनपद मऊ के निवासी थे और बनारस में बीएचयू के नजदीक महामनापुरी कालोनी में रहते थे। उनके दो बेटे युद्धवीर व रणवीर हैं। सीएमओ डा. वीबी ङ्क्षसह के मुताबिक समय-समय पर विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के सफल संचालन में डा. जंग बहादुर महत्वपूर्ण योगदान दिया करते थे। जिले में संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कोरोना संक्रमण के दौर में भी उन्होंने शानदार तरीके से अपने दायित्वों का निर्वहन किया। विभाग को उन पर नाज है।
आयुष चिकित्साधिकारी ने भी न्योछावर किए प्राण
वैश्विक महामारी कोरोना में आयुष चिकित्सकों व चिकित्साधिकारियों ने भी प्राणों की परवाह किए बगैर मानवता की सेवा की। अपने फर्ज को निभाते हुए रौना खुर्द में तैनात आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डा. बृजेश कुमार शर्मा ने भी शहादत पाई। ड्यूटी के दौरान सितंबर 2020 में ही संक्रमित होने पर पहले उनका इलाज मंडलीय हास्पिटल और फिर बाद में बीएचयू में चला। तकरीबन 13 दिन संघर्ष करते रहे और आखिरकार पांच अक्टूबर 2020 को वे जिंदगी की जंग हार गए। डा. शर्मा आजमगढ़ जिले में मेंहनगर के मूल निवासी थे।