वाराणसी के BHU में कैंसर ग्रस्त रोगियाें को कड़े प्रोटोकाल ने काेविड-19 से दी सुरक्षा
निम्न प्रतिरोधक क्षमता के बावजूद लाइलाज बीमारी कैंसर के मरीजों में कोरोना का संंक्रमण कम होना किसी अचंभे से कम नहीं है। कोविड-19 की वैक्सीन कैंसर मरीजों पर काफी बेहतर काम कर रही है। एंटीबाडी बनने की दर इन रोगियों में काफी तेज है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। निम्न प्रतिरोधक क्षमता के बावजूद लाइलाज बीमारी कैंसर के मरीजों में कोरोना का संंक्रमण कम होना किसी अचंभे से कम नहीं है। इस पर कैंसर की दवाओं का असर है या कोई अन्य शारीरिक विज्ञान, कारण तो स्पष्ट नहीं है मगर बीएचयू के कैंसर रोग विशेषज्ञ इसके पीछे कैंसर चिकित्सा के कड़े प्रोटोकाल को वजह बताते हैं। वहीं हाल ही में आए एक अमेरिकन शोध के अनुसार कोविड-19 की वैक्सीन कैंसर मरीजों पर काफी बेहतर काम कर रही है। एंटीबाडी बनने की दर इन रोगियों में काफी तेज है।
बीएचयू की बात करें तो विगत एक साल पूरे कोविड काल में यहां लगभग निरंतर सर्जिकल आंकोलाजी विभाग में कैंसर की ओपीडी और ओटी आपरेशन थिएटर चलती रही, जिसमें कैंसर के कुल 775 पीड़ित आए। इसमें से सर्जरी के बाद महज 23 मरीजों को ही कोरोना हुआ। जबकि 14 की मृत्यु कैंसर और कोविड दोनों के कारण हुई, बाकी बचे नौ स्वस्थ हो गए। वहीं ओपीडी में पहले से संक्रमित 62 रोगी आए। हालांकि इस बीच विभाग के सभी कर्मचारी और पूरी सर्जरी टीम को मिलाकर कुल 22 को काेविड का संक्रमण हुआ, मगर मरीजों को कोई खास नुकसान नहीं हुआ। वहीं जिन मरीजों की मौत भी हुई उनमें से कई के आरटी-पीसीआर तो निगेटिव आए मगर सीटी स्कैन रिपोर्ट में संक्रमण का पता चला।
सर्जरी से पहले होती थी हर स्तर पर जांच और परीक्षण
आइएमएस-बीएचयू में कैंसर रोग विशेषज्ञ और सर्जिकल आंकोलाजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. मनोज पांडेय के अनुसार कड़े प्रोटोकाल के द्वारा कैंसर मरीजों को हम कोविड से सुरक्षा दे पाए हैं। इस प्रोटोकाल ने एक तरह से ओटी से लेकर वार्ड तक में बायो-बबल जैसा वातावरण का तैयार कर दिया था, जहां पर संक्रमण की निगरानी बेहद संजीदगी से चौबीस घंटे होती थी। प्रो. पांडेय ने बताया कि उनके टीम के हर सदस्यों की मरीज और मेडिकल स्टाफ के प्रत्यक्ष मेल-मिलाप से पूर्व कोरोना की जांच होती थी। सर्जरी के तीन दिन पहले रोगियों को वार्ड में ही रखा जाता था। कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही सर्जरी की जाती थी।
इसके अलावा निगेटिव आने के बाद यदि सर्जरी से पूर्व मरीज को सर्दी, खांसी, बुखार, डायरिया, स्वाद का गायब होना और श्वांस लेने में तकलीफ हुई हो तो उसके पूछताछ के बाद ही आपरेशन किया जाता था। वहीं ऐसा मरीज जो किसी संदेहास्पद कोरोना मरीज के संपर्क में आया है तो रिपोर्ट बिना निगेटिव आए सर्जरी नहीं की जाती थी। प्रो. पांडेय ने बताया कि यदि तीसरी लहर आती है तो इसी तरह के प्रोटोकाल का पालन करते हुए कैंसर का इलाज किया जाएगा। विगत दिनों कैंसर सेल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 131 कैंसर पीड़ितों ने वैक्सीन लगवाया तो 95 फीसद में एंटीबॉडी बनी थी। वहीं रोगियों की औसत आयु 63 साल थी।