US-Iran Tension: ईरान में अमेरिका के साथ जंग के आशंका की कहानी भारतीय की जुबानी, मुल्क लौट रहे जियारत करने वाले
शहर के मलिक टोला निवासी मोहम्मद शोएब रिजवी को ईरान पहुंचने के बाद 26वें दिन ही वापस अपने मुल्क लौट आना पड़ा।
मऊ [शैलेश अस्थाना]। गए तो थे वे ईरान में तालिब-ए-इल्म बनकर, मगर वहां घिरे जंग की आशंकाओं के बादल तो मजबूर होकर लौटना पड़ा अपने वतन। जी हां, शहर के मलिक टोला निवासी मोहम्मद शोएब रिजवी को ईरान पहुंचने के बाद 26वें दिन ही वापस अपने मुल्क लौट आना पड़ा। वे गुरुवार को सकुशल अपने घर पहुंच गए। अपने लाल को अपने बीच सकुशल पाकर परिवार वाले बार-बार खुदा का शुक्र अदा कर रहे थे। शोएब के साथ बांदा व पूर्वांचल तथा बिहार के विभिन्न जनपदों के 32 लोगों का दल था, जो जियारत करने के ईरान गए थे। उनमें से 16 लोग लौट आए हैं, जबकि 16 लोग अभी वहीं पर हैं। इसी बीच ईरान द्वारा यूक्रेन का यात्री विमान अपने मिसाइल से मार गिराने के बाद ईरान में जंग के दहशत की स्थिति परिलक्षित हो रही है।
वाराणसी के प्रहलाद घाट स्थित जमादिया अरबी कालेज से मौलवी की पढ़ाई कर रहे शोएब बताते हैं कि मौलवी की पढ़ाई पूरी करने के लिए ईरान गए थे, वहां उन्हें कुम शहर की यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना था। वे दिल्ली से 15 दिसंबर की भोर में दिल्ली से तेहरान के लिए रवाना हुए। चार घंटे में तेहरान पहुंचने के बाद वे इराक के लिए निकल लिए। उनका इरादा था कि पहले इन दोनों देशों के पाक व मुनासिब जगहों की जियारत कर ली जाए, फिर कुम पहुंचकर एडमीशन की प्रक्रिया पूरी करें। इराक में 13 दिन रहकर विभिन्न शहरों की यात्रा कर वे 28 दिसंबर को वापस तेहरान पहुंच गए। वहां से कर्बला, मसअद और कुम तथा अनेक शहरों को देखा व घूमा। तीन जनवरी को जब वे कुम शहर के ताहा होटल में थे तभी खबर मिली कि इराक की राजधानी बगदाद में अमेरिकी हमले में ईरानी सेना के कमांडर सुलेमानी का इंतकाल हो गया। शोएब बताते हैं कि अपने मुल्क में अक्सर सैनिकों की शहादत की खबरें सुनता था तो मुझे लगा कि सेना के कोई बड़े आफिसर मारे गए हैं। तब मेरे दिमाग में जंग की शुबहा बिलकुल न थी। वहां से वे चार जनवरी के लिए मसअद के लिए रवाना हो गए। इधर चार को तेहरान में जनरल सुलेमानी के नमाज-ए-जनाजा के बाद उनका जनाजा मसअद शहर पहुंच गया।
वहां शोएब भी सुलेमानी के नमाज-ए-जनाजा में शामिल हुए। मगर भीड़ के जबर्दस्त एहतेजाज यानि विरोध प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें हालात जुदा होने संदेह हो गया। इस बीच खबरें भी आने लगीं। वहां के माहौल में जंग की बातें आम होने लगीं। फिर तो घर से भी धड़ाधड़ फोन आने लगे, घर वाले जल्द वहां से निकल आने का इसरार करने लगे। सरकार की ओर से भी बाहरी लोगों को सुरक्षित अपने मुल्क चले जाने की बातें कही जाने लगीं तो शोएब ने वहां से निकल लेना मुनासिब समझा। उनके साथ उनके काफिले में शामिल १६ लोग भी लौट आए। उनमें दो लोग वाराणसी, दो आजमगढ़ के मुबारकपुर, तीन बिहार तो तीन लोग बांदा के थे। कुछ और लोग भी अलग-अलग जगहों से थे। शेष 16 लोगों ने अभी तक कुम शहर की जियारत नहीं की थी, जो सातवें इमाम इमामे अली रजा अलैस्सलाम की बहन की दरगाह है। इसलिए वे लोग अब आगामी दिनों में लौटेंगे।
ईरान में सुलग रहा अमेरिका के खिलाफ लावा
शोएब बताते हैं कि ईरान के लोगों में अमेरिका के खिलाफ लावा उबल रहा है। हर आम-ओ-खास के मुंह से जंग की बातें सुनी जा रही हैं। हालांकि तेहरान से लगायत मसअद और कुम तक अभी जंगी हालात कहीं नहीं नजर आ रहे। क्योंकि जंग का सेंटर तो बगदाद है।
हालात सुधरे तो फिर जाएंगे
शोएब बताते हैं कि जंग के हालात सुधरे तो वे फिर ईरान जाएंगे। क्योंकि उनकी ख्वाहिश है कि वे कुम शहर की यूनिवर्सिटी से मौलवी की डिग्री हासिल करें। कुम शिया मुसलमानों का एक तीर्थस्थल भी है।
छलक पड़े परिवार वालों के आंसू
शोएब 13 दिसंबर को जब घर से दिल्ली के लिए जहाज पकड़ने रवाना तो हुए तो इसी बीच 19 दिसंबर को उनके बड़े अब्बा का यहां इंतकाल हो गया। बड़े अब्बा के इंतकाल की खबर मिली तो इराक में थे। शुक्रवार को जब वे घर पहुंचे तो मातम शुरू हो गया।