कोरोना से इलाज को गंगाजल से बनाया स्प्रे, क्लीनिकल ट्रायल के लिए कमेटी को भेजा प्रस्ताव
गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस से बीएचयू के डाक्टरों की टीम ने एक स्प्रे तैयार किया है।
वाराणसी, जेएनएन। गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस से बीएचयू के डाक्टरों की टीम ने एक स्प्रे तैयार किया है। दावा किया है कि इससे कोरोना का उपचार किया जा सकता है। इसे लेकर हाइपोथिसिस रिसर्च किया है, जिसे इंटरनेशनल जर्नल आफ माइक्रोबायोलॉजी ने दो सितंबर को स्वीकार किया है। अब चिकित्सा विज्ञान संस्थान की एथिकल कमेटी को प्रस्ताव बनाकर प्रस्तुत किया है। वहां स्वीकृति मिलने के बाद आगे की कार्रवाई शुरू की जाएगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में गंगा मामलों में पक्ष रखने वाले अधिवक्ता अरुण गुप्ता बताते हैं कि गंगा में मौजूद बैक्टीरियोफाज से कोरोना के उपचार के लिए राष्ट्रपति को लिखा था। इसके बाद इसे इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च को भेज दिया गया। हालांकि वहां से निराशा हाथ लगी। इसके बाद चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू स्थित न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. वीएन मिश्र, प्रो. आरएन चौरसिया, डा. अभिषेक पाठक, डा. वरुण कुमार ङ्क्षसह, डा. आनंद कुमार, डा. रजनीश व शोधछात्रा निधि के साथ ही एक टीम बनाई गई। प्रो. मिश्र ने बताया कि देश-विदेश में पहले से पत्रों एवं जर्नल में प्रकाशित शोध से आंकड़ा एकत्रित कर हाइपोथिसिस रिसर्च किया गया। बताया कि गोमुख, बुलंदशहर, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी सहित 17 स्थानों से बैक्टीरियोफाज के सैंपल लिए गए। इसमें पाया गया कि जहां गंगा पूरी तरह स्वच्छ हैं उसमें दूसरे बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।
बताया कि दो सितंबर को ही यह शोध स्वीकार हो गया है। उम्मीद है जल्द ही प्रकाशन भी हो जाएगा। इसी बीच आइएमएस को स्प्रे से उपचार के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। वहां से स्वीकृति मिलने के बाद 198 कोरोना मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल के लिए योजना बनाई गई है। प्रो. मिश्र ने बताया कि अगर सफलता मिलती है तो मात्र 10 रुपये में ही स्प्रे के रूप में कोरोना की दवा मिल सकती है। बताया कि गंगा में वर्षों से प्रतिदिन स्नान करने वाले एवं आचमन करने वालों पर भी सर्वे किया गया है। इसमें पाया गया है कि किसी को भी कोरोना नहीं हुआ। हां, इनके घर के अन्य 20 सदस्यों कोरोना जरूर हुआ जो इस प्रक्रिया में शामिल नहीं थे।