महंत रामेश्वरपुरी के समाधि स्थल पर विशिष्ट रोट पूजन, पुण्यात्मा को मोक्ष का अनोखा अनुष्ठान
शिवपुर स्थित अन्नपूर्णा ब्रह्मचर्य ऋषिकुल आश्रम परिसर में दिवंगत महंत रामेश्वर पुरी के समाधि स्थल पर मंगलवार को सुबह आठ बजे रोट पूजन की परंपरा का निर्वहन किया गया। इसके बाद साधु भंडारा हुआ। जिसमें सैकड़ों साधु-संतों ने प्रसाद ग्रहण किया।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। शिवपुर स्थित अन्नपूर्णा ब्रह्मचर्य ऋषिकुल आश्रम परिसर में दिवंगत महंत रामेश्वर पुरी के समाधि स्थल पर मंगलवार को सुबह आठ बजे रोट पूजन की परंपरा का निर्वहन किया गया। इसके बाद साधु भंडारा हुआ। जिसमें सैकड़ों साधु-संतों ने प्रसाद ग्रहण किया। यह पूजन आचार्य अर्जुन पांडेय के आचार्यत्व में सम्पन्न हुआ। उपमहंत शंकर पुरी ने आचार्य द्वारा बताए जा रहे विधि-विधान को अक्षरशः निभाया।
इस दौरान वह बीच-बीच में अपनी आंखें बंद करके वह महंत रामेश्वर पुरी को भी नमन कर रहे थे। पूजन के दौरान कई बार वह भावुक भी हुए। लगभग दो घण्टे तक चले इस पूजन के सम्पन्न होने के बाद उप महंत शंकर पुरी लगभग 11:30 बजे श्रीअन्नपूर्णा मठ-मंदिर में वापस लौट चुके थे। इस दौरान श्रीमहंत सुभाष पुरी, महंत जयकिशन पुरी, महंत अजय भारती, महंत अरविंद पुरी, अन्नपूर्णा ऋषिकुल ब्रह्मचर्य आश्रम के आचार्य आशुतोष मिश्र सहित मंदिर परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे।
क्या है रोट पूजन : श्रीमहंत सुभाष पुरी और काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि शरीर त्यागने के बाद जीव ब्रमांड में भटकता रहता है। वह आहार और द्रव्य ग्रहण नहीं कर पाता है। उसी जीव को तृप्त करने के लिए दस नामी साधु सम्प्रदाय में रोट पूजन संस्कार के कर्म का विधान है। दस नामी साधु सम्प्रदाय में गिरी, पुरी, भारती, सरस्वती आदि लिखने वाले संत-समाज आते हैं। इसमें पुरी लिखने वाले साधु-संत परमहंस की श्रेणी में आते हैं। विधान के अनुसार यदि ऐसे किसी साधु-संत ने शरीर त्याग किया है तो शरीर त्यागने के तीसरे दिन रोट पूजन संस्कार किया जाता है। इसमें मृत आत्मा के नाम से संकल्प लेकर रोट (बड़े आकार की पूड़ी) में गुड़ और घी मिलाकर अग्नि कुंड में आहुति दी जाती है। इससे निकलने वाली सुगंध से मृत आत्मा को तृप्ति मिलती है। उसके बाद मृत आत्मा के नाम से ग्रास (भोजन) भी निकाला जाता है। मान्यता है कि यह अप्रत्यक्ष रूप से मृत आत्मा तक पहुंच जाता है। इसमें दशों दिशाओं का हवन और पंचतत्व की पूजा की जाती है। जिससे कि दिवंगत पुण्यात्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके।