सिंगल-यूज प्लास्टिक से 'थ्री स्टार समाधान', ग्लूकोज व कोल्डड्रिंक की बोतलों से हो रही सिंचाई Azamgarh news
राजकीय पालीटेक्निक हर्रा की चुंगी के शिक्षक इंजीनियर कुलभूषण सिंह ने ग्लूकोज एवं कोल्डड्रिंक की उपयोग हो चुकी बोतलों का पुन उपयोग कर किया है।
आजमगढ़ [अनिल मिश्र]। सिंगल-यूज प्लास्टिक बोतल का अनूठा उपयोग राजकीय पालीटेक्निक हर्रा की चुंगी के शिक्षक इंजीनियर कुलभूषण सिंह ने ग्लूकोज एवं कोल्डड्रिंक की उपयोग हो चुकी बोतलों का पुन: उपयोग कर किया है। कॉलेज परिसर में लगे पेड़-पौधों की ड्रिप विधि द्वारा सिंचाई का अनूठा प्रयोग करके दिखाया। वे इसे 'थ्री स्टार समाधान' व्यवस्था कहते हैं।
'थ्री स्टार समाधान' के तीन फायदे हैं। एक तो सिंगल-यूज प्लास्टिक बोतलों का पुन: उपयोग, दूसरा ड्रिप विधि सिंचाई से जल की बचत और तीसरे एक बाल्टी पानी से लगभग 20 पेड़-पौधों की सिंचाई की जा सकती है। यदि इस विधि के उपयोग से भारत छोड़ो आंदोलन की 77वीं वर्षगांठ पर सरकार द्वारा लगाए गए जिले में लाखों पौधों और प्रदेश में करोड़ों पेड़ों में उपयोग किया जाए तो लाखों-करोड़ों उपयोग हो चुकी प्लास्टिक की बोतलों का पुन: उपयोग हो सकेगा। सिंगल यूज प्लास्टिक, जो एक समस्या बन चुकी है, का भी समाधान हो जाएगा। साथ ही करोड़ों लीटर जल की बचत और पेड़-पौधों का विकास सुरक्षित ढंग से हो सकेगा।
इस तकनीक के फायदे
बेकार पड़ी ग्लूकोज व कोल्डड्रिंक की उपयोग हो चुकी बोतलों के प्रयोग से पर्यावरण संरक्षण होगा। एक बाल्टी पानी में लगभग 20 पौधों की सिंचाई होगी। इस विधि से एक लीटर प्लास्टिक बोतल का पानी लगभग चार घंटे तक बूंद-बूंद कर पेड़-पौधों की जड़ों में गिरता रहता है जिससे एक-एक बूंद पानी पौधों की जड़ों द्वारा सोख लिया जाता है। टपक सिंचाई में जल उपयोग क्षमता 95 फीसद होती है।जबकि पारंपरिक सिंचाई प्रणाली में जल उपयोग क्षमता 50 वर्ष ही होती है। पारंपरिक सिंचाई की तुलना में टपक सिंचाई में 70 फीसद तक जल की बचत की जा सकती है। भारत में उपलब्ध जल का लगभग 80 फीसद जल कृषि योग्य होता है।
ऐसे मिली प्रेरणा
पहले खुद घर में पड़ी प्लास्टिक की बोतलों को एकत्र किया। छात्रों से भी उपयोग हो चुकीं कोल्डड्रिंक और प्लास्टिक की बोतलों को इकठठा करवाया। ग्लूकोज की बोतलों को कबाड़ी के यहां से लिया। छात्रों की मदद से बोतल टांगने के लिए सूखी लकड़ी के डंडे तैयार किए। राजकीय पॉलीटेक्निक कैंपस में पिछले दिनों रोपित किए पौधों के पास डंडा लगाकर ग्लूकोज की बोतलों का उपयोग कर ड्रिप विधि से सिंचाई की जा रही है।
इंजीनियरिंग के छात्रों को होमवर्क
राजकीय पॉलीटेक्निक में सिविल इंजीनियरिंग विषय में एनवायरमेंट एंड पॉल्यूशन कंट्रोल विषय में सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों को सिंगल-यूज प्लास्टिक और जल संरक्षण के अंतर्गत छात्र-छात्राओं को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के अंतर्गत यह होमवर्क दिया गया है। छात्र घर एवं आसपास में उपलब्ध बेकार पड़ी प्लास्टिक की बोतलों को संस्था में लाकर उस बोतल को ड्रिप सिंचाई युक्त बनाकर संस्था के सभी पौधों में सिंचाई की व्यवस्था करेंगे।
बोले अधिकारी : कलेक्ट्रेट के आसपास सड़क के किनारे लगे सभी पौधों की भी सिंचाई की व्यवस्था प्लास्टिक बोतलों से ड्रिप सिंचाईयुक्त बनाकर करना चाहते हैं। सभी सामाजिक संगठनों का सहयोग लेकर सार्वजनिक स्थलों पर लगे पेड़-पौधों की सिंचाई इस विधि से कराया जाएगा। इलीज प्लास्टिक के तहत प्लास्टिक की बेकार पड़ी बोतलों का उपयोग हो सके जिससे पर्यावरण संरक्षण एवं जल संरक्षण के रूप में इस जिले के लोग एक उदाहरण पेश कर सकें। -इंजीनियर कुलभूषण सिंह, राजकीय पॉलीटेक्निक, आजमगढ़।