यूपी विधानसभा चुनाव में बिरहा गायन की कीमत भी तय, आयोग ने खर्च के लिए नया कालम जोड़ा
UP Vidhan Sabha Chunav 2022 प्रत्याशियों के लिए खर्च की सूची में चुनाव आयोग ने लोक गायकी को शामिल कर दिया है। इसके लिए 5500 रुपये की दर निर्धारित की गई है। इसी तरह सांस्कृतिक दलों के अयोजनों के लिए भी रेट तय कर दिए गए हैं।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए सियासी समर में सुरों की धार की भी बड़ी मीठी मार होती है। हर बार चुनावों में ऐसे गीतों के लिए अलग ही रियाज किया जाता है। अबकी निर्वाचन आयोग ने कोविड संक्रमण के मद्देनजर सभाओं-रैलियों और जुलूसों आदि पर बंदिशें लगाईं लेकिन विभिन्न विधाओं के ये गीत ही हैं जो अपना असर दिखाने लगे हैं। सबसे रोचक बात यह कि इस बार आयोग ने लोक गायकी को खास तौर पर तरजीह दी और राजनीतिक दलों की ओर से होने वाले बिरहा, कव्वाली आदि के कलाकारों के लिए अनिवार्यत: 5500 रुपये की सम्मान राशि निर्धारित कर दी। वाराणसी से सौरभ चंद्र पांडेय की रिपोर्ट..
पहले नहीं थी भुगतान की व्यवस्था: पहले के चुनावों में कलाकारों को भुगतान का कोई उल्लेख नहीं होता था। अब प्रत्याशियों के लिए खर्च की सूची में चुनाव आयोग ने लोक गायकी को शामिल कर दिया है। इसके लिए 55 सौ रुपये की दर निर्धारित की गई है। जिसे प्रत्याशियों को अपने खर्च के ब्योरे में दर्ज करना होगा। चुनाव आयोग के इस कदम से संगीत की इस विधा से जुड़े कलाकार गदगद हैं। उनका कहना है कि कोरोना काल ने कलाकारों को बेहाल कर दिया है। चुनाव में पहले भी उनकी भागीदारी प्रचार-प्रसार में होती रही है, लेकिन इस बार दर तय कर दिए जाने से इस विधा को प्रोत्साहन मिलेगा। प्रत्याशी को इनकी मदद लेने पर न्यूनतम 5500 रुपये का भुगतान करना ही होगा।
आल्हा, कव्वाली, लोकगीत, बिरहा | 5500 रुपये |
जादू- कठपुतली | 2500 रुपये |
लघु सांस्कृतिक दल | 6000 रुपये |
वृहद सांस्कृतिक दल | 8000 रुपये |
नाटक-नौटंकी | 3500 रुपये |
ढोल खजड़ी पार्टी | 1000 रुपये |
बैंड-बाजा पार्टी | 3500 रुपये |
इंटरनेट मीडिया से गीतों का बढ़ रहा क्रेज: चुनावी गीत-संगीत से इंटरनेट मीडिया गुलजार है। इसमें भी भोजपुरी को खास तौर पर पसंद किया जा रहा है। कौन सी धुन श्रोताओं को कब भा जाए और कौन सा गीत रातों-रात हिट हो जाए यह किसी को नहीं पता। कलाकार एक ही गीत को अलग-अलग धुनों पर अपनी आवाज दे रहे हैं। कलाकारों का मानना है कि जो राशि तय की है वह डिजिटल माध्यम के लिए तो ठीक है लेकिन मंच का कार्यक्रम इतने राशि में संभव नहीं हो सकेगा। रैलियों और रोड शो पर पाबंदी के कारण निर्वाचन के आरंभिक दौर में ही प्रचार की कमान लोक गायकों ने थाम ली है। वह अपनी गायकी से पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। बड़े कलाकारों के साथ-साथ छोटे कलाकारों को भी डिजिटल मंच मिला है। राजनीतिक दल इन कलाकारों के माध्यम से अपना बखान करा रहे हैं, हालांकि कुल मिलाकर जनता आनंद ले रही है।
बोले कलाकार : चुनाव आयोग का यह कदम एक मिसाल कायम करेगा। बिरहा, आल्हा भजन कव्वाली कलाकारों के लिए यह अनुदान तो ठीक है। अन्य कलाकारों के लिए भी विचार करना चाहिए। - कन्हैया दुबे केडी, गीतकार।
बोले अकादमी सदस्य : चुनाव प्रचार डिजिटल हुआ है। इसका सीधा फायदा कलाकारों को मिल रहा है। राजनीतिक दल अपने विचारों से जनता को जोड़ने के लिए कलाकारों का सहारा ले रहे हैं जो अच्छी पहल है। - दीपक सिंह, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के सदस्य।