श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : मजहबी एकता में गाढ़ा रंग भर रही गुलाम मुस्तफा की अंगुलियां
हुनर की बदौलत देवी-देवताओं की झांकियों को जीवंत कर मजहबी एकता गाढ़ा रंग भर रहीं हैं गुलाम मुस्तफा उर्फ हासमी मिस्त्री की अंगुलियां।
भदोही [मुहम्मद इब्राहिम]। अनेकता में भी एकता की मिशाल पेश करने वाले भारतीय संस्कृति व सभ्यता की सराहना यूं ही नहीं होती। यहां हर कदम पर आपसी एकता के जरिए गंगा जमुनी तहजीब की ऐसी मिशाल कायम होती दिखती है जिसे तोड़ पाना किसी भी दशा में संभव नहीं हैं। मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना..., कुछ इन्हीं पंक्तियों को आत्मसात अपनी हुनर की बदौलत देवी-देवताओं की झांकियों को जीवंत कर मजहबी एकता गाढ़ा रंग भर रहीं हैं गुलाम मुस्तफा उर्फ हासमी मिस्त्री की अंगुलियां। तीन दशक से उनके द्वारा ही जिला जेल व पुलिस लाइन में अनवरत सजाई जा रही श्रीकृष्ण जन्माष्ठमी की झांकियां लोगों के आकर्षण का केंद्र बनती हैं।
जाति व मजहब के नाम पर दुनिया को बांट कर देखने-बताने वाले चाहे जब-जो उल्टी-सीधी हवाएं बहाने का सपना बुनते-झोंकते रहें, लेकिन हमारे सामाजिक सरोकार की जड़ें ऐसी गहरी, परस्पर एकजुट हैं, यह जाहिर करने का काम ज्ञानपुर नगर के गांधी गली का एक साधारण-सा दिखने वाला कलाकार गुलाम मुस्तफा कर रहा है। उनकी अंगुलियां मुहर्रम के ताजिए बनाती हैं, वही के मौके पर होने वाले भरत मिलाप के आयोजनों में लाग विमान तो जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण से लेकर राधा, कंस व शिव-पार्वती सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को साकार रूप देने में जरा भी गुरेज नहीं करती। आम दिनों में गैस चूल्हा, स्टोव आदि की मरम्मत कर जीविकोपार्जन करने हासिम मिस्त्री का पूरा परिवार दशहरा पर लाग-विमान, मुहर्रम में ताजिया तो जन्माष्टमी के मौके पर झांकिया तैयार करने का जिम्मा अपने सिर ले लेता है। पूरा परिवार जिस तन्मयता के साथ ताजिये को आकर्षण रूप देने में जुटता है तो उसी तरह देवी-देवताओं की प्रतिमाएं कैसे लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ले। लोगों की नजरें न सिर्फ पुतले पर टिक जाय बल्कि जुबां पर कलाकारी की तारीफ के शब्द खुद-ब-खुद फूटने लग जाय इस कोशिश में कोई कमी छोडऩा नहीं चाहता।
बचपन से थी कलाकारी की चाह
उम्र के 64वें वर्ष के पड़ाव पर पहुंच चुके गुलाम मुस्तफा के अंदर प्रतिमाओं में कलाकारी का रंग भरने की चाह बचपन से ही थी। उनका कहना रहा कि वह जब भरत मिलाप, जन्माष्ठमी आदि के मौकों पर प्रतिमाएं बनती थीं तो पूरी-पूरी रात बैठकर देखा करते थे। साथ ही घर के कागज आदि से बनाया करते थे। घर से गायब रहने को लेकर उन पर पिता व चाचा की मार भी पड़ती थी। इसके बाद भी अपनी उस चाह को उन्होंने जीविकोपार्जन से जोड़ा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
1984 में मिला मौका
वर्ष 1984 में उन्हें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जिला जेल में झांकी सजाने का मौका मिला। एक बार उनकी झांकी क्या सजी फिर तब से लेकर आज तक जिला जेल सहित पुलिस लाइन में उनकी ही झांकी सजती चली आ रही है। बताया कि जब तक जिंदगी रहेगी झांकियां सजाते रहेंगे।
परिवार व पुत्रों का मिलता है भरपूर साथ
उनके इस काम में पूरे परिवार सहित पुत्र अब्दुल कलीम उर्फ गुड्डू व मो. शमीम का पूरा साथ मिलता है। बताया कि उनका पूरा परिवार इस काम में सहयोग करता है। उनकी सच्ची लगन, मेहनत का परिणाम है कि भदोही, मीरजापुर, जौनपुर जिलों में दशहरा व भरत मिलाप पर निकलने वाले लाग-विमान में उनकी कलाकारी कई वर्षों से अव्वल साबित होती चली आ रही है। एक सवाल पर कहा कि वह झांकियां सजाते हैं, तो नमाज व इबादत करते हैं और ताजिएदार भी हैं।