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Sonbhadra में जैविक खेती से बुलंदी को छू रहे शिवशरण सिंह, प्रकृति का भी संरक्षण

शोहरत हासिल करने वाली नौकरियों से मुंह मोड़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जैविक प्रक्रियाओं से जोडऩे वाले शिवशरण सोनभद्र में किसी परिचय के मोहताज नहीं है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 11 Sep 2020 07:51 AM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 09:46 AM (IST)
Sonbhadra में जैविक खेती से बुलंदी को छू रहे शिवशरण सिंह, प्रकृति का भी संरक्षण
Sonbhadra में जैविक खेती से बुलंदी को छू रहे शिवशरण सिंह, प्रकृति का भी संरक्षण

सोनभद्र [सुजीत शुक्ल]। शोहरत हासिल करने वाली नौकरियों से मुंह मोड़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जैविक प्रक्रियाओं से जोडऩे वाले शिवशरण जनपद में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। इनकी पहचान एक ऐसी उन्नतिशील खेती से है जिसमें कम रकबे और कम लागत में बड़ी आय अर्जित करते हैं। प्रयागराज से इंजीनियर की पढ़ाई करने वाले शिवशरण ङ्क्षसह अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने गए हैं।

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मूलरूप से बभनी के रहने वाले शिवशरण छह भाई हैं। परिवार बड़ा होने के कारण जीवन में संघर्ष कम न था। फिर भी हर मेधावी बच्चे की तरह इनकी भी अपनी इच्छा थी। बनवासी सेवा आश्रम से परिवार जुड़ा था लिहाजा आठवीं तक की पढ़ाई यहीं से किए। नौ से लेकर 12वीं तक की शिक्षा भी अपने ही इलाके के सरकारी और निजी विद्यालयों से लिए। इंजीनियर बनकर उड़ान भरने का मन में ख्वाब लिए 1983 में पहुंच गए इलाहाबाद (अब प्रयागराज) वहां से आइइआरटी यानी इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ रूरल टेक्नोलॉजी किए। इलेक्ट्रानिक्स से आइइआरटी करने के बाद एक-दो कंपनियों से इन्हें आफर लेटर भी मिला, लेकिन अपनी मिट्टी से इतना प्यार था कि इंजीनियर का ख्वाब वहीं पर छोड़ दिए और आ गए गोविंदपुर। यहां आश्रम में रहकर पहले सात बिस्वा जैविक खेती किए। उसका परिणाम बेहतर आने पर 1997 से हर वर्ष कुछ न कुछ रकबे में जैविक खेती करने लगे। धीरे-धीरे लगन और प्रकृति प्रेम को देखर आश्रम ने इन्हें खेती-बारी का प्रमुख बना दिया। आज आश्रम के कुल 100 एकड़ भूमि पर जैविक खेती करते हैं। कहते हैं इससे मिट्टी भी स्वस्थ हो रही है और जैविक खेती से उपजे अन्न को खाने से व्यक्ति भी स्वस्थ रहता है। यानी एक साथ दो-दो हित सध रहा है। इतना ही नहीं ये आश्रम में आने वाले किसानों को जैविक खेती के तौर-तरीकों को बताने के साथ-साथ इसका लाभ भी गिनाते हैं। बताते हैं कि इससे खेती की लागत करीब 30 से 40 फीसद तक कम हो जाती है।

जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण जरूरी

जैविक खेती के बारे में शिवशरण सिंह बताते हैं कि इसमें केवल लगन की जरूरत होती है। जिस भी किसान के अंदर यह है वह जरूरी प्रशिक्षण लेकर खेती कर सकता है। हां प्रशिक्षण न लेने पर थोड़ी दिक्कत हो सकती है। जैसे जैविक खाद तैयार करने, कीट लगने पर क्या करना है इसका प्रबंधन जरूरी है। उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि अगर कोई किसान सब्जी में बैगन की खेती करता है तो उसे यह देखना चाहिए कि जो कीट लगते हैं वह कौन से होते हैं। इसके लिए थोड़ी निगरानी की जरूरत होती है।

जैविक खेती से लाभ

- सबसे पहले खेती की लागत में 30-40 फीसद की कमी।

- जैविक खाद से तैयार अन्न को खाने से स्वास्थ ठीक रहता है।

- मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है, इससे उत्पादन दर बढ़ता है।

- हर वर्ष खाद की किल्लत से मुक्ति मिल जाएगी।

- रासायनिक खेती की अपेक्षा जैविक खेती का अन्न महंगा बिकता है।


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