Sharad Poornima 2020: शरद पूर्णिमा के अनुष्ठान जिससे प्रसन्न होती हैं श्री लक्ष्मी, जानिए पूजन के वैदिक विधान
शरद पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात आकाश दीप जलाकर दीपदान करने की महिमा मानी गई है। दीप दान करने से समस्त प्रकार के दुख दूर होते हैं तथा सुख समृद्धि का आगमन होता है आकाश दीप प्रज्वलित करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।
वाराणसी, जेएएनएन। सनातन धर्म की परंपरा में आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाने की धार्मिक और पौराणिक परंपरा रही है। शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित मानी जाती है।
ख्यात ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने जागरण को बताया कि ज्योतिष गणना के अनुसार संपूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा से निकली रोशनी समस्त रूपों वाली बताई गई है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है जबकि रात्रि को दिखाई देने वाला चंद्रमा अपेक्षाकृत अधिक बड़ा होता है। ऐसी मान्यता है कि भू लोक पर लक्ष्मी जी घर घर विचरण करती हैं, जो जागता रहता है उस पर उनकी विशेष कृपा होती है।
पूर्णिमा का समय : आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 30 अक्टूबर शुक्रवार शाम 5:46 पर लग रही है जो कि 31 अक्टूबर शनिवार को रात्रि 8:19 तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार पूर्णिमा तिथि 31 अक्टूबर, शनिवार को रहेगा जिसके फलस्वरूप स्नान दान व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे।
आठ स्वरूपों की पूजा : श्री लक्ष्मी जी के आठ स्वरूप माने गए हैं जिनमें धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्या लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजय लक्ष्मी है लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना आदि रात्रि में किया जाता है। इस बार 30 अक्टूबर शुक्रवार को रात्रि में लक्ष्मी जी की विधि विधान पूर्वक पूजा का आयोजन किया जाएगा। कार्तिक स्नान के यम व्रत व नियम तथा दीपदान 31 अक्टूबर शनिवार से प्रारंभ हो जाएंगे। जबकि पूजा के विधान के तौर पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समस्त कार्यों से निवृत होकर अपने आराध्य देवी देवता की पूजा के बाद शरद पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
पूजन विधि : श्री लक्ष्मी को वस्त्र, पुष्प, धूप, दीप, गंध, अक्षत, तांबूल, सुपारी, ऋतु फल एवं विविध प्रकार के मिष्ठान अर्पित किए जाते हैं। दूध से बनी खीर जिसमें दूध, चावल, मिश्री, मेवा, शुद्ध देसी घी मिश्रित हो उसका नैवेद्य का भोग भी लगाया जाता है। रात्रि में अपनी शरद पूर्णिमा तिथि पर भगवती श्री लक्ष्मी की आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। लक्ष्मी जी के समक्ष शुद्ध देसी घी का दीपक प्रज्वलित करके उनकी महिमा में श्री सूक्त, श्री कनकधारास्राेत, श्री लक्ष्मी स्तुति, श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने एवं श्री लक्ष्मी जी के प्रिय मंत्र 'ओम श्री नमः' जप करना अत्यंत फलदायी माना गया है।
औषधीय मान : आरोग्य लाभ के लिए शरद पूर्णिमा के चरणों में औषधीय गुण विद्यमान रहते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि में दूध से बनी खीर को चांदनी की रोशनी में अति स्वच्छ वस्त्र से ढंक कर रखी जाती है। ध्यान रहे कि चंद्रमा के प्रकाश की किरणें उस पर पड़ती रहें। भक्ति भाव से प्रसाद के तौर पर भक्तों में वितरण करके स्वयं भी ग्रहण करते हैं। जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है तथा जीवन में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है।
पौराणिक मान्यता : पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन यमुना तट पर मुरली वादन करके गोपियों के संग रास रचाया था। जिसके फलस्वरूप इस दिन उपवास रखते हुए इस उत्सव को मनाते हैं। इस दिन खुशियों के साथ हर्ष उल्लास के संग रात्रि जागरण भी करते हैं।
पुरखों को याद करने का मौका : इस पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है शरद पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात तक आकाश दीप जलाकर दीपदान करने की महिमा मानी गई है। दीप दान करने से समस्त प्रकार के दुख दूर होते हैं तथा सुख समृद्धि का आगमन होता है, आकाश दीप प्रज्वलित करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।