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सोनभद्र के कई दुर्गम इलाकों में जाने के लिए नाव से जलमार्गों पर चलना मजबूरी, कई जलमार्ग काफी भयावह

अपनी दुर्गम परिस्थितियों के लिए काला पानी कहे जाने वाले रेणुकापार के कई इलाके आज भी आवागमन के लिहाज से सदियों पुराने जान पड़ते हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 15 Dec 2019 07:30 AM (IST)Updated: Sun, 15 Dec 2019 10:24 AM (IST)
सोनभद्र के कई दुर्गम इलाकों में जाने के लिए नाव से जलमार्गों पर चलना मजबूरी, कई जलमार्ग काफी भयावह
सोनभद्र के कई दुर्गम इलाकों में जाने के लिए नाव से जलमार्गों पर चलना मजबूरी, कई जलमार्ग काफी भयावह

सोनभद्र, जेएनएन। अपनी दुर्गम परिस्थितियों के लिए काला पानी कहे जाने वाले रेणुकापार के कई इलाके आज भी आवागमन के लिहाज से सदियों पुराने जान पड़ते हैं। रेणुका नदी के दोनों ओर लगभग 50 से ज्यादा टोलों तक पहुंचने के लिए आज भी घनघोर जंगलों और खतरनाक जलमार्गों से होकर गुजरना पड़ता है। जंगली मार्गों में जहां पिछले एक दशक में खतरनाक जानवरों से भेंट में कमी आयी है वहीं जलमार्ग आज भी भयावह बने हुए हैं। कुछ जलमार्ग 50 वर्ष पुराने हैं तो कुछ सदियों पुराने हैं। वर्तमान में इन जलमार्गों पर चलने वाली नाव काफी जर्जर हो चुकी हैं। 

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बीते सोमवार को रेणुका नदी में हुए नाव हादसे में भी नाव की जर्जरता बड़ा कारण बना था। यह जलमार्ग सदियों पुराना रहा है लेकिन, 50 के दशक में बने ओबरा डैम के कारण नदी के डाउन स्ट्रीम हिस्से में प्रवाह पूरी तरह बदल गया। इस मार्ग पर रोजाना आवागमन होता है। ओबरा डैम के डूब क्षेत्र की वजह से लगभग दर्जन भर टोलों तक पहुंचने के लिए नाव की लम्बी सवारी करनी पड़ती है। ओबरा डैम के आस पास के कई टोलों तक पहुंचना टेढ़ी खीर हो गया है। कई तटवर्ती टोलों तक आवागमन की व्यवस्था नहीं होने के कारण आज भी ग्रामीण जलमार्ग का प्रयोग करते हैं।

मुख्य तौर पर ओबरा ही खरीदारी के लिए ग्रामीण आते हैं लेकिन, आधा दर्जन से ज्यादा टोलों के ग्रामीणों को ओबरा से लगभग 6 किमी दूर ओबरा गांव जलमार्ग से आना पड़ता है। ओबरा गांव-बकिया,ओबरा गांव-प्लसो,प्लसो-चैना टोला,कर्री-ओबरा गांव,कर्री-ओबरा पम्प हाउस सहित दर्जन भर जलमार्ग हैं जिसका दैनिक तौर पर प्रयोग होता है। इनमें कई मार्ग तो 10 किमी लम्बा है। जिनपर कई घण्टे लगने के साथ भारी जोखिम होता है। ओबरा डैम की चौड़ाई जहां कई जगहों पर दो किमी से ज्यादा है वहीं गहराई भी काफी ज्यादा है। जंगली मार्ग हैं चुनौतीपूर्ण रेणुका घाटी के सबसे ऊंची पहाड़ी श्रृंखला के तौर पर जाने जाने वाले पर्वत बाबा के लम्बे चौड़े हिस्से से गुजरने वाले लगभग आधा दर्जन मार्ग काफी खतरनाक माने जाते हैं।

लगभग आठ किलोमीटर लम्बी यह पहाड़ी श्रृंखला में ओबरा गांव-शिउर मार्ग, कडिय़ा-औराडांड मार्ग, कडिय़ा-फफराकुंड मार्ग, शिउर-कर्री घाट मार्ग, लोहियाकुंड मार्ग से गुजरना काफी खतरनाक रहता है। इस मार्ग से गुजरने के दौरान ग्रामीण पर्वत बाबा को याद करते रहते हैं। इन पहाडिय़ों पर तेंदुआ, लकड़बग्गा, सभी तरह के सांप सहित कई विषैले जन्तु पाए जाते हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत बरसात में सामने आती है। बरसात के मौसम में इन मार्गों से गुजरना मौत को दावत देने जैसा होता है। कई मार्ग तो ऐसे हैं जहां लगभग चार किलोमीटर तक घनघोर जंगलों से गुजरना पड़ता है। बीते 25 अक्टूबर को रेणुकापार के ग्राम पंचायत पनारी के दुर्गम खाडऱ में जंगली जानवर के हमले से जहां दो ग्रामीणों की मौत हो गई थी वहीं एक गम्भीर रूप से घायल हो गया था। 


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