Satyajit Ray की Bangla film ओपुर संसार के बाद जय बाबा फेलूनाथ की varanasi में हुई थी शूटिंग
Satyajit Ray Death Anniversary फिल्मकार ने भी बनारस को बांग्ला फिल्म ओपुर संसार के बाद जय बाबा फेलूनाथ में काशी के हर पक्ष को दिखाने का प्रयास किया है।
वाराणसी [सौरभ चक्रवर्ती]। Satyajit Ray Death Anniversary सुबह बनारस, शाम बनारस। गंगा की हवा का ठाठ बनारस, घाट, घाट बस घाट बनारस। गंगा जमुनी तहजीब बनारस, बहुत पुरा तस्वीर बनारस...। बनारस की यह खूबियां सदियों से लोगों को लुभाती रही हैं। लेखक हो या कलाकार, सभी को यह भूमि बरबस अपनी ओर खींच लाती है। ख्यातिलब्ध फिल्मकार सत्यजित रे (जन्म : 2 मई, 1921- पुण्यतिथि : 23 अप्रैल 1992) भी जब-जब बनारस आए, यही कहते रहे कि 'जो बात काशी में वह कहीं नहीं...।' अर्से से काशी को कैमरे में कैद करने को लेकर देश-दुनिया के लोगों की यहां जुटान होती रही है। काशी को रुपहले पर्दे पर उतारने में कभी मजहब व भाषा बाधक नहीं बनी। फिल्मकार सत्यजित रे ने भी बनारस को बांग्ला फिल्म 'ओपुर संसार' के बाद 'जय बाबा फेलूनाथ' में काशी के हर पक्ष को दिखाने का प्रयास किया है। दोनों फिल्में खूब सराही गईं।
दो बार आए बनारस, गुजारे तीन सप्ताह
फिल्मकार सत्यजित रे का प्रथम बनारस आगमन फिल्म 'ओपुर संसार' की शूटिंग के दौरान 1958 में हुआ था। लगभग एक सप्ताह यहां रहे। दोबारा फरवरी, 1978 में 'जय बाबा फेलूनाथ' की शूटिंग के दौरान 16 दिन वाराणसी में रहे।
फिल्मों में सांड़, मंदिर, संन्यासी सबको दिया स्थान
ओपुर संसार व जय बाबा फेलूनाथ फिल्म में काशी के भित्ति चित्र, सांड़, संन्यासी, घाट, गंगा, गलियां व मंदिरों को भी स्थान दिया गया है।
खूबसूरत मिजाज, बसता पूरा देश
सत्यजित रे ने अपनी किताब 'एकेई बोले शूटिंग- फेलूदार संगे काशी ते (इसी को कहते शूटिंग- काशी में फेलू दा के संग)' में लिखा है कि फिल्मों के लिए बनारस शहर का एक अलग मिजाज है। एक ऐसा शहर है, जहां मंदिर, सड़क व घाट पर आंख, कान और नाक तीनों का प्रयोग यानी आंख से आकर्षण देखना, कान से धार्मिक आयोजनों को सुनना व आयोजनों को सुगंध से महसूस करना अन्यत्र नहीं मिलेंगे। गोदौलिया चौराहे पर तो पूरे देश की संस्कृति मानो उतर आती है।
फेलूनाथ की शूटिंग देखने घाट पर जाते थे
बचपन में जब जय बाबा फेलूनाथ की शूटिंग हो रही थी तो उसे देखने घाट पर जाते थे। पांडेय हवेली स्थित मूर्तिकार वंशीपाल से मां दुर्गा की प्रतिमा लेते वक्त सत्यजित रे से बातचीत भी हुई थी।
- देवाशीष दास, बंगीय समाज के सचिव