संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परीक्षा अभिलेखों ने लगाया 'दाग', फर्जी ढंग से सत्यापन पर कार्रवाई तय
विश्वविद्यालय के टेबुलेशन रजिस्ट्रर (टीआर) पर किसी भी अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं है। इसके चलते परीक्षा अभिलेखों में हेराफेरी भी हुई है। टीआर के पन्ने बदल दिए गए हैं। इसे देखते हुए विश्वविद्यालय की कार्य परिषद ही वर्ष 1985 से 2009 तक के परीक्षा अभिलेख संदिग्ध घोषित कर चुकी है।
वाराणसी, जेएनएन। परीक्षा अभिलेखों में हेराफेरी व फर्जी ढंग से सत्यापन करने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व अधिकारी सहित 19 कर्मचारी पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है। फिलहाल विश्वविद्यालय प्रशासन विशेष अनुसंधान दल (एसआइटी) की संस्तुति पर शासन के निर्देशों का परीक्षण करने में जुटा हुआ है। इसके लिए एक समिति भी बनाने पर विचार किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय के टेबुलेशन रजिस्ट्रर (टीआर) पर किसी भी अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं है। इसके चलते परीक्षा अभिलेखों में हेराफेरी भी हुई है। टीआर के पन्ने बदल दिए गए हैं। इसे देखते हुए विश्वविद्यालय की कार्य परिषद ही वर्ष 1985 से 2009 तक के परीक्षा अभिलेख संदिग्ध घोषित कर चुकी है। वहीं परीक्षा अभिलेखों में हेराफेरी के लिए विशेष अनुसंधान दल (एसआइटी) ने नौ पूर्व कुलसचिवों व परीक्षा अधिकारियों को जिम्मेदार माना है। कार्रवाई की जद में ऐसे कर्मचारी भी हैं जो कुछ दिनों के लिए परीक्षा विभाग में अस्थायी तौर पर संबद्ध रहे। वहीं कुछ की छवि साफ-सुथरी है। फर्जीवाड़े के मूल में शामिल एक कर्मचारी पिछले सात सालों से फरार चल रहा है। बहरहाल एसआइटी की संस्तुति पर कार्रवाई के लिए शासन के विशेष सचिव मनोज कुमार के पत्र से विश्वविद्यालय में खलबली मची हुई है।
एक हजार शिक्षकों पर गाज गिरना तय
वर्ष 2004 से 2014 तक बेसिक शिक्षा विभाग के परिषदीय विद्यालय में संस्कृत विश्वविद्यालय के डिग्रीधारक बड़े पैमाने पर अध्यापक पद पर चयनित हुए थे। एसआइटी ने सूबे के सभी 75 जिलों ने विश्वविद्यालय के डिग्रीधारी शिक्षकों का नए सिरे सत्यापन कराया है। इसमें करीब करीब एक हजार शिक्षकों की डिग्री फर्जी होने की संभावना है। ऐसे में अब फर्जी डिग्रीधारकों पर भी गाज गिरनी तय है।