सम्राट अशोक की एक नायाब निशानी के मीरजापुर जिले में प्रशासनिक अनदेखी से नष्ट होने का बढ़ा खतरा
अशोक स्तंभ तो वाराणसी के सारनाथ में मौजूद है मगर इससे जुड़े अन्य शिलालेख और दस्तावेज भी पूर्वांचल में मौजूद हैं।
मीरजापुर [कुमार आनंद]। अशोक स्तंभ तो वाराणसी के सारनाथ में मौजूद है मगर इससे जुड़े अन्य शिलालेख और दस्तावेज भी पूर्वांचल में मौजूद हैं। दुनिया भर में अपनी महानता के लिए प्रसिद्घ सम्राट अशोक की एक नायाब निशानी अहरौरा जलाशय में स्थित है। जलाशय के किनारे सम्राट अशोक का स्तंभ लेख उपेक्षित पड़ा है, पुरातत्व विभाग द्वारा कई वर्षों पूर्व इसे सुरक्षित किए जाने का प्रयास किया गया लेकिन समुचित देखरेख नहीं होने पर यह ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने के कगार पर है।
सम्राट अशोक के प्रशासन के बारे में जानकारी इस स्तंभ का अपना ही महत्व है। इस स्तंभ पर लिखे लेखों की भाषा प्राकृत और लिपी ब्राह्मी है। अनूठी प्रकृति के बीच स्थित यह स्तंभ लेख सम्राट अशोक के आंतरिक प्रशासन के विषय में बताती है। साथ ही यह सम्राट के दृष्टिकोण, प्रजा के साथ नैतिक, आध्यात्मिक एवं पिता जैसे संबंधों, अंहिसा के लिए उनकी प्रतिबद्घता और युद्व में सम्राट के त्याग के बारे में बताती है। इन कार्यों के लिए अशोक ने निषेधात्मक और प्रयोगात्मक नीतियां बनाई थी, यह भी इसी लेख से पता चलता है। अशोक की इन निषेधात्मक नीतियों में सांसारिक मनोविनोद, पशुबलि, अनावश्यक कार्यों में लिप्त होना, खुद का बखान करना तथा प्रयोगात्मक नीतियों में आत्म संयम, मन की शुद्घता, क़तज्ञत, माता-पिता की सेवा, ब्राहम्णों और सन्यासियों की सेवा व दान तथा धार्मिक विषयों पर आपसी सामंजस्य का उद्बोधन है। समाज में जनुपयोगी होने के साथ ही इसका विकास किया जाए तो पर्यटन की दृष्टि से सम्राट अशोक के स्तंभ लेख जैसे अनमोल विरासतों को विशेष श्रेणी में चिंहित कर अगर इनका संरक्षण किया जाए तो क्षेत्र के पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
धर्म घोष द्वारा विजय का उल्लेख
इस स्तंभ लेख पर इन नीतियों को लागू करने के लिए सम्राट ने पशुओं को अनावश्यक मारने पर प्रतिबंध, जानवरों और इंसानों के लिए स्वास्थ्य सुविधा, युद्व घोष के स्थान पर धर्म घोष द्वारा विजय का उल्लेख किया गया है। सम्राट अशोक ने न केवल अपने साम्राज्य और पड़ोस देश के अतिरिक्त दक्षिण और पश्चिमी देशों के समकालीन राजाओं जैसे सीरिया, इजिप्ट, मेसिडोनिया, सीरीन व इपिरस के साम्राज्य में भी इन उपदेशों का प्रचार किया। जलाशय में स्थित यह अभिलेख इस बात का प्रमाण देते हैं कि सम्राट अशोक द्वारा प्रतिपादित यह उपदेश केवल उपदेश नहीं रहे। इन्हें व्यवहार में भी उपयोग किया गया। जिस कारण सम्राट अशोक की गणना दुनिया के महान शासकों में की जाती है।