संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय : शास्त्री-आचार्य में सीटें 2160 और आवेदक महज 1179, 50 फीसद सीटें खाली रहना तय
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के शास्त्री-आचार्य के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए 1179 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है। इसमें शास्त्री में 779 व आचार्य में 400 आवेदक शामिल है। जबकि शास्त्री-आचार्य के 18 विभागों में 60-60 सीटें यानी 2160 सीटें निर्धारित है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के शास्त्री-आचार्य के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए 1179 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है। इसमें शास्त्री में 779 व आचार्य में 400 आवेदक शामिल है। जबकि शास्त्री-आचार्य के 18 विभागों में 60-60 सीटें यानी 2160 सीटें निर्धारित है। सहित्य व व्याकरण को छोड़कर अन्य सभी पाठ्यक्रमों में आवेदकों की संख्या काफी कम है। मीमांसा में तो आवेदकों की संख्या शून्य है। वहीं शास्त्री के 11 विभागों में आवेदकों की संख्या आधा दर्जन से भी कम हैं। ऐसे में करीब 50 फीसद सीटें खाली रहना तय है।
वहीं दाखिले के लिए काउंसिलिंग पिछले तीन दिनों से जारी है। अंतिम दिन बुधवार को भी सहित्य व व्याकरण को छोड़कर अन्य विभागों में अभ्यर्थियों की टोटा रहा। इसे देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने काउंसिलिंग के लिए अभ्यर्थियों को तीन दिनों का मौका और देने पर विचार कर रही है। यही नहीं साहित्य व व्याकरण में आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों को दूसरे विभागों में दाखिला लेने की भी सुविधा दी जाएंगी। ऐसे में सीट फुल होने के कारण जिन अभ्यर्थियों का साहित्य व व्याकरण दाखिला नहीं हो सका है। वह विश्वविद्यालय के दूसरे विभागों में दाखिले के लिए प्रार्थना पत्र दे सकते हैं। इसके बाद भी 16 विभागों में सीटें खाली रहना तय माना जा रहा है।
‘‘साहित्य व व्याकरण में रोजगार की संभावनाएं अधिक है। दोनों विषयों में व्यापकता अधिक है। इसके कारण ज्यादातर छात्र साहित्य व व्याकरण लेकर पढ़ना चाहते हैं। वहीं मीमांसा, पालि व थ्रेरवाद, बौद्ध दर्शन, जैन दर्शन, न्यायवैशेषिक, साख्ययोगतंत्रागम, प्राचीन राजशास्त्र-अर्थशास्त्र, पुराणेतिहास, धर्मशास्त्र में रोजगार के सीमित अवसर है। इसके चलते इन पाठ्यक्रमों की छात्रों की संख्या कम है। हालांकि संस्कृत पढ़ने वाला विद्यार्थी अाधुनिक विषयों की तुलना में कम बेरोजगार है।
-प्रो. हरिशंकर पांडेय, छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष
‘‘संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना प्राच्य विद्या के संरक्षण के लिए की गई है। ऐसे में किसी भी विषय में एक भी छात्र है तो उस विद्या के संरक्षण का मुख्य उद्देश्य पूरा हो रहा है। रही बात छात्र संख्या की तो स्थापना काल से ही प्राच्य विद्या की सीटें कभी फुल नहीं हैं। छात्रसंख्या बढ़ाने के लिए संस्कृत को रोजगारपरक बनाना होगा। नई शिक्षा नीति में इस पर बल भी दिया गया है।
-प्रो. राम पूजन पांडेय, पूर्व छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष
शास्त्री-आचार्य के कुछ विभागों में आवेदकों की संख्या इस प्रकार
पाठ्यक्रम शास्त्री आचार्य
मीमांसा 00 00
पालि व थ्रेरवाद 01 00
भाषा विज्ञान 02 02
बौद्ध दर्शन 03 02
जैन दर्शन 03 05
न्यायवैशेषिक 03 02
साख्ययोगतंत्रागम 04 08
प्राचीन राजशास्त्र-अर्थशास्त्र 05 06
पुराणेतिहास 05 06
धर्मशास्त्र 05 12
प्राचीन व्याकरण 01 32
तुलनात्मक धर्म दर्शन 07 04
वेदांत 08 12
ज्योतिष 30 29
वेद 115 40
साहित्य 257 117
नव्य व्याकरण 301 92
प्राकृत एवं जैनागम 21 06
संस्कृत विद्या 13 23