Sampoorna Kranti Diwas : लंका पर बजा क्रांति का डंका, तीन घण्टे के प्रचार में जेपी को सुनने उमड़ें युवा
वाराणसी के सिंह द्वार से लंका चौमोहनी तक सिर्फ और सिर्फ नरमुंड ही नज़र आ रहे थे। सभी एक मन एक प्राण सिर्फ सत्ता ही नहीं व्यवस्था परिवर्तन का संकल्प लेने का अरमान। कुछ कर गुजरने का हौसला ठाठे मारता हुआ कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
वाराणसी, [कुमार अजय]। आओ कृषक, श्रमिक, नागरिकों इंकलाब का नारा दो, कविजन, गुरुजन, बुद्धिजीवियों, अनुभव भरा सहारा दो, फिर हम देखें सत्ता कितनी बरबर है बौराई है, तिलक लगाने तुम्हें जवानों क्रांति द्वार पर आई है।
बीएचयू के सिंह द्वार पर स्थित मालवीय प्रतिमा के ठीक आगे बांधे गए मंच के माइक से साथी अरुण चौबे के स्वर में गूंज रहे इस विप्लवी गीत की गूंज से थर्रा रहा था शहर का लंका बाजार। विश्वविद्यालय परिसर में लोकनायक जय प्रकाश नारायण की सभा न होने पाए इस कूट योजना के तहत तीन दिन पहले ही तत्कालीन वाइसचांसलर कालू लाल श्रीमाली के आदेश पर बीएचयू में साइनडाई की घोषणा हो चुकी थी। ... मगर उफनती हुई तरुणाई की राह भला कौन रोक पाया है। संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है। के नारे से आकाश को गुंजाते भिंची हुई मुठ्ठियों को हवा में उछाल अपने इरादे जताते छात्र युवाओं के जत्थे ठठ के ठठ लंका पर जुटते जा रहे थे। सन 1975 के मार्च महीने की शुरुआती तारीखों बीएचयू छात्र संघ का चुनाव संपन्न हुआ था।
इसी बीच छात्रसंघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मोहन प्रकाश, उपाध्यक्ष अंजना प्रकाश, महामंत्री भरत सिंह अपने-अपने पदों की शपथ ले चुके। संपूर्ण क्रांति की रणभेरी काशी से भी गुंजनी चाहिए इस विचार पर सर्व सम्मति मुहर लग जाने के बाद मोहन कानपुर में जेपी से मिलकर सभा के आयोजन व तिथि पर उनकी स्वीकृति ले चुके थे। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसकी भनक लगते ही बंदी की घोषणा कर दी। इस ऐतिहासिक सभा के आयोजन की कि तुरत-फुरत तैयारियों तथा इस सभा के विराठ स्वरूप की चर्चा करते हुए मोहन प्रकाश आज भी रोमांचित हो उठते हैं। संपूर्ण क्रांति दिवस 5 जून की पूर्व संध्या पर वरिष्ठ समाजवादी नेता दादा देवव्रत मजूमदार की मौजूदगी में तय हुआ कि सभा टलेगी नहीं। महज दो घण्टे में मंच बाधा गया।
सभा का समय तीन बजे का तय था। दोपहर के 12 बज रहे थे। आनन-फानन में अग्रवाल रेडियो के भोंपू बांधकर चार रिक्शे छूट भागे सभा में भागीदारी की अपील करने। उधर रिक्शे अभी घूम ही रहे थे कि इधर उनकी वापसी से पहले से ही छात्र-युवाओं की भीड़ से पटने लगी थी लंका बाजार के दोनों तरफ की सड़कें। कोहिनूर स्टोर से मंच तक का विशाल हिस्सा तो केवल छात्राओं की भीड़ ठसमठस था। सिंह द्वार से लंका चौमोहनी तक सिर्फ और सिर्फ नरमुंड ही नज़र आ रहे थे। सभी एक मन एक प्राण सिर्फ सत्ता ही नहीं व्यवस्था परिवर्तन का संकल्प लेने का अरमान। कुछ कर गुजरने का हौसला ठाठे मारता हुआ कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। हुंकारता हुआ। उस सभा के संचालक रहे मोहन प्रकाश बताते हैं बहुतेरे आयोजन किंतु लंका बाजार की सड़कों को इस तरह चरमराता और जमीन आसमान को थर्राता कभी न देखा था। जेपी ने उस दिन शहर में और छोटी-बड़ी सभाएं की थी। किंतु खुद उन्होंने माना कि आंदोलन के भविष्य की तस्वीर उन्हें लंका की सभा में थी दिखाई पड़ी।