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शहादत को सलाम : जौनपुर में जब अंग्रेजों ने रामानंद और रघुराई को पेड़ पर लटका कर मारी थी गोली

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत पर उतारू रामानंद व रघुराई को सन 1942 में 23 अगस्त के ही दिन जालिम अंग्रेज सिपाहियों ने उनके अगरौरा स्थित घर के सामने पेड़ से बांधकर गोली मार दी थी। यह रोंगटे खड़े कर देने वाला धानियामऊ पुल काण्ड से ही जुड़ा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 22 Aug 2021 04:42 PM (IST)Updated: Sun, 22 Aug 2021 06:20 PM (IST)
शहादत को सलाम : जौनपुर में जब अंग्रेजों ने रामानंद और रघुराई को पेड़ पर लटका कर मारी थी गोली
जौनपुर में बक्शा विकास खंड के अगरौरा गांव में स्थित बलिदानी स्मारक ।

जागरण संवाददाता, जौनपुर। ‘शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों की यहीं बाकी निशा होंगा। ’उक्त पंक्तियां चाहे कहीं अन्यत्र भले चरितार्थ हो रही हो रही हों, लेकिन अगस्त क्रांति 1942 की जंग ए आजादी में अंगेजी हुकूमत से बगावत करने वाले बलिदानी रामानंद व रघुराई चौहान के मामले में बिल्कुल झूठी साबित हो रही हैं। 23 अगस्त 1942 को शहादत पाने वाले ये जाबांज क्रांतिकारियों की स्मृतियां अपने क्षेत्र ही इतिहास बन गई हैंं। 23 अगस्त को बक्शा थाना क्षेत्र के अगरौरा गांव स्थित बने बलिदानी स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करने विरले लोग ही होते हैं। जिला प्रशासन तो इन वीर सपूतों को मानो भूल ही चुका है।

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अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत पर उतारू रामानंद व रघुराई को सन 1942 में 23 अगस्त के ही दिन जालिम अंग्रेज सिपाहियों ने उनके अगरौरा स्थित घर के सामने पेड़ से बांधकर गोली मार दी थी। इतना ही नहीं शव को चिलबिल के पेड़ की डाली पर टांग दिया गया जो तीन दिनों तक लटकती रही। बताते हैं कि अंग्रेजों ने जाते-जाते धमकी दी थी कि जो भी शव तीन दिनों के अंदर उतारे गा उसका भी यही हाल होगा। इन शहीदों की याद में परिवार व गांव वालों के सहयोग से बलिदानी स्तंभ बनवा दिया। यह रोंगटे खड़े कर देने वाला अगरौरा कांड भी धानियामऊ पुल काण्ड से ही जुड़ा है।

16 अगस्त 1942 को आजादी के दीवानों द्वारा धानियामऊ पुल तोड़ते समय जब पुलिस की गोली से हैदरपुर निवासी 16 वर्षीय जमीदार सिंह, रामपदारथ, रामनिहोर और रामअधार शहीद हुए तो आजादी के इन दीवानों की पूरी टोली ही जैसे पागल हो गई। तैश में आए इन क्रांतिकारियों ने पुलिस इंस्पेक्टर को मौत के घाट उतार दिया। उसी दिन की घटना से ही रामानंद व रघुराई दोनों ही जाबांज क्रांतिकारी अंग्रेजी हुकूमत के आंख की किरकिरी बन गए। 22 अगस्त की रात्रि में अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी लड़ाई और तेज करने की रणनीति तैयार करने के लिए हो रही गुप्त बैठक से ही इन क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। दहशत फैलाने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने दोनों को पहले पेड़ से बांधा और फिर गोली मार दी।


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