तंगहाली में भी नसीम अख्तर ने जारी रखा फुटबाल खेलना, जुनून ने बनाया अंतरराष्ट्रीय स्तर के फुटबालर
जुनून जोश जज्बा ये कुछ ऐसे शब्द हैं जो व्यक्ति को आम से खास बना देते हैं। कुछ ऐसा ही है बनारस के दालमंडी निवासी फुटबालर नसीम अख्तर के साथ।
वाराणसी [कृष्ण बहादुर रावत]। जुनून, जोश, जज्बा ये कुछ ऐसे शब्द हैं, जो व्यक्ति को आम से खास बना देते हैं। कुछ ऐसा ही है बनारस के दालमंडी निवासी फुटबालर नसीम अख्तर के साथ। जुनून ऐसा कि दिन-रात फुटबाल के बारे में सोचना। जोश ऐसा कि तंगहाली में भी फुटबाल खेलते रहना। जज्बा ऐसा कि फुटबाल खेल के चलते पिता के जनाजे में शामिल नहीं हो सके। आज वो अंतरराष्ट्रीय स्तर के फुटबालर बन गए हैं। उनका चयन भारतीय फुटबाल टीम में हुआ है। मैक्सिको में 16 अक्टूबर से आयोजित नेशन कप सेवेन ए साइड में नसीम अपने हुनर का प्रदर्शन करेंगे।
एक दौर था कि जब फुटबाल खेलने के लिए उनके पास जूते और जर्सी तक नहीं थे। नसीम उस समय फुटबॉल जर्सी खरीदने के लिए दुकान पर नौकरी कर पैसे कमाए ताकि घर की आर्थिक स्थिति पर किसी तरह की आंच न आए। इसी फुटबाल खेल से उन्हें पश्चिम बंगाल राज्य विद्युत बोर्ड में नौकरी मिल गई। अब वह वहीं रहते हैं। भारतीय टीम में बने गोलकीपर नसीम ने बताया कि 16 से 20 अक्टूबर तक मैक्सिको में नेशन कप का आयोजन हो रहा है। इसमें हिस्सा लेने वाली भारतीय टीम में उनका चयन (गोलकीपर) हुआ है। इस प्रतियोगिता में भारत के अलावा ब्राजील, फ्रांस, मैक्सिको, पेरू और जर्मनी सहित विश्व की 32 टीमें हिस्सा ले रही हैं। कोलकाता में मैच और यहां पिता का इंतकाल नसीम फुटबॉल से इतना प्यार करते हैं कि वर्ष 2006 में कोलकाता में ईस्ट बंगाल और मोहन बगान के बीच मुकाबला था। वह ईस्ट बंगाल की ओर से खेल रहे थे कुछ समय बाद पता चला कि उनके पिता का इंतकाल हो गया है। बावजूद इसके उन्होंने मैच खेलना जारी रखा और अपनी टीम को जीत दिला दी। वह अपने पिता के जनाजा को कंधा भी नहीं दे सके। मां के सहारे ने ही बनाया खिलाड़ी नसीम की मां नर्गिस बानो ने उन्हें सहारा नहीं दिया होता तो वह अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर नहीं बन पाते। दर्जनों बार भारत की ओर से खेल चुके नसीम को दुख है कि यूपी में किसी ने उन्हें इस लायक नहीं समझा कि उन्हें नौकरी दी जाए।