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सबको शिक्षा का सपना साकार कर रहीं साक्षी, तमसा नदी के गौरीशंकर घाट पर बच्चों की क्लास

खुद के लिए जी लिया तो क्या किया खुद के लिए कुछ पा लिया तो क्या मिला। करना है तो उनके लिए भी करो भाई जिन्हें आपकी जरूरत है। सोच उत्पन्न हुई काशी नगरी में और उसके बाद से तय किया कि स्कूल न जाने वाले बच्चों को शिक्षित करेंगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 14 Oct 2021 06:01 AM (IST)Updated: Thu, 14 Oct 2021 06:01 AM (IST)
सबको शिक्षा का सपना साकार कर रहीं साक्षी, तमसा नदी के गौरीशंकर घाट पर बच्चों की क्लास
खुद के लिए जी लिया तो क्या किया, खुद के लिए कुछ पा लिया तो क्या मिला।

आजमगढ़, जागरण संवाददाता। खुद के लिए जी लिया तो क्या किया, खुद के लिए कुछ पा लिया तो क्या मिला। करना है तो उनके लिए भी करो भाई जिन्हें आपकी जरूरत है।कुछ इसी तरह की सोच उत्पन्न हुई काशी नगरी में और उसके बाद से तय किया कि स्कूल न जाने वाले बच्चों को शिक्षित करेंगी। तमसा नदी के गौरीशंकर घाट पर सबको शिक्षित बनाने का सपना साकार कर रही हैं साक्षी पांडेय।खुद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ सबको शिक्षित बनाने का सपना लेकर निकलीं, तो परिवार ने भी हौसला बढ़ाया। उसके बाद तो अभियान परवान चढ़ने लगा।जगह नहीं मिली तो तमसा नदी के गौरीशंकर घाट पर बने बरामदे में ही लगा दी क्लास, जहां तीन साल से गरीब परिवार के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसमें ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जिन्हें किन्हीं कारणवश परिवार के लोग स्कूल में दाखिला नहीं करा सके अथवा जिन बच्चों के पास अतिरिक्त क्लास करने के लिए पैसे नहीं हैं।

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शहर से सटे हीरापट्टी की साक्षी पांडेय के इस अभियान में उनके साथी भी पूरा सहयोग करते हैं। काशी विद्यापीठ में बीएफए (बैचलर आफ फाइन आर्ट) चतुर्थ वर्ष में पढ़ने वाली साक्षी को यह प्रेरणा काशी से ही मिली। वह बताती हैं कि विद्यापीठ के पास ही एक संस्था लोगों को साक्षर बनाने में लगी थी तो उससे प्रभावित होकर उसके साथ काम करने लगीं। एक दिन मन में आया कि क्यों न अपने शहर में इस तरह का काम किया जाए। उसके बाद शहर में उन्होंने ऐसी एरिया को चिह्नित किया जहां काफी संख्या में बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल पा रही थी। इस तरह के क्षेत्र में उन्होंने गौरीशंकर घाट क्षेत्र में पता किया तो जानकारी हुई कि यहां तमाम ऐसे बच्चे हैं, जो या तो स्कूल नहीं जाते अथवा जाते भी हैं तो अतिरिक्त क्लास के लिए पैसे नहीं होते।

ऐसे में वे चाहकर भी अच्छा अंक नहीं ला पाते। उसके बाद इन्होंने क्षेत्र में संपर्क किया तो लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना शुरू कर दिए। कई बच्चे तो ऐसे हैं जिन्हें कलम पकड़कर लिखना सिखाना पड़ता है। प्रयास यहीं तक सीमित नहीं है। वह बच्चों का स्कूलों में एडमिशन भी कराती हैं। साथ ही स्कूल वालों से बात कर फीस भी माफ करा देती हैं। खास बात यह है कि जिन बच्चों के पास कापी-किताब नहीं होती उन्हें अपने पास से उपलब्ध कराती हैं। समय-समय पर प्रतियोगिता आयोजित कर उनकी प्रतिभा को निखारने का प्रयास करती हैं। खुद जब बनारस में रहती हैं तब भी क्लास बंद नहीं होता, बल्कि कुछ शिक्षित युवाओं को कुछ पारिश्रमिक देकर क्लास चलवाती हैं। सुशिक्षित समाज की स्थापना के लिए चलने वाले इस अभियान में खर्च के सवाल पर साक्षी बताती हैं कि उनके भाई सीए हैं, जो इस नेक अभियान में हमेशा आर्थिक मदद करते रहते हैं। बच्चों का मन पढ़ाई में लगा रहे, यह सोचकर समय-समय पर बच्चों के बीच कुछ नया करती हैं। अभी शिक्षक दिवस पर बच्चों के बीच पहुंचकर खुशियां मनाईं।


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