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Chandauli में खस्ताहाल सिंचाई संसाधनों से खतरे में धान के कटोरे की बादशाहत

सिंचाई संसाधनों की मौजूदगी व बेहतर उत्पादन की बदौलत सूबे में धान के कटोरे की बादशाहत अभी तक कायम है। लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही अब भारी पडऩे लगी है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 06:10 AM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 03:57 PM (IST)
Chandauli में खस्ताहाल सिंचाई संसाधनों से खतरे में धान के कटोरे की बादशाहत
Chandauli में खस्ताहाल सिंचाई संसाधनों से खतरे में धान के कटोरे की बादशाहत

चंदौली, जेएनएन। सिंचाई संसाधनों की मौजूदगी और बेहतर उत्पादन की बदौलत सूबे में धान के कटोरे की बादशाहत अभी तक कायम है। लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही अब भारी पडऩे लगी है। वर्षों पुराने सिंचाई संसाधन मरम्मत के अभाव में दम तोड़ रहे, तो नए पंप कैनाल की स्थापना में जमकर धांधली हो रही है। इससे टेल पर बसे सैकड़ों गांवों के किसानों के खेत बेपानी हैं। समय से फसल की सिंचाई न होने पर उत्पादन पर असर पड़ रहा है। इसके चलते धान के कटोरे की बादशाहत पर खतरा मंडराने लगा है।

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21 लाख की आबादी वाले जिले में करीब सवा लाख हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होती है। वहीं उत्पादन भी बेजोड़ है। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में प्रति हेक्टेयर सबसे अधिक धान का उत्पादन यहीं होता है। धान के कुल उत्पादन के मामले में शाहजहांपुर के बाद चंदौली का सूबे में दूसरा स्थान है। यहां करीब सालाना पांच लाख एमटी धान का उत्पादन होता है। जबिक शाहजहांपुर का क्षेत्रफल अधिक होने की वजह से कुल उत्पादन अधिक है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण धान के कटोरे के कोने-कोने फैली नहरों व माइनरों का जाल है। 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान चंद्रपरभा व नौगढ़ बांध की नींव पड़ी थी। जबकि 1962 विशालकाय मूसाखाड़ बांध की सौगात मिली। इससे निकली लेफ्ट व राइट कर्मनाशा नहरें जनपद समेत बिहार के कैमूर प्रांत के बड़े इलाके को ङ्क्षसचित करती हैं। एलके (लेफ्ट कर्मनाशा) व आरके (राइट कर्मनाशा) के साथ ही नरायनपुर लिफ्ट कैनाल से निकली 663 नहरों व माइनरों का जाल जिले में चहुंओर फैला हुआ है। फिर भी 370 गांवों के किसानों के नहरों के टेल पर स्थित खेत बेपानी हैं। खासतौर से नरवन परगना का दूरस्थ इलाका आज भी ङ्क्षसचाई की समस्या से जूझ रहा है। यहां हर साल पानी की कमी के चलते सैकड़ों एकड़ धान की फसल सूख जाती है। टेल तक पानी न पहुंचने का सबसे बड़ा कारण विभागीय अधिकारियों की उदासीनता ही है। नहरों व माइनरों के टूटे तटबंध टेल तक पानी पहुंचाने में दगा दे जाते हैं। फूल गेज से यदि नहरों को संचालित किया जाए तो जर्जर तटबंधों के टूटने का खतरा रहता है। एक बार तटबंध टूट गया तो खेत में फसल लगी होने के दौरान इसकी मरम्मत संभव नहीं।

बजट जारी न होने से हेड पर ही कमजोर एलके

मूसाखाड़ बांध से निकली लेफ्ट कर्मनाशा नहर हेड पर ही कमजोर है। करीब डेढ़ किलोमीटर तक नहर का तटबंध जर्जर है। तटबंध में सुराख हैं। इसके चलते दो बार तटबंध टूट चुका है। सिंचाई विभाग इसकी पक्कीकरण के लिए शासन को प्रस्ताव बनाकर दो बार भेज चुका है। लेकिन अभी तक बजट जारी नहीं हुआ। इससे लाइनिंग का काम नहीं हो सका है। वहीं किसानों को तमाम तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा।

बोले अधिकारी: शासन के निर्देशानुसार नहरों की सिल्ट सफाई कराई जाती है। वहीं बजट आवंटित होने पर टूटे तटबंधों की मरम्मत भी कराई जाती है। विभाग सिंचाई संसाधनों को दुरूस्त रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

सुरेशचंद्र आजाद, एक्सईएन चंद्रप्रभा।


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