आखरों की बंदगी से रोशन बेनूर जिंदगी
वाराणसी : जिस उम्र में किशोर खुद के लिए सपने संजोते हैं, उस वय में आंखों से रोशनी चले
वाराणसी : जिस उम्र में किशोर खुद के लिए सपने संजोते हैं, उस वय में आंखों से रोशनी चले जाना किसी सदमे से कम नहीं होता। मगर, 16 साल तक दुनिया देखने में सक्षम रहने के बाद अचानक रोशनी गंवाने की पीड़ा उठाने वाले मो. आसिफ इकबाल ने नियति की मार के आगे हार नहीं मानी। बिहार के भागलपुर जिले से कोलकाता में बसे व्यापारी पिता ने बेटे का काफी इलाज कराया, पर रोशनी नहीं लौटी। तब इकबाल ने हौसले को पतवार बनाकर शिक्षा व तकनीक से जिंदगी रोशन करने की ठानी। सेंट जेवियर्स कॉलेज कोलकाता से कामर्स में स्नातक के बाद जॉब शुरू की। टेडएक्स अस्सी रोड द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आए कोलकाता की कंपनी में सीनियर मैनेजर पद पर कार्यरत इकबाल ने अपने संघर्ष की कहानी साझा की।
ई-मेल का देते हैं जवाब भी
इकबाल देख नहीं सकते लेकिन वह कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल का बखूबी उपयोग करते हैं। ई-मेल चेक करने के साथ पढ़कर जवाब भी देते हैं। फेसबुक व अन्य सोशल वेबसाइट्स पर सक्रिय रहकर सामाजिक दायरे को भी विस्तार देते हैं।
अकेले ही करते सफर
एक से दूसरे शहर में अकेले ही चले जाते हैं और वहां पर वह मीटिंग अटेंड कर वापस घर भी पहुंच जाते हैं। इसके लिए उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। अब वह कोलकाता में ही बस गए हैं।
एप के सहारे चलाते हैं कंप्यूटर
इकबाल ने बताया कि एक अमेरिकन कंपनी ने टाक्ड ड्राइवर नाम से एप तैयार किया है जो काफी महंगा है। अब देश में एक एप तैयार हो गया है। हालांकि इसमें 10 फीसद सुविधा मिल पाती है। दिव्यांगों तक सुविधाएं मुफ्त पहुंचाने के लिए इस पर काम हो रहा है। एप से आने वाली आवाज के सहारे कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल चला लेते हैं। किराए पर गाड़ी बुकिंग के साथ ऑनलाइन शॉपिंग भी कर लेते हैं।
आधार को भी बनाया आधार
वह बताते हैं कि नेत्रहीन का आधार बनना आसान नहीं था। आपरेटर तीन चांस देता था। उतने में आंख स्कैन नहीं हो पाती थी। बताया कि इसकी शिकायत उन्होंने सरकार से की जिस पर संज्ञान लिया गया। इसके बाद दिव्यांगों के आधार बनाने की सुविधाएं व कुछ नई तकनीक बढ़ाई गई।