#PBD2019: संस्कृति-संस्कार का मिला सहारा, परदेश में चमका बनकर सितारा
डा. आशुतोष वर्ष 2007 में आस्ट्रेलिया पहुंचे तो उनके साथ था रक्षा मंत्रालय में काम करने का अनुभव, बीएचयू-जेएनयू की डिग्री व संयुक्त राष्ट्र संघ का तजुर्बा।
वाराणसी [मुहम्मद रईस] । विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी की मेधा ने समय-समय पर न सिर्फ खुद को साबित किया, बल्कि विश्व फलक पर स्थापित भी किया है। जरा सी आजमाइश और प्रतिस्पर्धा अच्छे भलों के हौसले डिगा देगी है, वहीं बनारस में पले-बढ़े और बनारस को जीने वाले डा. आशुतोष ने मुश्किल हालत में धैर्य नहीं खोया। संस्कृति और संस्कार संग खुद पर भरोसे की बदौलत उन्होंने दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों के समक्ष चुनौती पेश की।
डा. आशुतोष जब वर्ष 2007 में आस्ट्रेलिया पहुंचे तो उनके पास न तो नौकरी थी न ही कोई स्थाई ठौर। साथ था तो बस भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में काम करने का अनुभव, बीएचयू-जेएनयू की डिग्री व संयुक्त राष्ट्र संघ का तजुर्बा। आस्ट्रेलिया के कई विवि को आवेदन भेजे। अधिकांश से पलट कर कोई जवाब भी न मिलता। ऐसा हो भी क्यों न। उनका मुकाबला हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज से डिग्री लेकर आए अभ्यर्थियों संग था। पिता की नसीहत और संस्कार के संबल ने कभी निराश न होने दिया। प्रयास लगातार जारी रहा।
आखिरकार शिक्षा व अनुभव को देखते हुए ग्रिफिथ विवि ने ऑफर दिया। यहीं से उनकी विकास यात्रा की शुरुआत हुई। वर्तमान में आशुतोष आस्ट्रेलिया में सबसे नामी-गिरामी दक्षिण एशियाई विशेषज्ञों में गिने जाते हैं। उनकी राय विदेश मंत्रालय सहित क्वींसलैंड स्टेट व अन्य प्रांतों के लिए मायने रखती है।
पिता के लिए छोड़ दी नौकरी : जेएनयू से पीएचडी मुकम्मल करने के बाद डा. आशुतोष को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ काम करने का मौका मिला। इंटरनेशनल लीडरशिप एकेडमी, जार्डन में बतौर प्रोग्राम आफीसर डेढ़ वर्ष सेवाएं दी। इसी दौरान कैंसर पीडि़त पिता रमेश चंद मिश्रा की तबीयत बिगड़ी। इस पर इस्तीफा देकर आशुतोष परिवार समेत बनारस आ गए। हालांकि उन्हें बचाया नहीं जा सका, लेकिन आशुतोष ने एक आदर्श बेटे का दायित्य बखूबी निभाया। इसके बाद करीब एक साल वे बनारस में रहे। यहां डीआइजी कालोनी में उनके आवास पर अवैध कब्जा जमाने की कोशिशें भी की गई। तत्कालीन आवास विकास मंत्री लालजी टंडन के हस्तक्षेप से मामला सुलझा।
आइएआइई की स्थापना है बड़ी उपलब्धि : आस्ट्रेलिया के साथ संबंधों को मजबूती देने के लिए भारत सरकार के सहयोग से ब्रिस्बेन में आइएआइई (इंस्टीट्यूट फॉर आस्टे्रलिया-इंडिया इंगेजमेंट) की स्थापना को आशुतोष अपनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं। सितंबर 2018 में इसका उद्घाटन भारतीय राजदूत डा. एएम गोंडान ने किया। इंस्टीट्यूट के सीईओ व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर का पद डा. आशुतोष सुशोभित कर रहे हैं। वहीं पूर्व आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर इसके गुडविल एंबेस्डर फार इंडिया बने हैं। डा. आशुतोष कहते हैं कि, 'यह आस्ट्रेलिया का पहला स्वतंत्र संस्थान है, जो दोनों देशों के बीच शैक्षणिक व व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में कार्य करेगा।
2007 में ग्रिफिथ एशिया इंस्टीट्यूट में इंडिया व साउथ एशिया प्रोग्राम का इंचार्ज बना था। इस दौरान आस्ट्रेलिया सरकार के सेंटर फार एक्सिलेंस इन पुलिसिंग एंड सिक्योरिटी का एमओयू सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस एकेडमी के साथ कराया। वहीं एनआइए के साथ काउंटर टेररिज्म व सीबीआइ के साथ पोस्ट करप्शन में दोनों देशों के बीच को-ऑपरेशन भी कराया।
आस्ट्रेलिया के छात्र इंडिया में कर सकेंगे लॉ प्रैक्टिस : वर्ष 2015 में इंडिया फेलों के तौर पर क्वींसलैंड विवि ज्वाइन करने के बाद आशुतोष ने इसका जेएनयू के साथ एमओयू रिएक्टिवेट कराया। साथ ही बार काउंसिल ऑफ इंडिया से एक्रिडेशन एप्रूव कराया, जिसका फायदा आस्ट्रेलिया के 15 शीर्ष लॉ कालेज को भी हुआ। इसका नतीजा ये रहा कि अब आस्ट्रेलिया से पढ़ाई करने वाले लॉ के छात्र इंडिया में और इंडिया से पढ़ाई करने वाले आस्ट्रेलिया में लॉ प्रैक्टिस कर सकेंगे।
किताबें लिखने का भी है शौक : समसामयिक विषयों को पढऩे के साथ ही आशुतोष लिखने का भी शौक रखते हैं। अभी तक वे चार किताबें लिख चुके हैं। वर्ष 2010 में उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने उनकी किताब 'इंडिया-पाकिस्तान : कमिंग टू टमर्स' का विमोचन किया था।
पसंद है पूड़ी-कचौड़ी और जलेबी : आशुतोष भले ही आस्ट्रेलिया में रह रहे हों, मगर उनके जेहन में बनारस रचा-बसा है। बनारस आने पर आशुतोष पूड़ी-कचौड़ी, जलेबी, लौंगलता, लस्सी व ठंडई का लुत्फ उठाना नहीं भूलते।
शैक्षणिक सफर : प्राइमरी शिक्षा छावनी स्थित सेंट मेरिज से हासिल करने के बाद इंटर की परीक्षा सीएचएस कमच्छा से उत्तीर्ण की। इसके बाद स्नातक के लिए बीएचयू में दाखिला लिया। वर्ष 1990 में सामाजिक विज्ञान संकाय से इतिहास विभाग से परास्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और गोल्डमेडलिस्ट भी रहे। वहीं आगे की पढ़ाई के लिए जेएनयू चले गए। यहां भारत-पाक रिलेशनशिप पर पीएचडी कंप्लीट की।