गणतंत्र दिवस 2022 : 26 स्वतंत्रता सेनानियों की यादें समेटे है वाराणसी के पिंडरा का करखियांव
वाराणसी के करखियांव गांव 26 स्वतंत्रता सेनानियों की यादों को समेटे है। जिले का यह एक ऐसा इकलौता गांव हैं जहां की धरती ने 26 स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया है। गांव के पूर्व प्रधान विक्रमादित्य सिंह पिता स्व. राजनारायण सिंह और माता स्व. नौरंगी देवी से सुनी सुनाते हैं।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : पिंडरा विधानसभा का करखियांव गांव 26 स्वतंत्रता सेनानियों की यादों को समेटे है। जिले का यह एक ऐसा इकलौता गांव हैं, जहां की धरती ने 26 स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया है। गांव के पूर्व प्रधान विक्रमादित्य सिंह पिता स्व. राजनारायण सिंह और माता स्व. नौरंगी देवी से सुनी सुनाते हैं। बताते हैं कि अंग्रेजों के जुल्मों से यहां के लोग पीडि़त थे। एक बार कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की टोली गांव में आई। उसके बाद गांव में स्वतंत्रता का बिगुल बज उठा, आजादी की चाहत में खालिसपुर से त्रिलोचन महादेव के बीच रेलवे लाइन काट दी गई। जगह-जगह टेलीफोन के तार काट दिए गए थे। ब्रिटिश अफसरों को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने गांव में फोर्स भेजी। उनके आने से पहले ही सेनानी भाग निकले। खेत-खलिहान और जंगलों में रहने वाले पुरुषों को महिलाएं खाना पहुंचाती थीं। पुलिस ने उन महिलाओं को पकड़कर सलाखों के पीछे डाल दिया। इन स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में पांच महिलाओं के नाम भी शामिल हैं।
शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर वर्ष लगता है मेला
चोलापुर थाने के ठीक बगल में स्थित जिले का इकलौता शहीद स्मारक पांच शहीदों की स्थली है। यहां हर वर्ष 17 अगस्त को शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए मेला लगता है। पुरनिए बताते हैं कि आजादी के लिए राष्ट्रीय आंदोलन के समर्थन में 17 अगस्त 1942 को जनता वीर सेनानी वीर बहादुर सिंह के नेतृत्व में चोलापुर थाने पर तिरंगा झंडा फहराने के लिए एक शांति जुलूस आयर गांव से निकल पड़ा। अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही घेरेबंदी में जुट गए। तिरंगा फहराने के जुनून में भीड़ आगे बढ़ती रही। जुलूस को रोकने के लिए हथियार से लैस पुलिस ने निहत्थी जनता पर गोली चलाना शुरू कर दिया। इसमें पांच लोग शहीद हो गए।
धर्म नगरी काशी के छावनी क्षेत्र की सड़कें वीरों की गाथाएं बताती हैं। करीब तीन किलोमीटर परिधि क्षेत्र में फैले छावनी में सड़क की पटरियों के किनारे लगे बड़े-बड़े होर्डिंग पर इन वीर सपूतों की गाथाएं लिखी हैं। घुमान-टहलान के लिए आने वाले लोगों का ध्यान बरबस ही इन तस्वीरों पर चला जाता है। फिर क्या, नाता इतना प्रगाढ़ हो जाता है कि लोगों के कदम बढ़ते चले जाते हैं। हर कदम पर शहीदों और उनकी वीरता से वह परिचित होते हैं। तीन किलोमीटर दूरी कब तय हो जाती है पता भी नहीं चलता है।