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दुनिया के अनूठे रंगमंच पर से उठेगा पर्दा, परंपराओं की थाती का आज से होगा श्रीगणेश

परंपराओं की थाती संभाले धर्म-अध्यात्म, श्रद्धा- भक्ति और फक्कड़ मस्ती के अनुष्ठान रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला का अनंत चतुर्दशी पर शाम होते ही श्रीगणेश हो जाएगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 11:50 AM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 12:20 PM (IST)
दुनिया के अनूठे रंगमंच पर से उठेगा पर्दा, परंपराओं की थाती का आज से होगा श्रीगणेश
दुनिया के अनूठे रंगमंच पर से उठेगा पर्दा, परंपराओं की थाती का आज से होगा श्रीगणेश

वाराणसी (जेएनएन) : परंपराओं की थाती संभाले धर्म-अध्यात्म, श्रद्धा- भक्ति और फक्कड़ मस्ती के अनुष्ठान रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला का अनंत चतुर्दशी पर रविवार को शाम होते ही श्रीगणेश हो जाएगा। ठीक शाम पांच बजे रामबाग लीला स्थल में रावण जन्म और रामावतार की भविष्यवाणी के साथ ही दुनिया के अनूठे रंगमंच का पर्दा उठेगा। बाग स्थित पोखरा क्षीर सागर का रुतबा पाएगा और शेष शैय्या पर लेटे श्रीहरि की झांकी निखर जाएगी। इसके लिए देश-विदेश से लीला प्रेमियों के जत्थे दोपहर से ही उमड़ पड़े। साधु-संन्यासियों ने मठ-मंदिरों में डेरा डाल दिया तो नेमियों ने अपने-अपने ठिकानों में रात्रि विश्राम कर रविवार की शाम का इंतजार किया। 

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दोहा चौपाई गायन को विराम  

रामलीला के क्रम में भाद्र शुक्ल चतुर्थी से रामलीला पक्की पर चल रहे बालकांड के 175 दोहे-चौपाइयों का शनिवार की शाम गायन पूरा कर लिया गया। दस दिनों तक इसमें रामायणी दल ने उन प्रसंगों का गायन किया जिनका लीला में मंचन नहीं किया जाता है। प्रसंगानुसार राजा भानुप्रताप अपना राज्य निष्कंटक बनाने के लिए यज्ञ करते हैं। उसे विध्वंस करने के लिए राक्षस राजपुरोहित व रसोइये का अपहरण कर उनका रूप धर ब्राह्मणों को भोजन के रूप में मांस परोस देते हैं। आकाशवाणी से उन्हें भोजन नहीं करने को कहा जाता है। ब्राह्मण क्रोधित होकर भानुप्रताप को राक्षस योनि में जन्म लेने का शाप देते हैं। राजा भानुप्रताप ही राक्षस राज रावण के रूप में जन्म लेते हैं। 

 

इंद्रदेव का पूजन और पूर्वाभ्यास 

रामलीला पर निकलने वाली शाही सवारी के मद्देनजर शनिवार शाम नगर के प्रमुख मार्गों पर पूर्वाभ्यास किया गया। हालांकि इसमें बाघंबरी बग्घी के बजाय इस बार शहर से सामान्य बग्घी मंगाकर पूर्वाभ्यास किया गया जो लीला स्थलों तक जाकर दुर्ग लौटी। इससे पहले प्रात:काल लीला निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए दुर्ग के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से की बुर्जी पर परंपरानुसार इंद्रदेव का पूजन कर सफेद ध्वज फहराया गया।


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