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रामनगर की रामलीला : मुक्‍ताकाशीय मंच को लगी कोरोना की नजर, धुंधली पड़ी रामलीला की चमक

रामनगर की रामलीला के आयोजन में दूसरे साल भी संकट के बादल हैं। इस बार भी लीला प्रेमियों के मन में आशंका के बादल छाए हुए हैं। आशंकाओं के बादल धार्मिक अनुष्ठान उत्सव पर महामारी की नजर लगने की वजह से लीला प्रेमी इस बार असमंजस की स्थिति में है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 10 Aug 2021 12:27 PM (IST)Updated: Tue, 10 Aug 2021 12:27 PM (IST)
रामनगर की रामलीला : मुक्‍ताकाशीय मंच को लगी कोरोना की नजर, धुंधली पड़ी रामलीला की चमक
वाराणसी में रामनगर की रामलीला के आयोजन में लगातार दूसरे साल भी संकट के बादल हैं।

वाराणसी, जेएनएन। रामनगर की रामलीला के आयोजन में लगातार दूसरे साल भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इस बार भी लीला प्रेमियों के मन में आशंका के बादल छाए हुए हैं। आशंकाओं के बादल, धार्मिक अनुष्ठान, उत्सव पर महामारी की नजर लगने की वजह से लीला प्रेमी इस बार असमंजस की स्थिति में है। अमूमन हर साल सावन माह में ही लीला की तैयारी शुरू हो जाती थी।

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कोरोना महामारी के चलते आस्था का केंद्र कही जाने वाली नगरी की रामलीला पर पिछले दो साल से आशंकाओं के बादल छाए हुए हैं। कारोबार के साथ धार्मिक अनुष्ठान, उत्सवों को महामारी की नजर लगी है। रामलीला पर भी कोरोना संकट की लीला भारी पड़ती दिख रही है। इसके चलते होने वाली रामलीला भी रामभरोसे है। रोजाना बढ़ते संक्रमण के मामलों के चलते असमंजस बरकरार है। कोरोना संक्रमण से कई सारे महत्वपूर्ण आयोजनों पर रोक लगा दी गई है। महामारी के चलते इस बार रामनगर की रामलीला नहीं होगी।

रामनगर में रामलीला का इतिहास दशकों पुराना है। यह दूसरी बार हो रहा है कि रामलीला के आयोजन को लेकर असमंजस की स्थिति है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कुछ भी कहना संभव नहीं है। कोरोना का प्रभाव कितना कम या ज्यादा होगा। सावन महीने से ही तैयारियां का सिलसिला शुरू हो जाता था, लेकिन कोरोना के कारण अब तक रामलीला समितियों की बैठकें नहीं हो पाई हैं। आयोजक मंडल के लोग असमंजस की स्थिति में है। वह तय नहीं कर पा रहे है कि क्या करें, क्या न करें।

विश्व प्रसिद्ध रामलीला को देखने हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। कभी कुर्सी का इंतजाम भी नहीं किया जाता है। खुद के टाट और चटाई पर बैठते हैं। यहां के सभी पात्र रामनगर सहित आसपास के ही होते हैं। शाम पांच बजे लीला शुरू होकर रात्रि सात से आठ बजे तक चलती थी।पात्रों का वस्त्र काशी नरेश के ओर से ही मिलता है। सभी पात्रों का कड़ा अभ्यास कराया जाता है जो महीनों पहले से होता है। अभी तक कोई रिहर्सल नहीं हुआ।


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