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लॉकडाउन में नौकरी हुई लॉक तो स्ट्राबेरी की खेती से निकाली राह, वाराणसी के रमेश ने की पहल

दूरदृष्टि पक्का इरादा व लक्ष्य के प्रति ईमानदार कोशिश हो तो मंजिल खुद कदम चूम लेती है। यह सफलता अगर लॉकडाउन के संकटजन्य काल के बीच से मिले तो समाज के लिए अनुकरणीय है। बात हो रही है एक ऐसे ही वाराणसी के शख्स पूर्व शिक्षक रमेश मिश्र की।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 11 Feb 2021 07:57 PM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2021 07:57 PM (IST)
लॉकडाउन में नौकरी हुई लॉक तो स्ट्राबेरी की खेती से निकाली राह, वाराणसी के रमेश ने की पहल
परमहंस नगर कंदवा के रहने वाले रमेश मिश्र स्ट्राबेरी की खेती करने में जुटे।

वाराणसी [रवि पांडेय]। परमहंस नगर कंदवा के रहने वाले रमेश मिश्र बीएचयू के पूर्व छात्र व ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी बास्केटबॉल खिलाड़ी रहे और नगर के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में नौकरी करते थे। लॉकडाउन के दौरान जब वेतन व नौकरी पर संकट आया तो उन्होंने अपने मित्र मदन मोहन व इंटरनेट मीडिया की मदद से कुछ अलग करने का विकल्प चुना और स्ट्राबेरी की खेती का मन बना लिया। खेत की आवश्कता पड़ी तो रोहनिया क्षेत्र के अमरा खैरा चक में अपने परिचित की दो एकड़ जमीन 10 साल के लिए लीज पर ले ली और अक्टूबर से खेती की शुरुआत कर दी। मात्र दो महीने में ही फसल निकलनी शुरू हो गई।

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आधुनिक के साथ ही आर्गेनिक खेती पर ध्यान : रमेश मिश्रा और उनके मित्र मदन मोहन ने बताया कि कोरोना काल व उसके बाद लोग शरीर की प्रतिरोधक-क्षमता बढ़ाने और केमिकल फ्री शुद्ध खाद्य पदार्थों पर ध्यान देने लगे। भविष्य को देखते हुए उन्होंने स्ट्राबेरी के साथ ही पीला खरबूजा और रेड लेडी पपीता के अलावा सब्जी की खेती शुरू की।

महाबलेश्वर से मंगाए 16 हजार पौधे : रमेश मिश्र ने पहली बार महाबलेश्वर से 16 हजार पौधे मंगाए हैं। एक पौधा 15 रुपये का पड़ा। प्रत्येक पौधे से 900 ग्राम से लेकर एक किलो से ज्यादा स्ट्राबेरी निकलती है। उन्होंने बताया कि स्ट्राबेरी की खेती में मिट्टी की जांच और पौधों के लिए मित्र राजेश रावत का सहयोग लिया। पहली बार स्ट्राबेरी की खेती के लिए गांव से गोबर लेकर खेत तैयार किया और पानी की बचत के लिए टपक विधि का इस्तेमाल करते हुए सिंचाई की। पौधों को कीट से बचाने के लिए गेंदे की भी कुछ खेती की और जगह-जगह स्टिक पैड का प्रयोग किए।

चार महीने में 15 लाख तक होगी कमाई, 10 को रोजगार : रमेश मिश्र ने बताया कि अक्टूबर से लेकर फरवरी तक यह फसल पूरी हो जाती है। 4 महीने की खेती में 15 लाख तक की बचत अनुमानित है। अभी 30 से 40 किलो स्ट्राबेरी पैकेट बनाकर मार्केट भेजी जा रही है। इसकी वाराणसी में 300 रुपये प्रति किलो की दर से बिक्री हो रही है। वे अब इसे विदेश भेजने की तैयारी में भी हैं। उन्होंने बताया कि इसमें फिलहाल 10 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है और आने वाले समय मे यह कमाई का मजबूत जरिया बन सकता है।


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