Move to Jagran APP

रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्र के कवि से पहले लोक के कवि थे, जन्मदिवस पर बीएचयू में हुआ आयोजन

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के जन्मदिवस पर गुरुवार 23 सितंबर को काशी हिंदू विश्वविद्यालय को कामधेनु सभागार में रामधारी सिंह दिनकर कृतं स्मर क्रतो स्मर कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में गाजीपुर से आए साहित्यकार कुमार निर्मलेंदु ने रामधारी सिंह दिनकर के साहित्य में इतिहासबोध पर अपना व्याख्यान दिया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 07:15 PM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 07:15 PM (IST)
रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्र के कवि से पहले लोक के कवि थे, जन्मदिवस पर बीएचयू में हुआ आयोजन
काशी हिंदू विश्वविद्यालय को कामधेनु सभागार में "रामधारी सिंह दिनकर: कृतं स्मर, क्रतो स्मर" कार्यक्रम का आयोजन हुआ।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। Ramdhari Singh Dinkar राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के जन्मदिवस पर गुरुवार 23 सितंबर को काशी हिंदू विश्वविद्यालय को कामधेनु सभागार में "रामधारी सिंह दिनकर: कृतं स्मर, क्रतो स्मर" कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में बतौर संयोजक स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रो. एम.के. सिंह ने कहा कि दिनकर को याद करना हमारे लिए ऊर्जा लेते रहने जैसा है। दिनकर पर यह आयोजन बहु प्रतिक्षित था। हाइब्रिड मोड में आयोजित इस कार्यक्रम में सभागार में बैठकर प्रो. अवधेश प्रधान एवं कुमार निर्मलेंदु तथा ऑनलाइन माध्यम से जुड़कर हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह एवं दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय से डॉ. आनंद वर्धन ने अपना वक्तव्य दिया।

loksabha election banner

कार्यक्रम में प्रथम वक्ता के तौर पर संबोधित करते हुए डॉ. आनंद वर्धन ने दिनकर जी की कविताओं के सस्वर पाठ के साथ उनके रचनाकर्म पर विस्तृत चर्चा की। लगभग 30 मिनट के अपने वक्तव्य में श्री वर्धन ने रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा, "दिनकर जी राष्ट्र के कवि तो थे ही, वह उससे पहले लोक के कवि थे। उनकी कविताएं आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं।" महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि दिनकर किसान परिवार से निकले हुए कवि थे, इसलिए वो आज भी लोगों के मन में हैं। उनकी कविताएं विवेकानंद के परंपरा की हैं। हमने सुना है कि दिनकर जी बहुत अच्छे वक्ता थे। वह कविता भी बोल कर ही पढ़ते थे, कभी गाते नहीं थे।'

कार्यक्रम में गाजीपुर से आए साहित्यकार कुमार निर्मलेंदु ने रामधारी सिंह दिनकर के साहित्य में इतिहासबोध पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने दिनकर की रचनाओं में गांधी और मार्क्स के बीच के द्वंद पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा, 'दिनकर का कहना था कि सफेद और लाल को मिलाने पर जो रंग बनता है वही रंग मेरी कविताओं का है।"

प्रो. अवधेश प्रधान ने दिनकर के साथ अपने संस्मरणों से अपने व्याख्यान की शरुआत की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने भारत कला भवन में दिनकर के साथ मुलाकात के दौरान हुई चर्चाओं को साझा किया। एक संस्मरण का जिक्र करते हुए प्रो. प्रधान भावुक हो उठे। उन्होंने कहा, 'दिनकर चिंतक भी बहुत अच्छे हैं और गद्यकार भी। बाकी लोगों का गद्य पढ़ के आपको नींद आ जाएगी, दिनकर का गद्य पढ़ के आपमें उर्जा आ जाएगी। आप उनके निबंध पढ़ें। उन्होंने कहा है कि स्त्री को पुरुषाधिक स्त्री होना चाहिए, पुरूष को स्त्रियाधिक पुरूष। पुरूष की महिमा इसमें है कि वो आंखे झुकाएं। स्त्री का गर्व ये है कि वह निर्णय लेने की भूमिका में रहें।'

दिनकर कवि होने के साथ साथ दूरदृष्टा भी थे। 1948 में जब आजादी का नशा नहीं टूटा था और देश के अधिकांश कवि आजादी के गीत गा रहे थे। तब दिनकर लिखते हैं,

'टोपी कहती है मैं थैली बन सकती हूं,

कुर्ता कहता है मुझे बोरिया ही कर लो।

ईमान बचाकर कहता है सबकी आंखे,

मैं बिकने को हूं तैयार मुझे ले लो।'

टोपी को थैली करके सब भर लेने की प्रवृति आज तक है। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रो. मनोज राय ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. धीरेंद्र राय ने किया। आयोजन में चंद्राली, हिमांशु, हर्षित, शाश्वत, विकास और रवि ने महती भूमिका निभायी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.