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रबी की बातें : प्याज का बीज ढक दें पुआल से, गेहूं की बोआई में करें अब पछेती किस्मों का चयन

माह दिसंबर में इस समय तापक्रम काफी कम हो गया है इसलिए ठंड बढ़ गई है । सापेक्ष आर्द्रता मध्यम एवं औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 15 एवं 05 डिग्री सेंटीग्रेड है। कोहरा-पाला पड़ने की संभावना है। इस समय किसानों को सावधानी के साथ कृषि कार्य करना होगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 23 Dec 2021 06:41 PM (IST)Updated: Thu, 23 Dec 2021 06:41 PM (IST)
रबी की बातें : प्याज का बीज ढक दें पुआल से, गेहूं की बोआई में करें अब पछेती किस्मों का चयन
इस समय किसानों को सावधानी के साथ कृषि कार्य करना होगा

वाराणसी, जागरण संवाददाता। माह दिसंबर में इस समय तापक्रम काफी कम हो गया है, इसलिए ठंड बढ़ गई है । सापेक्ष आर्द्रता मध्यम एवं औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 15 एवं 05 डिग्री सेंटीग्रेड है। कोहरा-पाला पड़ने की संभावना है। इस समय किसानों को सावधानी के साथ कृषि कार्य करना होगा, ताकि फसलोत्पादन प्रभावित न हो। कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ विज्ञानी डा. एनके सिंह किसानों को विभिन्न फसलों के लिए आवश्यक उपचार का परामर्श देते हैं।

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गेहूं : यदि गेहू्ं की बोआई अब तक न कर सके हों तो इस समय की बोआई के लिए पछेती किस्मों का चयन करें। प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज का प्रयोग करना ठीक रहेगा। बोआई कतारों में 15-18 सेमी की दूरी पर करें। बोआई से 30 दिन के अंदर एक बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए 2, 4-डी सोडियम साल्ट 80 फीसद, 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 35-40 दिन के अंदर एकसार छिड़काव करें। गेहूं के प्रमुख खरपतवार गेहूंसा और जंगली जई की रोकथाम के लिए क्लैडीनोपोफ 160 ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें। पूर्व में बोए गए गेहूं में नाइट्रोजन की शेष मात्रा दे दें तथा 15-20 दिन के अंतराल से सिंचाई करते रहें।

प्याज : प्याज पर यदि झुलसा का प्रभाव दिख रहा हो, यानी उसकी पत्तिंया नोंक से पीली होती दिखें तो ब्लू कापर या लाइटाक्स -50, 0.5 एमएल एक लीटर पानी में मिलाकर छोटी क्यारियों में या 100 एमएल दवा, 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दें। किसान यदि इस समय प्याज की नर्सरी डाल रहे हों तो बीजों को जमाव तक पुआल से ढक दें ताकि वह शीत के प्रकोप से बचा रहे।

तोरिया व सरसों : तोरिया दिसंबर के अंतिम सप्ताह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक आमतौर पर पक जाती है। पकी हुई फसल की कटाई करें तथा समय पर बोई गई सरसों में दाने भरने की अवस्था में यदि वर्षा न हो तथा प्रथम पखवाडे़ में सिंचाई न की हो तो सिंचाई करना चाहिए।

मटर : समय से बोई गई मटर में फूल आने से पहले एक हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। तना छेदक की रोकथाम के लिए बोआई से पूर्व तीन फीसद कार्बोफ्यूरान की 30 किग्रा. दवा प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। फसल में पाउडरी मिल्डयू रोग के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक या केराथिन या कार्बेन्डाजिम के दो छिड़काव करना चाहिए। गेरूआ रोग लगने पर जिनेब या ट्राइडेमार्फ या आक्सीकार्बाक्सिन फंफूदनाशी का दो बार छिड़काव करें।

मसूर : मसूर की पछेती बोआई इस माह भी कर सकते हैं। इसके लिए 50-60 किलो बीज प्रति हैक्टेयर डालें। बोने से पहले बीजोपचार करें। एक हेक्टेयर में 15 किग्रा. नाइट्रोजन तथा 40 किग्रा फास्फोरस प्रयोग करना चाहिए। बुवाई कूड़ों में 15-20 से.मी. दूरी पर करनी चाहिए। पूर्व में बोई गई फसल में फूल-फली बनते समय सिंचाई करें।

बरसीम,लूर्सन एवं जईः बुवाई के 45-50 दिन बाद इन चारा फसलों की प्रथम कटाई कर लेना चाहिए। इसके बाद 25-30 दिन के अन्तराल से कटाई करते रहें। भूमि सतह से 5-7 से.मी. की ऊंचाई पर कटाई करें। कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देना चाहिए। गर्मी में पशुओं के लिए लूर्सन व बरसीम चारे का संरक्षण करें।

गन्ना : शरदकालीन गन्ने में नवंबर के द्वितीय पखवाडे़ में सिंचाई न की गई हो तो सिंचाई करके निराई-गुड़ाई करें। शरदकालीन गन्ने के साथ राई व तोरिया की सह फसली खेती में आवश्यकतानुसार सिंचाई करके निराई-गुड़ाई लाभप्रद होता है। गेंहूँ के साथ सह-फसली खेती में बुवाई के 20-25 दिन बाद प्रथम सिंचाई करें । गेंहूँ के लिये 30 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से ट्रापडेसिंग के रूप में प्रयोग करें। बसंतकालीन गन्ने की बुवाई हेतु खेत तैयार करें।

आलू : आलू लाही रोग के नियंत्रण हेतु रोपाई के 45 दिन बाद फसल पर 0.1 टक्के रोगर या मेटासिस्टोक्स का घोल 2-3 बार 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये. फसल की सिंचाई कर देनी चाहिये . जमीन भिगी रहने पर पाला का असर कम हो जाता है .

आम : आवश्यकतानुसार पौधों में नियमित सिंचाई करें. मधुआ कीट एवं पाउडरी मिल्ड्यू के नियंत्रण के लिए मंजर निकलने के समय बैविस्टिन या कैराथेन (0.2 प्रतिशत) तथा मोनोक्रोटोफ़ॉस या इमिडाक्लोप्रिड (0.05 प्रतिशत) का पहला एहतियाती छिड़काव करें.

पपीता : वृक्षारोपण के छ: महीने के बाद प्रति पौधा उर्वरक देना चाहिए . नाईट्रोजन – 150 -200 ग्राम, फ़ॉस्फोरस 200-250 ग्राम, पोटाशियम 100-150 ग्राम. तीनों उर्वरक 2-3 खुराक में वृक्ष लगाने से पहले फूल आने के समय तथा फल लगने के समय दे देना चाहिए.

अमरुद : फल-मक्खी के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 2.0 मि.ली./ली. या मोनोक्रोटोफ़ॉस 1.5 मिली./ली. की दर से पानी में घोल बनाकर फल परिपक्कता के पूर्व 10 दिनों के अंतर पर 2-3 छिड़काव करें. प्रभावित फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए तथा बगीचे में फल मक्खी के वयस्क नर को फंसाने के लिए फेरोमोन ट्रेप लगाने चाहिए.

आँवला : तुड़ाई उपरांत फलों को डाइफोलेटान (0.15 प्रतिशत), डाइथेन एम – 45 या बैवेस्टीन (0.1 प्रतिशत)से उपचारित करके भण्डारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है.


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