'अप्सरा' की सौगात देने वाले प्रो. एएस राव को बीएचयू से ही भौतिकी की तालीम
एशिया को पहले परमाणु रिएक्टर अप्सरा की सौगात देने वाले प्रो. एएस राव को बीएचयू से ही भौतिकी की तालीम मिली थी।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। एशिया को पहले परमाणु रिएक्टर 'अप्सरा' की सौगात देने वाले प्रो. एएस राव को बीएचयू से ही भौतिकी की तालीम मिली थी। आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले से वह मुफलिसी (आर्थिक कंगाली) लेकर बीएचयू आए लेकिन पचास के दशक में जब वह यहां से गए तो डा. भाभा के दल के एक कामयाब परमाणु वैज्ञानिक बन चुके थे। उन्होंने बीएचयू से भौतिकी में स्नातक करने के बाद 1939 में एमएसई को भी यहीं से पूरा किया। इसके बाद वह बीएचयू में भौतिकी के व्याख्याता नियुक्त हुए और 1946 तक निरंतर परमाणु कार्यक्रम पर शोध और अनुसंधान करते रहे।
बीएचयू आने का उनका एक और मकसद था जो बड़ी जल्दी पूरा भी हुआ। उन्हेंं यहां पर मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर से भी मिलने और विचारों को साझा करने का अवसर मिला जो कि उनके गृह नगर में संभव नहीं हो सका था। इन विभूतियों की ही छाप थी कि वह अपने वैज्ञानिक सोच को राष्ट्रीयता के साथ जोड़ पाए। इसका परिणाम 'अप्सरा' परमाणु अनुसंधान रिएक्टर के रूप में देश को देखने को मिला।
बीएचयू में अपने गुरु को अमेरिका से लाकर दी थी पार्कर-51 पेन
प्रो. राव को न्यूक्लियर फिजिक्स का महान वैज्ञानिक बनाने में बीएचयू के ही भौतिकशास्त्री प्रो. वी दासनचर्या का सबसे बड़ा योगदान था। इस संबंध में उनके पुत्र प्रो. वीए दासनचर्या दूरभाष पर बात करते हुए बताते हैं कि पिताजी ने ही बीएचयू में पहली बार भौतिकी विभाग की शुरुआत की थी। प्रो. राव को बीएचयू और मालवीय जी से इतना लगाव हो गया कि वह छात्र जीवन को पार कर बीएचयू में ही अध्यापन से जुड़े रहे। 1946 में प्रो. राव को बीएचयू में रिसर्च कार्यों के दौरान ही विश्व प्रतिष्ठित टाटा स्कॉलरशिप मिला, जिसके बाद वह स्टैनफोर्ड यूनिवॢसटी चले गए। उनका राष्ट्रवादी प्रभाव उन्हेंं भारत की ओर खींचता रहा और वह तत्काल अपना शोध पूर्ण कर वापस बीएचयू लौट आए।
प्रो. दासनचर्या ने बताया कि जब वह बीएचयू दोबारा आए तो अमेरिका से उस दौर का सबसे प्रचलित गोल्डन फाउंटेन पेन पार्कर-51 लाए थे जो उन्होंने पिताजी जी को अॢपत कर दी। प्रो. राव आजीवन अपने गुरु के आभारी रहे, जिनकी चर्चा वह अक्सर करते रहते। अमेरिका से लौटने के बाद बीएचयू में जब वह अध्यापन कार्य कर रहे थे, तो डा. होमी जहांगीर भाभा उनके कॉस्मिक किरणों व भौतिकी के शोध से इतना प्रभावित हुए कि उन्हेंं मुंबई आने का आमंत्रण दे दिया। 1953 में परमाणु ऊर्जा संस्थान का गठन हुआ और प्रो. राव उसके प्रमुख सदस्य बन गए। उन्होंने 'अप्सरा' की डिजाइनिंग और सुरक्षा के मानकों की मॉनिटरिंग की थी। अप्सरा कार्यक्रम में उनके साथ राजा रमन्ना और एनबी प्रसाद भी थे।
अब संचालित है 'अप्सरा' का उन्नत मॉडल : एशिया के पहले अनुसंधान रिएक्टर 'अप्सरा' का परिचालन चार अगस्त, 1956 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के ट्रांबे परिसर में शुरू हुआ। ईंधन के रूप में संवद्र्धित यूरेनियम का प्रयोग करने वाले इस रिएक्टर की तैनाती से देश में रेडियो-आइसोटोपो का उत्पादन प्रारंभ हुआ था। इसकी अधिकतम ऊर्जा क्षमता 1 मेगावॉट थी।
पांच दशक से अधिक समय तक सेवा देने के बाद इस रिएक्टर को 2009 में बंद कर दिया गया। वहीं 10 सितंबर, 2018 को ट्रॉम्बे में स्विमिंग पूल के आकार का एक शोध रिएक्टर 'अप्सरा-उन्नत' का परिचालन प्रारंभ हुआ। उच्च क्षमता वाले इस रिएक्टर की स्थापना स्वदेशी तकनीक से की गई है।