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तंत्रिका विज्ञान के प्रोफेसर ने रची हिमालय पर तीसरी पुस्‍तक, हिम-यायावरी का अनोखा यात्रा वृत्तांत

तंत्रिका विज्ञान के प्रोफेसर अजय सोडानी ने हिम-यायावरी का अनोखा यात्रा वृत्तांत सार्थवाह हिमालय में समेट रखा है। इसके पूर्व दर्रा दर्रा हिमालय और दरकते हिमालय पर दर-ब-दर के बाद वह नगपति पर अपनी तीसरी किताब लेकर आए हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 22 May 2022 10:17 AM (IST)Updated: Sun, 22 May 2022 10:17 AM (IST)
तंत्रिका विज्ञान के प्रोफेसर ने रची हिमालय पर तीसरी पुस्‍तक, हिम-यायावरी का अनोखा यात्रा वृत्तांत
'दर्रा दर्रा हिमालय' और 'दरकते हिमालय पर दर-ब-दर' के बाद हिमालय पर यह तीसरी किताब है।

नई दिल्‍ली, प्रणव सिरोही। इन दिनों जब देश के तमाम इलाकों में बेरहम गर्मी अपना कहर बरपा रही है तो हिमालय के नाम का उल्लेख ही मन में एक प्रकार की शीतलता का संचार कर देता है। वास्तव में हिमगिरि हिमालय का नयनाभिराम नैसर्गिक सौंदर्य एवं प्राणवर्द्धक जलवायु का जादू ही कुछ ऐसा है कि उसका अनुभव करने वाला सदैव पर्वतराज के प्रेमपाश में फंसकर रह जाता है। अजय सोडानी भी इस मोहपाश से अछूते न रहे। तंत्रिका विज्ञान के इन प्रोफेसर साहब पर हिमालय ने ऐसा तंत्र-मंत्र किया कि वह 'दर्रा दर्रा हिमालय' और 'दरकते हिमालय पर दर-ब-दर' के बाद वह नगपति पर अपनी तीसरी किताब 'सार्थवाह हिमालय' लेकर हाजिर हैं।

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पुस्तक के नाम से यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि यह भी एक यात्रा-आख्यान ही है। लेखक ने हिमालय में अपनी घुमक्कड़ी का बढिय़ा वृत्तांत सुनाया है। वह 26 अप्रैल, 2012 को इंदौर से निकलकर तीसरे दिन जोशीमठ में लंगर डालते हैं और यहां से आरंभ हुआ उनका सफर तमाम दिलचस्प पड़ावों से गुजरते हुए मियाली दर्रे और वासुकी ताल तक चलता है। इस यात्रा में वह हिमालय के भूगोल के साथ-साथ उसके इतिहास, परंपरा, साहित्य, लोक-संस्कृति से साक्षात्कार कराते चलते हैं। शब्दों के इस सफर में रोमांच भी अपनी पूरी पकड़ बनाए रखता है। बकौल लेखक हिमालय का सम्मोहन कुछ ऐसा है कि यह पहली निगाह में ही व्यक्ति के रक्त में घुलने लगता है और व्यक्ति प्रकृति की इस अनुपम देन को अपने व्यक्तित्व का हिस्सा मानने लगता है। लेखक हिमालय की विराटता के आलोक में हमारे अस्तित्व की गौणता का एक अनूठा समीकरण बनाते हैं।

विषयवस्तु पुस्तक का सशक्त पक्ष है, किंतु कतिपय स्थानों पर प्रस्तुति एवं भाषा-शैली कुछ अवरोध-सा उत्पन्न करती हैं। बिल्कुल वैसे ही, जैसे किसी सुरम्य पहाड़ी से गुजरते हुए सामने से अचानक कोई तीखा मोड़ आ जाए। पहली पंक्ति पढ़कर ही लगता है कि यह उर्दू की किताब है, जिसमें 'जाजम' जैसा तुर्की भाषा का शब्द इस्तेमाल किया गया है। कई उम्दा तस्वीरें भी दी गई हैं, लेकिन श्वेत-श्याम प्रकृति में वे अपेक्षित प्रभाव नहीं छोड़ पातीं। बेहतर होता कि पुस्तक में एक स्थान पर उन्हें रंगीन स्वरूप में संकलित किया जाता।

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पुस्तक : सार्थवाह हिमालय

लेखक : अजय सोडानी

प्रकाशक : राजकमल पेपरबैक्स

मूल्य : 350 रुपये


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