बीएचयू में प्रेशर हॉर्न का शोर, सुनने की क्षमता को कर रहा कमजोर, बीएचयू में परीक्षा की तैयारी में डाल रहे बाधा
बनारस जैसे शहर में हम कितना भी हॉर्न बजा लें न बजाने वाला संतुष्ट हो रहा और न ही सुनने वाला। वहीं महामना की बगिया बीएचयू में भी यही आलम है। यह समय बीएचयू में परीक्षाओं का है।
वाराणसी [हिमांशु आस्थाना]। याद है जब बचपन में हमें गाड़ी चलाने से पहले हॉर्न बजाना सिखाया जाता था। ऐसा कर हमें गाड़ी चलाने जितनी ही संतुष्टि होती थी। पर आज बनारस जैसे शहर में हम कितना भी हॉर्न बजा लें, न बजाने वाला संतुष्ट हो रहा और न ही सुनने वाला। वहीं महामना की बगिया बीएचयू में भी यही आलम है। यह समय बीएचयू में परीक्षाओं का है। छात्र चुपचाप पढ़ाई में तल्लीन हैं पर बुलट और अन्य गाडिय़ों के प्रेशर हॉर्न उनकी तैयारी में बाधा डाल रहे हैं। वहीं रॉकेट जैसी आवाज वाली बुलट तो बिना बात के दिलो-दिमाग में छेद कर रही है।
नियमों को रखते हैं ताक पर
लोग हॉर्न से संबंधित सरकार के नियमों को ताक पर रखकर चलते हैं। दुनिया के कई देशों में तो हॉर्न बजाने को गाली स्वरूप देखा जाता है लेकिन हमारे यहां हॉर्न बजाना शान की बात लगती है। इसका सबसे ज्यादा भुक्तभोगी तो 'नो हॉर्न जोन वाला क्षेत्र होता है जैसे कि हॉस्पिटल।
हॉस्पिटल भी नहीं बच सका
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हॉस्पिटल व मरीजों के आसपास शोरगुल की मात्रा 30 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन हॉस्पिटल में कई बार यह मात्रा 125 डेसिबल को भी पार कर जाती है। इससे बहरापन, पागलपन, दौरे, कान में भारीपन, माइग्रेन, हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज, भ्रम पैदा होना, लकवा, चक्कर आदि की समस्या बढऩे लगती है, खासकर मरीजों को।
एकॉस्टिक डैमेज का खतरा
आर्युवेद विभाग में इएनटी के डॉक्टर बी मुखोपाध्याय ने बताया कि शहर में अचानक से बजने वाले हॉर्न से लोगों में एकॉस्टिक डैमेज की समस्या बढ़ रही है। रोजाना इससे ग्रसित 10-15 प्रतिशत मरीज हमारे पास आते हैं। वहीं न्यूरोलॉजी के डॉक्टर वीएन मिश्रा ने बताया कि आम आदमी के अलावा प्रेसर हॉर्न से गर्भवती महिला के बच्चे तक बहरे हो जाते हैं। वहीं नवजात बच्चे का कान तो छह माह तक बनने की अवस्था में होता है, तेज हॉर्न से उसका कान डिफेक्टिव हो सकता है।
लोगों को बीमार व परेशान होते देखा
इस बारे में वाशिंगटन डीसी के बेले ने कहा कि बनारस में ही हॉर्न की समस्या व इससे लोगों को बीमार व परेशान होते देखा है। वाशिंगटन में तो इसका कभी अहसास ही नहीं हुआ। कोलकाता की मेघा मजूमदार ने कहा कि
ध्वनि प्रदूषण के साथ ही हॉर्न से महिलाओं में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है, क्योंकि आए दिन इसका प्रयोग लड़कियों को छेडऩे में किया जा रहा है। बाइक राइडर ऋषि सिंह ने कहा कि शहर में हाइ फ्रीक्वेंसी हॉर्न बजाकर चलने वाले बाइकर्स तो हरगिज नहीं हो चाहिए। अच्छा बाइक राइडर हमेशा नो हांकिंग जोन का ध्यान रखता है।
रोजमर्रा के कार्यों व उसके ध्वनि की तीव्रता पर एक नजर
विवरण डेसिबल
बातचीत- 50-60
लाइब्रेरी व घर - 40
ट्रैफिक - 85-90
रेलगाड़ी हॉर्न- 110
खेल मैदान में क्राउड -120-130
सायरन व गनशॉट - 150
हवाई जहाज-120-145
रॉकेट लांचिंग- 200 के लगभग