Ballia में ददरी मेला की तैयारियों ने पकड़ा जोर, राजकीय दर्जा देने को बुलंद की आवाज
बलिया में ददरी मेला आयोजित करने की घोषणा के साथ ही तैयारियों ने जोर पकड़ लिया है। ददरी मेला को राजकीय दर्जा दिलाने के लिए आवाज बुलंद की। मेला परिक्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए प्रशासन से ठोस व कारगर कदम उठाने की मांग की गई।
बलिया, जेएनएन। ददरी मेला का इतिहास अनादि काल से है। गंगा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए महर्षि भृगु ने सरयू नदी की जलधारा को अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि के द्वारा बलिया में संगम कराया। कार्तिक पूर्णिमा स्नान एवं ददरी मेला भी उसी समय से है। भृगु क्षेत्र महात्म्य के लेखक शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा पर भृगु क्षेत्र में गंगा-तमसा के संगम पर स्नान करने पर वही पुण्य प्राप्त होता है जो पुष्कर और नैमिषारण्य तीर्थ में वास करने, साठ हजार वर्षो तक काशी में तपस्या करने अथवा राष्ट्र धर्म के लिए रणभूमि में वीरगति प्राप्त करने से मिलता है।
ददरी मेला आयोजित करने की घोषणा के साथ ही तैयारियों ने जोर पकड़ लिया है। बुधवार को बागी धरतीवासियों ने ददरी मेला को राजकीय दर्जा दिलाने के लिए आवाज बुलंद की। मेला परिक्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए प्रशासन से ठोस व कारगर कदम उठाने की मांग की गई।
कोरोना संक्रमण को देखते हुए जिला प्रशासन ने मेले के आयोजन पर रोक लगा दिया था, लेकिन बलिया के लोगों के विरोध के बाद अब इस मेले के आयोजन की मंजूरी मिल गई है। इस मेले का दायरा सिमटता जा रहा है, इस पर किसी का कोई ध्यान नहीं है। पहले यह मेला बलिया शहर के दक्षिणी सिरे को स्पर्श करते हुए लगभग दो किलोमीटर से भी अधिक में लगता था, लेेकिन भू-माफियाओं के लगातार अतिक्रमण से यह मेला पूरब की ओर स्थानांतरित हो गया। इस वजह से यह मेला अब कई किसानों के खेतों में लगता है। इस मेले को राजकीय दर्जा दिलाने की मांग भी लंबे समय से हो रही है, लेकिन इस मामले में भी अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिला। इस साल भी इस मेले को राजकीय दर्जा दिलाने की मुहिम चल पड़ी है। साहित्यकारों सहित कई सामाजिक संगठन के लोग यह मांग पुरजोर तरीके से कर रहे हैं। इस मेले के संबंध में नगर के कुछ चुङ्क्षनदा लोगों की राय इस प्रकार रही...।
अतिक्रमण के चलते भूमिहीन हो गया मेला
साहित्यकार शिवकुमार कौशिकेय बताते हैं कि भारतेंदु हरिश्चंद ने ददरी मेले से ही ङ्क्षहदी साहित्य के उत्थान का प्रथम उदघोष भारतवर्षोन्ति कैसे, किया था। वह आज भी ङ्क्षहदी साहित्य के लिए मार्गदर्शक व मील का पत्थर है। भारत वर्ष की उन्नति का प्रथम उदघोषक ददरी मेला आज दीन, हीन व भूमिहीन होकर बिलख रहा है। सरकार और जिला प्रशासन को ददरी मेले के लिए स्थाई भूमि का प्रबंध करना चाहिए।
जिला प्रशासन की उदासीनता से बढ़ा अतिक्रमण
शिक्षक व साहित्यकार डॉ. नवचंद्र तिवारी ने कहा कि यह विडंबना कि प्रशासन की उदासीनता से भू माफियाओं ने इसका स्वरूप ही बिगाड़ दिया है। इस पर जिला प्रशासन का भी कोई ध्यान नहीं है। जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते ही मेले की जमीन पर अतिक्रमण बढ़ता गया। इस मेले के लिए स्थाई भूमि आवश्यक है। जब तक ऐसा नहीं होता, मेले की ऐतिहासिकता को बचाए रखना भी मुश्किल हो जाएगा।
राजकीय सम्मान की दिशा में हो पहल
सामाजिक कार्यकर्ता भानु प्रकाश ङ्क्षसह बबलू कहते हैं कि भृगुक्षेत्र की ऐतिहासिकता का बखान करने वाले ददरी मेला की अपनी भूमि हो तभी राजकीय मेला की मांग को को पंख लग सकता है। इस मेले की जमीन पर अब अनाधिकृत रूप से कालोनियां बन जाने से इसके अस्तित्व पर भी संकट मंडराने लगा है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि मेले के लिए जमीन का अधिग्रहण कर इसे राजकीय सम्मान दिलाने की दिशा में पहल हो।
मेले में होते हैं कई तरह के आयोजन
ददरी मेले में कई तरह के आयोजन होते हैं। हजारों दुकानें लगती हैं। कवि सम्मेलन सहित कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। चरखी, मौत का कुंआ, सर्कस, चेतक प्रतियोगिता आदि भी मेले की शोभा बढ़ाते हैं। इस साल मेले का स्वरूप क्या होगा, इस पर अभी तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं हो सका है। मंत्री आनंद स्परूप शुक्ल की ओर से केवल मेला लगाने की घोषणा की गई है।