Move to Jagran APP

प्रेमचंद जयंती : आधुनिक लेखन के दौरन में हाफ गर्लफ्रैंड के आगे फीके पड़ते झूरी, होरी और माधो

साहित्य अपने समय का आईना होता है। वह बीते समय के इतिहास और अनुभवों से अभिसिंचित भी होता है। आज दुनिया में आर्थिक और तकनीकी बदलाव बेहद तेज गति से हुए हैं। लेकिन सामाजिक बदलाव की गति इसके मुकाबले पिछड़ गई है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 11:10 AM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 11:10 AM (IST)
प्रेमचंद जयंती : आधुनिक लेखन के दौरन में हाफ गर्लफ्रैंड के आगे फीके पड़ते झूरी, होरी और माधो
प्रेमचंद के रचे हुए पात्र, उनके उपन्यास और कहानियां हमारी स्मृतियों में आज भी जीवित हैं।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। साहित्य अपने समय का आईना होता है। वह बीते समय के इतिहास और अनुभवों से अभिसिंचित भी होता है। आज दुनिया में आर्थिक और तकनीकी बदलाव बेहद तेज गति से हुए हैं। लेकिन सामाजिक बदलाव की गति इसके मुकाबले पिछड़ गई है। जिसके परिणामस्वरूप समाज में असंतुलन की जबरदस्त हलचल दिखाई देती है। इस परिवर्तन से व्यक्तिगत, सामाजिक और नैतिक मूल्य प्रभावित हुए हैं। कुछ भी अछूता नहीं रहा। यदि हम प्रेमचंद के युग में जाएं तो पाएंगे कि प्रेमचंद अपने समय की व्यवस्था और सामाजिक बुराईयों पर अनेक आयामों से प्रहार करते हैं। वे समाज की कुरीतियों को उधेड़कर रख देते हैं। अपने समय की सच्चाई को अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से बेहद मजबूती से प्रकट करते हैं। यही वजह है कि प्रेमचंद के रचे हुए पात्र, उनके उपन्यास और कहानियां हमारी स्मृतियों में आज भी जीवित हैं। उनकी रचनाएं कालातीत हैं।

loksabha election banner

हाफ गर्लफ्रैंड के आगे फीके पड़ते झूरी, होरी और माधो

यह सत्य है कि एक लेखक अपने पाठकों के लिए लिखता है। किंतु लेखक का युगधर्म क्या यहीं तक सीमित है। उदारीकरण के तीन दशकों में लगभग पांच लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। इस पीड़ा को कितने लेखकों की लेखनी में स्थान मिल सका। किसान और मजदूर की आधी आबादी वाले इस देश में इन तीन दशकों में आखिर क्यों कोई किसान या मजदूर किसी नए प्रेमचंद की रचना का कालजयी पात्र बनकर नही उभर सका है। हाफ गर्लफ्रैंड तो ठीक है लेकिन लाखों किसानों की आत्महत्या क्यों किसी साहित्यकार के हृदय को बींध नहीं पाई। उसके हृदय से पीड़ा की धारा बनकर जनमानस के दिलों में नहीं समा पायी।लाखों आत्महत्या करने वाले किसानों और करोड़ो जीवित मजदूरों-किसानों की दुर्दशा को बयां करती अमर रचना किसी साहित्यकार का रचनाकर्म क्यों नही बन सकी। प्रेमचंद की अमर रचनाओं के पात्र आज भी जिंदा हैं। बस समय के साथ उनका कलेवर बदल गया। बदले कलेवर में इन पात्रों को पहचानने वाली नज़र आज दिखती नही है। क्या आज का साहित्य अपने बीते हुए कल से कन्नी काटते हुए अर्धसत्य ही देख रहा है।

चकाचौंध के आगे पस्त रचनाकर और उसका रचनाधर्म

अर्थ की लिप्सा आधुनिक मूल्य बन गयी है। साहित्य जगत भी इससे अछूता नही रहा। वैसे भी पूंजी अपनी आलोचना को अपनी शक्ति के बल पर येन-केन-प्रकारेण विजित करने का हर सम्भव प्रयास करती है। वह नही चाहेगी कि साहित्य राजनीति से आगे चलने वाली मशाल बना रहे। अर्थजनित परिवेश अनेक प्रकार से साहित्य पर प्रहार करता है। समाज को भोगविलास में लिप्त करके, व्यक्ति की रुचियों को भौतिकवादी बनाकर और उसके दृष्टिकोण को स्वहित केंद्रित करने जैसे प्रयासों को अपनाकर वह अभीष्ट की सिद्धि कर लेता है। इसके चलते साहित्यकार कितना भ्रमित हुआ है यह विश्लेषण का विषय है। क्योंकि जमीनी लेखन की प्रवृतियां दुर्लभ हो गयी हैं। साहित्य समाज के सामने समाज में मौजूद समस्यायों और चुनौतियों को सामने लाता है। उसकी खामियों को उजागर करके वह समाज को समाधान के लिए उद्वेलित करता है। आज का कलमकार इस पैमाने पर कितना खरा उतर रहा है, क्या आज के लेखकों और समाज को इस पर मनन नहीं करना चाहिए।

जो सत्य से विमुख, वह साहित्य नहीं

साहित्यकार आत्मश्लाघा के लिए नही लिखता और न ही वह केवल सुख की अभिव्यक्ति के लिए लिखता है। उसका धर्म और कर्म समाज में व्याप्त असंतुलन को मुखरता से उभारना है। उसे कड़वा सत्य उकेरने लाने वाला निर्भयी होना चाहिए। उसकी रचना में पंक्ति के अंतिम व्यक्ति का दर्द झलकना चाहिए। उसे जमीनी लेखन का सजग प्रहरी होना चाहिए। बड़ी विडंबना है कि आज का साहित्य केवल खुशनुमा बदलाव की ओर दौड़ता हुआ ज्यादा दिखाई देता है। यदि ऐसा न होता तो आज कम से कम एक नया प्रेमचंद और एक नया झूरी समाज के सामने आ चुका होता। यदि ऐसा हुआ होता तो आज के आधुनिक लेखन से झूरी, होरी और माधो गायब नहीं हुए होते। वे हाफ गर्लफ्रैंड रूपी अर्धसत्य को अपनी उपस्थिति से पूर्णता अवश्य दे रहे होते। संभवतः इस पूर्णता के आलोक में समाज साहित्य की रोशनी में सही से देख पाता और परिवर्तन के परिणामों को बेहतर ढंग से आत्मसात करने में सफल रहता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.