महान आत्माओं की मरणोपरांत होगी पूजा, बता गए महान गणितज्ञ 'डा. वशिष्ठ नारायण सिंह'
पड़ोसी जनपद आरा के बसंतपुर गांव के मूल निवासी महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के बाद बलिया में शिक्षा साहित्यकार व बुद्धिजीवी चिंतन कर रहे हैं।
बलिया [लवकुश सिंह]। यह सही है कि मरने के बाद ही देश के लोग किसी इंसान की अहमियत को समझ पाते हैं। जब तक आदमी जिंदा रहता है, उसकी उपेक्षा होते ही रहती है। कुछ ऐसा ही चिंतन पड़ोसी जनपद आरा के बसंतपुर गांव के मूल निवासी महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के बाद बलिया में शिक्षा, साहित्यकार व बुद्धिजीवी कर रहे हैं। जीते जी उनकी उपेक्षा से साहित्य जगत से लेकर शिक्षक समुदाय तक दुखी है। सभी मानते हैं कि जब तक डा. वशिष्ठ नारायण सिंह जीवित थे, उनकी देखभाल के प्रति सरकारों ने उतनी तत्परता नहीं दिखाई, जितने की जरूरत थी। वह कोई छोटी हस्ती नहीं थे, आइआइटी से लेकर अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय तक बिहार का नाम रोशन किया था।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के सूत्र को चुनौती दी थी। ऐसे महान गणितज्ञ को राष्ट्रीय स्तर के बड़े अवार्ड की अनुशंसा तक नहीं हुई, राज्यस्तरीय सम्मान देना भी बिहार सरकार ने उचित नहीं समझा। अब जब वह अपनी अमिट पहचान को धरती पर छोड़ इस लोक से विदा हो गए तो अब उनके नाम का माला जपते बहुत से रहनुमा भी नहीं थक रहे। महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह की निधन की खबर ने बलिया के साहित्यकारों, शिक्षकों व सामान्य लोगों के दिलों को भी झकझोरा है। डा. वशिष्ठ के संबंध में जेपी इंटर कालेज के प्रधानाचार्य विनोद सिंह बताते हैं कि मै पढ़ाई के समय से ही उनका नाम सुन रहा था।
गणितीय प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह 1994 में मानसिक स्थिति खराब होने की हालत में छपरा के डोरीगंज बाजार में जब मिले, तब अखबारों के जरिए ही देश के लोग इस बात को जान पाए कि वे कैसे इंसान हैं और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी अहमियत क्या है। ऐसी महान आत्मा को सरकारों को पूजना चाहिए। आरा जिले के ही उनके पड़ोसी गांव के निवासी राजेश सिंह जो अब बलिया में घर बनाकर रहते हैं, ने बताया कि आज के परिवेश में समाज की सोच बदल गई है।
हमारे आसपास ही कई महान लोग रहते हैं, लेकिन उनके विषय में हमे जानकारी नहीं होती। अब लोग उनके विषय में ही ज्यादा जानते हैं जो आज लाव-लश्कर लेकर समाज में अपनी पहचान स्थापित करते हैं। बताया कि महान गणितज्ञ के गांव से मेरे पैतृक गांव की दूरी बहुत ही कम है। हम उन्हें देखने भी उनके गांव गए थे, लेकिन सरकारों ने उन्हें सम्मान ने देकर एक बड़ी गलती की है।
नगर के निवासी वरिष्ठ साहित्यकार डा. जनार्दन राय कहते हैं कि महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह को उनके जीवन काल में ही राष्ट्रीय स्तर का बड़ा सम्मान मिल जाना चाहिए था। सरकारों ने उनकी उपेक्षा में कोई कमी नहीं रखा है। यह देख साहित्य जगत के लोगों को काफी कष्ट पहुंचता है। डा. वशिष्ठ नारायण सिंह की दिवंगत आत्मा ही यह बता रही है कि देश में मरने के बाद ही बड़े साहित्यकार, गणितज्ञ, कलाकार, पत्रकार, शिक्षक या समाज के लिए कुछ करने वाले लोग पूजे जाएंगे।