आंख एक्को नाहीं, कजरौटा नौ ठे, चौक की रतजगिया अड़ी पर भी चुनावी रंगत बढ़ी
बनारस में इन दिनों चाय की अडियों पर चाय का आनंद लेने वाले अडी बाजों की चुनावी बतकही काफी चर्चा बटोर रही है।
वाराणसी, जेएनएन। 'करनी-धरनी कुच्छौ नाहीं। सब बस छूंछा भोंपा बजावत हौ। घोषणा पत्र के नाम पर पब्लिक के भरमावत हौ। केहू के अंटी से छह हजारा रूक्का निकलत हौ त कोई अठरह हजारा हुंडी खोलत हौ। इहां मजूरी के नगदऊ क दरसन दुर्लभ ओहर ढपोरशंख नॉनस्टाप पों-पों बोलत हौ। भयवा यही के कहा जाला जुबानी जमा-खर्च। सैकड़ा दे हजारा ले। एक्को आंख क ठेकान नाहीं। बहुरिया के झांपी (संदूक) में कजरौटा नौ ठे...।'
नेता टी स्टाल से दक्षिण लक्ष्मी चाय की भट्ठी तक पसरी चौक क्षेत्र की रतजगिया अड़ी पर रात के तीसरे पहर यह कलपान है रोहनिया वाले छांगुर राजभर की। रेशम की आवक दो दिन से ठप होने के चलते दिहाड़ी के लिए कलटकर रह गए। छांगुर का पारा आज हीट है। चुनावी घोषणाओं के नाम पर जर-बुताकर रह जाने वाला यह कामगार इन दिनों अपनी खुशमिजाजी से इतर ट्रैक से ऑफबीट है।
बादशाही चाय सुड़क रहे मंगल गुरु
दिन जले छांगुर की यह टेंढ़ी-सोझी रात में सुन सपाट पड़े कचौड़ी वाले ठेले पर हरिशयनी मुद्रा में बादशाही चाय सुड़क रहे मंगल गुरु को बातूनी क्रांति के लिए उकसाती है। हर बखत हरियाली की रौ में रहने वाले गुरु की बात निकलती है तो बस चलती ही चली जाती है। 'कलपा जिन छांगुर भाई गिनत रहा बस उन्नइस मई क तारीख कब आई, एदवां तनिको न चूकल जाई, कस के दबे बटन एग्जाई। आई आम चाहे जाई लबेदा (डंडे का टुकड़ा) फिर न चढ़ी काठ के हांडी क पेंदा। जाति-धरम के उफ्फर डाला। जांच-परिख के ठोंका ताला। जे रोजी-रोटी क बात उठावे। जेकरे कहे में दम-दिलासा नजर आवे। ओही क बात बतियाना हौ। हई देब त हऊ देब, दिल्ली देब, लखनऊ देब के झुनझुना बजावे वालन से सीधे कन्नी काट जाना हौ।
रतजगिया अड़ी की बढ़ती रौनक
रात अब ढलने को है। शुकवा (शुक्र तारा) निकलने को है। रतजगिया अड़ी की रौनक बढ़ती जाती है। क्या मुर्दहिये (शव यात्रा से लौटे लोग) क्या पुलिस के सिपहिये। क्या मजूरा मेठ और क्या कुंज गली वाले सेठ। सभी एक रोड में समाते हैं। चाय की चुस्की और गुलाबी रंगत वाले मक्खन टोस्ट की कुरुर-मुरुर के सुर-ताल पर चल रही चुनावी चर्चा को मानो नए पंख लग जाते हैं। योगी-मोदी, राहुल, आजम, अखिलेश, सोनिया, ममता यहां हर धान बाइस पसेरी के भाव से तोले जाते हैं। खुल जाती है सबकी जन्म कुंडली। लग्न पत्रिकाओं के पन्ने भी खोले जाते हैं। इन पीले पन्नों की गवाही के हवाले से पुलवामा, एयर स्ट्राइक, राफेल, आपातकाल की जेल, बदजुबानियों की रेल। मुरली मनोहर जोशी की चिट्ठी वाली फर्जी मेल सब एकसाथ अड़ी पर कुलबुलाने लग जाते हैं। अब तक नार्मल रही सरगोशियों के सुर धीरे-धीरे शोर में बदलते चले जाते हैं। अड़ी के चरित्र में भी बदलाव के संकेत हैं। पौ फटने के साथ ही नेता की अड़ी अवसान पर चली जाती है।
टहलवइयों की जुटती टोली
उधर, टहलवइयों की जुटती टोलियों की आहट के साथ लक्ष्मी चाय वाले की भट्ठी दग जाती है। अलबत्ता नहीं कुछ बदलता तो वह है बतकूचन का विषय जो नेता टी स्टाल से पटरी बदल कर लक्ष्मी की अड़ी की ओर चला आता है। एक बात और गौरतलब कि, चर्चा विरोध की हो या समर्थन की चर्चाओं के केंद्र में हर शै मोदी का वजूद ही पाया जाता है। पाला कोई भी खींचे बतकही को हवा देने वाला हर शख्स अपने आपको मोदी के इर्द-गिर्द ही चकरघिन्नी बना पाता है। लीजिए भोर भी ढली सुबह है, सवेरा है। मगर रात बात जो मोदी पर खत्म हुई थी, सुबह भी मोदी पर ही ठहरी हुई है। कुछ ऐसा ही इस दफा चुनावी फेरा है।