भदोही में दिखेगा दिग्गजों का सियासी दम, कालीन नगरी का सियासी रण बनाएगा नए समीकरण
भदोही में सियासी गुणा गणित कई दलों के इर्द गिर्द घूमता रहा है। सियासत की गणित कुछ ऐसी रही कि कभी सत्ता का साथ रहा तो कभी सत्ता के निशाने पर रहा। यहां सभी प्रमुख दलों का समय समय पर प्रभाव रहा है।
भदोही, जागरण संवाददाता। कालीन नगरी भदोही में सियासी गुणा गणित कई दलों के इर्द गिर्द घूमता रहा है। सियासत की गणित कुछ ऐसी रही कि कभी सत्ता का साथ रहा तो कभी सत्ता के निशाने पर रहा। यहां सभी प्रमुख दलों का समय समय पर प्रभाव रहा है। आइए जानते हैंं सियासी डगर पर कैसा रहा है राजनीति का सफर।
58.30 फीसद मतदान | वर्ष 2017 में |
57.10 फीसद मतदान | वर्ष 2012 में |
11,92,443 कुल मतदाता | भदोही जिले में |
विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजते ही कालीन नगरी के नाम से मशहूर भदोही में इस सर्द मौसम में भी गर्माहट आ गई है। महज तीन विधानसभा सीटों वाला यह जिला भी सियासी दलों के लिए खासा मायने रखता है। इन दिनों भी प्रदेश के दिग्गजों की निगाह कालीन नगरी की राजनीति पर जमी है। इस बार यहां का चुनाव भाजपा के लिए तो प्रतिष्ठापरक होगा ही, बाकी दल भी जीत के लिए कोई कसर बाकी न रखेंगे। इस बार के चुनाव में दिखेगा दिग्गजों का दम। तीनों सीटों पर सियासी समीकरण और मतदाताओं का रुख कौन सी नई पटकथा लिखेगा, यह तो 10 मार्च को ही सामने आएगा। इससे पहले आइए आपको बताते हैैं जिले की तीनों सीटों का अतीत और वर्तमान। भदोही से महेंद्र दुबे की रिपोर्ट...।
औराई (सु.)
क्षेत्र की विशेषताएं : औराई में कंटेनर, बंद चीनी मिल के अलावा छोटी कालीन नगरी के रूप में विख्यात खमरिया और ट्रामा सेंटर।
राजनीतिक इतिहास : इस विधानसभा क्षेत्र को नए परिसीमन में वर्ष 2012 के बाद से अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया। यह सीट प्रदेश के सियासी गलियारों में हमेशा सुर्खियों में रही। यहां वर्ष 2002 के चुनाव में बसपा ने उदयभान सिंह को मैदान में उतारा था जबकि भाजपा ने रंगनाथ मिश्रा को प्रत्याशी बनाया था। उदयभान सिंह को 52,947 जबकि रंगनाथ मिश्रा को 46,453 मत मिले थे। निर्वाचन के बाद ही गोपीगंज के तिहरे हत्याकांड की फाइल खुल गई। कोर्ट के आदेश पर उदयभान सिंह को आजीवन कारावास हो गया। राज्यपाल ने उनकी सदस्यता समाप्त कर दी। 2007 में अपना दल ने उनकी पत्नी रीता सिंह को प्रत्याशी बनाया था। बसपा के रंगनाथ मिश्रा को 53,759 जबकि रीता को 51,028 मत मिले थे। इसके बाद परिसीमन के हिसाब से यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गई। वर्ष 2012 में सपा ने मधुबाला पासी जबकि बसपा ने बैजनाथ सरोज और भाजपा ने हीरालाल पासवान को मैदान में उतारा। मधुबाला को 83,827 जबकि बैजनाथ सरोज 61,954 मत मिले। 2017 में भाजपा के दीनानाथ भास्कर चुने गए। उन्हें 83,325 मत मिले और सपा की मधुबाला पासी को 63,546 वोटों से ही संतोष करना पड़ा।
सामाजिक समीकरण : इस सीट पर ब्राह्मïण मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इस बार भी सभी दलों का प्रयास है कि मजबूत चेहरे पर दांव लगाया जाए।
मौजूदा परिदृश्य : अभी तक इस सीट पर किसी दल ने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। भाजपा के लिए इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने की चुनौती होगी तो सपा-बसपा भी इस सीट को अपने पाले में करना चाह रहे हैं। यहां कुल मतदाता 3,76,673 हैं।
ज्ञानपुर - लगातार चार बार विधायक बने विजय मिश्र, इन दिनों जेल में
क्षेत्र की विशेषताएं : बाबा सेमराधनाथ धाम, सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी, तिलेश्वरनाथ मंदिर आदि।
राजनीतिक इतिहास : वर्ष 2002 और 2007 में सपा के टिकट पर विजय मिश्र विधायक बने। 2012 में उन्हें 61,230 वोट मिले थे जबकि बसपा के दिनेश कुमार सिंह 58,652 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे। भाजपा के गोरखनाथ पांडेय को 18,880 मतों से ही संतोष करना पड़ा था। 2012 के चुनाव में भी बसपा-सपा के बीच सीधी टक्कर हुई। भाजपा चौथे स्थान पर रही। सपा के विजय मिश्र को 91,604 वोट मिले थे जबकि बसपा के दिनेश कुमार सिंह को 53,930 मत। 2017 की मोदी लहर में भी भाजपा को ज्ञानपुर सीट पर सफलता नहीं मिली। इस चुनाव के पहले ही सपा ने आरोपों के घेरे में रहने वाले विजय मिश्र का टिकट काटकर रामरती बिंद को दे दिया। इस चुनाव में विजय मिश्र ने निषाद पार्टी से ताल ठोकी। 66,448 मतदाताओं ने समर्थन देकर लगातार चौथी बार उन्हें विधायक चुना। भाजपा के महेंद्र बिंद को 46,218 जबकि बसपा के राजेश कुमार यादव को 44,319 मत मिले थे। विजय मिश्र इन दिनों आगरा जेल में निरुद्ध हैैं।
सामाजिक समीकरण : इस सीट पर ब्राह्मïण और बिंद मतदाताओं की संख्या अधिक है लेकिन ओबीसी मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : विभिन्न आरोपों से जूझ रहे मौजूदा विधायक विजय मिश्र की मुश्किलें बढ़ चुकी हैैं। ऐसे में इस चर्चित सीट पर सभी दल जीत की आस में हैैं। भाजपा के लिए भी यह सीट नाक का सवाल बन चुकी है। हालांकि किसी दल में अभी प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। यहां कुल मतदाता 389452 हैं।
भदोही - जनता ने हर बार चुना नया विधायक, दूसरी बार नहीं जताया भरोसा
क्षेत्र की विशेषताएं : कालीन उद्योग, मेगा एक्सपो मार्ट, आइआइसीटी, भदोही औद्योगिक प्राधिकरण, कालीन निर्यात संवर्धन परिषद आदि।
राजनीतिक इतिहास :
इस सीट का सियासी समीकरण प्रत्येक चुनाव में बदलता रहता है। 2007 में बसपा की अर्चना सरोज यहां से विधायक चुनी गईं। उन्हें 47,555 मत मिले थे जबकि सपा उम्मीदवार दीनानाथ भास्कर को 41,225 मत मिले थे। 2012 के चुनाव में मतदाताओं ने बसपा को नकार दिया और सपा प्रत्याशी जाहिद बेग 78,698 मत पाकर विजयी हुए। बसपा के रवींद्रनाथ त्रिपाठी को 62,457 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। 2017 के चुनाव में मतदाताओं ने फिर से नए जनप्रतिनिधि को चुना। सपा विधायक को नकारते हुए भाजपा में शामिल हुए रवींद्रनाथ त्रिपाठी पर विश्वास जताया। रवींद्रनाथ को 79,519 जबकि सपा के जाहिद बेग को 78,414 मत मिले थे। महज 1,105 मतों से जाहिद बेग की हार हुई। बसपा के पूर्व माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्रा को 56,555 वोट से ही संतोष कराना पड़ा।
सामाजिक समीकरण : अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता है। मुस्लिम, यादव, क्षत्रिय, ब्राह्मïण मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : हाल ही में किसी ने रवींद्रनाथ त्रिपाठी का फर्जी इस्तीफा इंटरनेट मीडिया पर वायरल कर दिया। इस कारण समूचे प्रदेश में इस सीट की चर्चा रही। भाजपा भी यहां फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। वहीं, अन्य दल भी अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। यहां कुल मतदाता 426318 हैं।