पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पण का पखवारा 14 दिनी, पितृ पक्ष 25 सितंबर से हो रहा आरंभ
पितृपक्ष का आरंभ 25 सितंबर से हो रहा है, आश्विन कृष्ण पक्ष में षष्ठी तिथि की हानि से यह पक्ष 14 ही दिनों का होगा। ऐसे में द्वादशी और त्रयोदशी का श्राद्ध तर्पण छह अक्टूबर को होगा।
वाराणसी [प्रमोद यादव] : सनातनी परंपरा के तीन ऋणों में पितृ ऋण प्रमुख माना जाता है। पितरों को समर्पित आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष कहा जाता है। इस बार आश्विन मास की शुरुआत 26 सितंबर से होगी मगर सनातन धर्म में किसी पक्ष की शुरुआत उदया तिथि के अनुसार मानी जाती है और श्राद्ध-तर्पण का समय मध्याह्न में होना आवश्यक माना जाता है। इस लिहाज से पितृपक्ष का आरंभ 25 सितंबर से हो रहा है। खास यह कि इस बार आश्विन कृष्ण पक्ष में षष्ठी तिथि की हानि से यह पक्ष 14 ही दिनों का होगा। ऐसे में द्वादशी और त्रयोदशी का श्राद्ध तर्पण छह अक्टूबर को किया जाएगा। सर्वपैत्री श्राद्ध अमावस्या व पितृ विसर्जन आठ अक्टूबर को मनाया जाएगा।
शास्त्रीय मान्यता : जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख, सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि के लिए अनेक प्रयत्न व प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक है। उनके ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्च भी नहीं होता। केवल वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को सर्व सुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करने के साथ ही गो ग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से ऋण उतर जाता है।
विधान : ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार पितृ पक्ष में नदी तट पर विधिवत तर्पण तथा मृत्यु तिथि पर अपने पूर्वजों के श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन श्रद्धा के साथ करा के अपने पितरों को तृप्त व प्रसन्न किया जाता है। मृत्यु तिथि पर अपने पितरों को याद कर उनकी स्मृति में योग्य ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक इच्छा भोजन करा के दान -दक्षिणा देते हुए संतुष्ट करना चाहिए। याज्ञवल्य स्मृति के अनुसार 'आयु: प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं सुखानि च। प्रयच्छंति तथा राज्यं प्रिता निर्णाम पितामहा:।। अर्थात् श्राद्ध कर्म से प्रसन्न हो कर पितर मनुष्यों के लिए आयु पुत्र धन विद्या स्वर्ग मोक्ष सुख और राज्य दे देते हैं। मोक्ष स्वर्ग और पुत्र के दाता जीवित पितर नहीं किंतु दिव्य पितर ही हो सकते हैं। जिस स्त्री को कोई पुत्र न हो वह स्वयं भी अपने पति का श्राद्ध उसकी मृत्यु तिथि पर कर सकती है। पितृ विसर्जन के दिन रात्रि में मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर पितृ विसर्जन किया जाता है। पितर लोग अपने पुत्रादि से श्राद्ध तर्पन की कामना करते हैं। यदि उन्हें यह उपलब्ध नहीं होता है तो श्राप दे कर चले जाते हैं।
तिथि विशेष
- प्रतिपदा का श्राद्ध 25 सितंबर
- द्वितीया का श्राद्ध 26 सितंबर
- तृतीया का श्राद्ध 27 सितंबर
- चतुर्थी का श्राद्ध 28 सितंबर
- पंचमी का श्राद्ध 29 सितंबर
- षष्ठी का श्राद्ध 30 सितंबर
- सप्तमी का श्राद्ध एक अक्टूबर
- अष्टमी का श्राद्ध दो अक्टूबर
- नवमी का श्राद्ध तीन अक्टूबर
- दशमी का श्राद्ध चार अक्टूबर
- एकादशी का श्राद्ध पांच अक्टूबर
- द्वादशी व त्रयोदशी का छह अक्टूबर
- चतुर्दशी का श्राद्ध सात अक्टूबर
- पितृ विसर्जन आठ अक्टूबर
तिथिवार श्राद्ध : प्रमुख श्राद्धों में मातृ नवमी तीन अक्टूबर को होगी। इसमें माता की मृत्यु तिथि ज्ञात न होने पर श्राद्ध का विधान है। आश्विन कृष्ण एकादशी (पांच अक्टूबर) यानी इंद्रा एकादशी पर व्रत उपवास के साथ श्राद्ध किया जाता है। आश्विन कृष्ण द्वादशी (छह अक्टूबर) को संन्यासी व वनवासी के निमित्त श्राद्ध का विधान है। आश्विन चतुर्दशी (सात अक्टूबर) को किसी दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है। सर्वपैत्री अमावस्या पर अन्य के अतिरिक्त जिस किसी मृतक की तिथि ज्ञात न हो या अन्यान्य कारणों से नियत तिथि पर श्राद्ध न कर पाने के कारण इस दिन श्राद्ध किया जा सकता है।
''आश्विन प्रतिपदा 25 सितंबर को सुबह 7.41 बजे लग जा रही है। ऐसे में उदया तिथि अनुसार नए माह का आरंभ भले 26 सितंबर से हो लेकिन मध्याह्न में ही श्राद्ध -तर्पण का मान होने से प्रथम दिन का श्राद्ध-विधान 25 सितंबर को ही किया जाएगा। इस दिन से ही पितृ पक्ष आरंभ माना जाएगा।- डा. चंद्रमौलि उपाध्याय, ख्यात ज्योतिषाचार्य''