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वाराणसी में गंगा बलिदानी संतों की मांगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों ने भेजा पत्रक

मातृसदन हरिद्वार के स्वामी गोकुलानन्द जी एवं स्वामी निगमानंद जी तथा काशी के बाबा नागनाथ जी ने जीवन बलिदान कर दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 04:02 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 04:12 PM (IST)
वाराणसी में गंगा बलिदानी संतों की मांगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों ने भेजा पत्रक
वाराणसी में गंगा बलिदानी संतों की मांगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों ने भेजा पत्रक

वाराणसी, जेएनएन। मां गंगा की अविरलता एवं निर्मलता और हिमालयी क्षेत्र में बड़ी बांध परियोजनाओं, वन कटाव एवं पत्थर खनन के विरोध में मातृसदन हरिद्वार के स्वामी गोकुलानन्द जी एवं स्वामी निगमानंद जी तथा काशी के बाबा नागनाथ जी ने जीवन बलिदान कर दिया। प्रसिद्ध पर्यावरण विज्ञानी प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद सरस्वती ने भी 11 अक्टूबर 2018 को 112 दिन के अनशन के बाद जीवन त्याग दिया था। मांगों को लेकर संत गोपालदास जी और ब्रह्मचारी आत्मबोधानन्द ने भी लम्बी अवधि तक अनशन किया। विगत 15 दिसम्बर से मातृसदन (हरिद्वार) में साध्वी पद्मावती गंगा रक्षा की कामना में उपवास पर हैं। उनकी तबीयत दिनों दिन बिगडती जा रही है। उनके अनशन के समर्थन में देश भर के गंगाप्रेमी अलग अलग स्थानों पर उपवास, सत्याग्रह कर रहे हैं।

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काशी की जनता की ओर से रविवार को अस्सी घाट पर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी एवं अन्य बलिदानी संतों को नमन करते हुए और तपस्यारत साध्वी पद्मावती के दीर्घायु होने की प्रार्थना की गयी। इसके साथ ही सामूहिक पत्र लेखन कर पद्मावती के जीवन रक्षा के लिए अपील की गयी। साध्वी पद्मावती के नाम पत्र भेज कर निवेदन किया गया कि वे अपना उपवास तत्काल समाप्त कर दें क्योंकि मां गंगा की रक्षा के आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी जनांदोलन बनाने के लिए उनके जैसे दृढ़निश्चयी व्यक्तित्व की बहुत आवश्यकता है।

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि गंगा सहित सभी सहायक नदियों को स्वस्थ, अविरल और निर्मल बनाने के लिए प्रभावी प्रयास किये जाएं और बलिदानी संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद एवं उनके बलिदान के क्रम में तपस्यारत पद्मावती की मांगों को तत्काल संज्ञान में लेते हुए ठोस कदम उठाने की इच्छाशक्ति दिखाएं। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी, एक के बाद एक संतों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने पाए इसका संकल्प हर भारतवासी को लेना होगा।

कार्यक्रम संयोजक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा कि बांधों, हिमालयी क्षेत्र में वन कटाव, पत्थर खनन, प्रदूषण और अतिदोहन के कारण नदियों का जीवन नष्ट हो रहा है, हमें नदियों को जीवंत मानकर उनके अधिकार के संघर्ष को तेज करना होगा। गंगा एवं उसकी तमाम नदियों सहित कुंडों, तालाबों एवं अन्य जलस्रोतों के पुनर्जीवन के लिए हम केवल सरकारी योजनाओं के भरोसे बैठे नहीं रह सकते, इन योजनाओं से नदियों को पुनर्जीवित करना कदापि संभव नही होगा, आम जनता और जन प्रतिनिधियों की सक्रिय और ईमानदारी पूर्ण भागीदारी से ही नदियों को समृद्ध और स्वस्थ बनाया जा सकता है।  

गंगा रक्षा आन्दोलन के कपीन्द्र तिवारी ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र के बड़े बांधों ने मां गंगा का गला अवरुद्ध कर रखा है, बांधों से मुक्ति ही गंगा की दशा में सुधार का एकमात्र कारगर उपाय है। बड़ी बांध परियोजनाओं को तत्काल बंद करने के लिए सरकार को निर्णय लेना चाहिए। सामूहिक पत्र लेखन के माध्यम से प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार और उत्तराखंड राज्य सरकार से अपील की गयी कि उपवासरत साध्वी पद्मावती के जीवन पर आसन्न खतरे को देखते हुए तत्काल उनसे वार्ता की जाय और उनकी मांगों पर सहृदयता पूर्वक विचार किया जाय। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से फादर आनंद, विशाल त्रिवेदी, कपिंद्र तिवारी, धनंजय त्रिपाठी, वल्लभ पांडेय, त्रिलोचन शास्त्री, फादर दयाकर, महेंद्र, रवि शेखर, इंदु पाण्डेय, सानिया अनवर, एकता शेखर, राम जनम, श्रीप्रकाश राय, विनय सिंह, दीन दयाल, जागृति, राही, अनूप श्रमिक आदि लोग शामिल हुए।


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