Pakistani नागरिक आज भी मीरजापुर जिले में किसान, चुनार तहसील के खतौनी में दर्ज है पूरी कहानी
आजादी के समय देश में हुए बंटवारे के बाद सन 1947 से 1950 के मध्य भुइलीखास ग्राम से पाकिस्तान की शरण में यहां से सैकड़ों मुस्लिम परिवार गए थे। उनका आज भी नाम गांव के खतौनी में दर्ज है।
मीरजापुर [अजय श्रीवास्तव]। चुनार तहसील प्रशासन की लापरवाही से क्षेत्र के भुइलीखास ग्राम के खतौनी में काश्तकार के रुप में आज भी पाकिस्तानी नागरिकों का नाम दर्ज है। कुछ साल पहले एक उच्चाधिकारी ने इनका नाम खतौनी से हटाने को कहा था, लेकिन सात साल बीत गए, फिर भी प्रशासन ने इनका नाम खतौनी से नहीं हटाया। आज भी ये लोग चुनार तहसील के खतौनी में चल रहे हैं।
आजादी के समय देश में हुए बंटवारे के बाद सन 1947 से 1950 के मध्य भुइलीखास ग्राम से पाकिस्तान की शरण में यहां से सैकड़ों मुस्लिम परिवार गए थे। उनका आज भी नाम गांव के खतौनी में दर्ज है। अंग्रेजी शासन में विकास खंड जमालपुर के भुइली खास गांव के जमींदार शाह मुजी बुल्ला की अपनी एक हुकूमत चलती थी। उनकी गिनती बड़े रसूखदारों में होती थी। देश को मिली आजादी के बाद सन् 1947 में शाह मुजी बुल्ला के परिवार के लोग पाकिस्तान चले गए और शाह के पुत्र हसन, नन्हें, बदरे वहां पर पाकिस्तानी नागरिकता को ग्रहण कर लिया। परिवार के साथ वहीं पर अपना आशियाना बना लिया, लेकिन अंग्रेजी शासन के दमन के बाद देश में ऊपजी दो समुदायों के बीच बटवारे से शाह भी पाकिस्तान के प्रेम से अधिक दिनों तक दूर नहीं रह सके।
आखिरकार सन 1950 ई. के दौरान पुत्र मोह में पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता को ले लिया। उसके बाद आज तक उनके परिवार का कोई सदस्य भारत नहीं लौटा। अपनी संपत्ति को गांव में छोड़ गए। जब भुइलीखास गांव के खतौनी की पड़ताल की गई तो उसमें तहसील प्रशासन की बड़ी खामियां उजागर हुई। खतौनी के गाटा संख्या 603,620 व 621 ख में जमीन आज भी शाह के पुत्रों के नाम है। जबकि इसी प्रकार शाह के भाई शाह अब्दुल रहमान पुत्र अब्दुल गफूर के इंतकाल के बाद उनकी पत्नी व बेटा भी पाकिस्तान जाकर वहां के नागरिकता को ग्रहण कर लिया। कुछ दिन बात शाह के भाई शाह अब्दुल रहमान की इंतकाल के बाद उनकी पत्नी भी पाकिस्तान चली गई और वहां की नागरिकता ले ली, लेकिन उनके नाम से आज भी गांव की खतौनी में गाटा संख्या 171 में 126 एयर जमीन आज भी दर्ज है।
कब्रिस्तान के निर्माण के समय जांच हुइ तो पता चला भूस्वामियों का नाम
जुलाई 2013 में तत्कालीन मीरजापुर के सांसद बाल कुमार पटेल ने अपने सांसद निधि से कब्रिस्तान पर बाउंड्रीवाल का निर्माण कार्य प्रारंभ होने के बाद यहां के एक समुदाय ने इसका जोरदार विरोध किया था और कार्य को रोकवाने के लिए तहसील प्रशासन को पत्र भी लिखा था। जब तहसील प्रशासन की निगरानी में इसकी जांच करायी गई तो पता चला कि जमीन कब्रिस्तान के नाम से दर्ज ही नहीं थीं। जिसे लेकर प्रशासन में हड़कंप मच गया। जिस स्थान पर खुदाई व सांसद निधि से निर्माणकार्य हो रहा था जब उसकी बारीकियों से जांच हुई तो पता चला कि जिसकी यह जमीन है वह परिवार देश को छोड़कर पाकिस्तान की नागरिकता ले ली है। जबकि भारत का संविधान कहता है दूसरे देश की नागरिकता लेने वाले व्यक्ति की देश में संपत्ति का अधिकार नहीं है। गांव के भूलेख के गाटा संख्या 602 में आज भी उपासना स्थल अंकित है वहां आज भी मौजूद उपासना स्थल एक समुदाय के उपासना स्थल का केंद्र बना हुआ है।
कैसे होती रही वर्षों तक इतनी बड़ी लापरवाही
क्षेत्र के लोगों ने तहसील प्रशासन से खतौनी में दर्ज पाकिस्तानी नागरिकों के नामों को खारिज करने की मांग की है। तत्कालीन उपजिलाधिकारी चुनार दिवाकर सिंह ने कहा था कि उक्त प्रकरण को जिलाधिकारी को अवगत कराकर दुरुस्त कराया जाएगा, लेकिन सात वर्ष बाद भी खतौनी से नामों को खारिज नहीं किया गया। भुइलीखास के लेखपाल गौतम कुमार से पूछे जाने पर बताया कि गांव के खतौनी में आज भी शाह व उनके परिवार का नाम दर्ज है। कब्रिस्तान की जो चहारदीवारी कराई गई है उसमें कुछ जमीन आज भी खतौनी में शाह के नाम से दर्ज है।
बोले अधिकारी : हमारे संज्ञान में मामला नहीं हैै, अगर ऐसा है तो जांच कराई जाएगी । जैसा होगा नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
- अरूण कुमार गिरी, तहसीलदार चुनार।