पराली से खुलेगा मिट्टी की सेहत का द्वार, भारतीय मृदा विज्ञान समिति के सम्मेलन में मृदा स्वास्थ्य पर मंथन
बीएचयू स्थित कृषि शताब्दी प्रेक्षागृह में चल रहे भारतीय मृदा विज्ञान समिति के 84वें वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन आवश्यक कृषि सुधार व तकनीक के प्रयोग पर चर्चा हुई।
वाराणसी, जेएनएन। बीएचयू स्थित कृषि शताब्दी प्रेक्षागृह में चल रहे भारतीय मृदा विज्ञान समिति के 84वें वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन आवश्यक कृषि सुधार व तकनीक के प्रयोग पर चर्चा हुई। साइंटिस्टों ने गुणवत्तायुक्त कृषि उत्पादन व लक्ष्य की प्राप्ति को रासायनिक व जैविक खाद के समन्वित एवं वैज्ञानिक प्रयोग को जरूरी बताया।
नेशनल रेनफेड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के पूर्व सीईओ डा. जेएस समरा ने पराली जलाने की बजाय चावल बायोमास के वैकल्पिक उपयोग का प्रस्ताव रखा। उन्होंने मृदा स्वास्थ्य व रोजगार सृजन में सुधार के लिए पुआल से खाद बनाने को एक स्थायी मॉडल प्रस्तुत किया। कहा कि देश की करीब 36 फीसद कृषि योग्य भूमि समस्याग्रस्त हैं। यदि सुधार की दिशा में आवश्यक कदम नहीं उठाए गए तो भारतीय कृषि एवं खाद्य सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
डा. डीके दास ने उपेक्षित सूक्ष्म पोषक तत्व व सूक्ष्मजीवों के महत्व को रेखांकित किया। कहा कि सूक्ष्मजीव मृदा में अकार्बनिक स्रोतों में उपलब्ध पोषक तत्वों को पौधों को उपलब्ध कराते हैं। आइसीएआर के एडीजी डा. एसके चौधरी ने डिजिटल कृषि के हस्तक्षेप के साथ डिजिटल मृदा विज्ञान की रूप-रेखा प्रस्तुत की। उद्योग जगत एवं वैज्ञानिकों के बीच संवाद में कृषि प्रौद्योगिकी के साथ सामाजिक मुद्दों और मानव संसाधन के विकास में मदद पर सहमति बनी।
अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर प्रस्तुतिकरण दिया। कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. रमेश चंद, भारतीय मृदा विज्ञान समिति के अध्यक्ष डा. एके पात्रा, समिति के सचिव डा. डीआर विश्वास, मृदा एवं कृषि रसायन विभाग के अध्यक्ष प्रो. पी राहा, प्रो. विजय पी, संकाय प्रमुख प्रो. एपी सिंह, डा. एसके सिंह आदि थे।