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पतित पावनी, मोक्षदायिनी मां गंगा की निर्मलता और अविरलता ही हमारा संकल्प

राष्ट्रीय गंगा स्वछता मिशन गंगा को अविरल और निर्मल बनाने एवं जनता में इसके प्रति चेतना पैदा करने के उद्देश्य से गंगा उत्सव का वर्चुअल आयोजन कर रहा है। 4 नवंबर को मनाए जाने वाले इस दिवस पर ही माँ गंगा को एक राष्ट्रीय नदी की पहचान दी गई थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 09:52 AM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 09:52 AM (IST)
पतित पावनी, मोक्षदायिनी मां गंगा की निर्मलता और अविरलता ही हमारा संकल्प
गंगा आदिकाल से ही भारत की आस्था, श्रद्धा का केंद्र होने के साथ ही मंगलमयी कामना की नदी रही है।

राजीव रंजन मिश्रा। पतितपावनी, मोक्षदायिनी मां गंगा हिमालय से निकली केवल एक सामान्य जलधारा नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक वैभव, श्रद्धा एवं आस्था की प्रतीक मानी जाती हैं। सदियों से भारतीय समाज के हर वर्ग और समुदाय ने इसे अपनी भावनात्मक आस्थाओं का प्रतीक मानकर वंदना की है। भारतवर्ष के विशाल जन-समुदाय ने ममतामयी मां के रूप में गंगा को एक विशिष्ट मान्यता दी है। भारत ही नहीं, पूरे संसार में किसी अन्य जलधारा को इतना महत्व और प्रतिष्ठा नहीं मिली है, जितनी गंगा को युगों-युगों से प्राप्त होती रही है।

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गंगा आदिकाल से ही भारत की आस्था, श्रद्धा का केंद्र होने के साथ ही दिव्य मंगलमयी कामना की नदी रही है। वह मातृ स्वरूपा है तभी मां कहलाती है, जिसने मातृभाव से अपने तटवर्ती भूभागों का पालन-पोषण किया, उन्हें तीर्थ बना दिया। इसलिए भारत को एक सूत्र में बाँधने का श्रेय भी गंगा को ही दिया जाता है। माँ गंगा अनंतकाल से भारत का गौरव रही हैं, पोषक रही हैं, यही कारण है कि हमारे धर्मग्रंथ एवं साहित्य गंगा के माहात्म्य से भरे हैं। महाभारत में त्रिपथगामिनी, वाल्मीकि रामायण में विपथा, कालिदास कृत नाटकों में विस्त्रोता कही गई गंगा पुराणों की लोकमाता है, तो कहीं प्रैलोक्य व्यापिनी, जो अपने विभिन्न उद्देश्यार्थ धरती पर अवतरित हुई।

गंगा भारत की पहचान है, जो राष्ट्रीय नदी से कहीं अधिक एक विचार है। समूचे विश्व में गंगा आज भारत राष्ट्र की पहचान है। गंगा की जड़ें भारतभूमि में काफी अनंत तक जमी है, जिसने भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति को एकजुट किया। यही विश्व में गंगा की अपनी एक अलौकिक पहचान है। यह अलौकिक पहचान गंगाजल के प्राकृतिक गुण से हैं। इसी ने गंगा को न केवल अद्भुत बनाया है, बल्कि जिज्ञासावश शोध का विषय भी। गंगाजल को अमृत कहते हैं। गंगाजल में विद्यमान जीवाणुभोजी तत्वों में आश्चर्यचकित शक्ति एवं क्षमता है, जो उसे शाश्वत बनाता है, इसलिए गंगा को सृष्टि की प्राणधारा कहते हैं। तभी कहा गया है गंगाजलेकीटाणुवु न जायन्ते।

गंगा की महिमा के संबंध में कहा गया माहत्म्य यथार्थपरक और प्रेरक है। हर नदी सागर में मिलती है और गंगामय हो जाती है। लेकिन वर्षों से बहती गंगा ने आज तक बहुत कुछ सहा है। राष्ट्र की प्रगति में योगदान करने वाली माँ गंगा आज अपने निर्मल और अविरल अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं। जिसके लिए मानवजाति सबसे ज़्यादा उत्तरदायी है, जिसकी गलतियों का परिणाम माँ गंगा को सहन करना पड़ रहा है। पापकों का प्रक्षालन करने वाली गंगा को बचाना आज हम सभी का परम कर्तव्य होना चाहिए, क्योकि गंगा ही भगवान के परम चरणों तक पहुंचाती है, परम तत्व का बोध कराती है, मोक्ष दिलाती है।

इसलिए गंगा को केवल एक सामान्य नदी मानकर उसकी उपेक्षा करना हानिकारक होगा। उल्लेखनीय है कि नदियां पेयजल का प्रमुख स्रोत हैं, जिनमें कई शहरों का बिना शोधन किया हुआ गंदा पानी छोड़ा जाता है। आदिकाल से जीवनदायी रही ये नदियां पूजी तो जाती है, लेकिन प्रदूषण मुक्त नहीं की जाती है। मातृभाव दिखाया जाता है, किंतु संतान के दायित्व से उपेक्षा की जाती है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर जनता को ‘मेरा क्या, मुझे क्या ?' जैसी स्वार्थपूर्ण परिपाटी को त्यागने की सलाह दी। यह अनुग्रह नदियों, विशेषकर गंगा पर भी लागू होता है।

गंगा पुण्यजलां प्राप्य त्रयोदश विवर्जयेत। शौचमाचनं सेकं निर्माल्यं मलघर्षणम्॥

गात्रसंवाहनं क्रीडां प्रतिग्रहमयोरतिम्। अन्यतीर्थरतिंचैवः अन्यतीर्थप्रशंसनम् ॥

वस्त्रत्यागमथाघातं सन्तारंच विशेषतः॥

ब्रह्मपुराण के इस श्लोक में, उन मानवीय कार्यों को सूचीबद्ध किया गया है, जो गंगा में निषिद्ध होना चाहिए। इन निषिद्ध कार्यों में शामिल हैं, मलमूत्र आदि का त्याग, मुखप्रक्षालन, पूजा के फूल प्रवाहित करना, शरीर की गंदगी और मैल धोना, जलक्रीड़ा, दानग्रहण, अन्य तीर्थ प्रशंसा, वस्त्र त्याग या कपडे धोना, गंदे शरीर के साथ गंगाजल में प्रवेश करना, झूठ बोलना और कुदृष्टि। ये सभी गंगा स्नान के समय वर्जनीय अर्थात मना हैं।

हालांकि, इन वर्षों में इन क्रियाकलापों में काफी कमी आई है और उन चीजों को करना बंद कर दिया गया है जो नदी के लिए अत्यधिक हानिकारक थीं। गंगा जैसी नदी जो कई राज्यों से होकर गुजरती है, उसे साफ करना एक बहुत बड़ा कार्य है, लेकिन इससे भी बड़ा कार्य है उसकी "अविरलता" (प्रवाह) और "निर्मलता" (स्वच्छता) को बनाए रखना है। इसे साफ रखना कोई एक बार में पूर्ण किए जाने वाला कार्य नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है जिसे आने वाली पीढ़ियों को भी पूरी ज़िम्मेदारी से करना होगा।

नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत इसी तरह की सोच को विकसित करते हुये कुछ नीतिगत निर्णय एवं परियोजनाओं पर कार्य किया जा रहा है। इन परियोजनाओं में युवाओं और विद्यार्थियों को प्रमुखता से शामिल किया जा रहा है, क्योंकि किसी भी अभियान की सफलता में जनभागीदारी एक महत्वपूर्ण पहलू होता है। जिसमें जनता के साथ-साथ युवाओं की भागीदारी को प्रमुखता दी जा रही है, और वे इस काम से सीधा जुड़ाव महसूस कर रहे हैं।

राष्ट्रीय गंगा स्वछता मिशन गंगा को "अविरल" और "निर्मल" बनाने एवं जनता में इसके प्रति चेतना पैदा करने के उद्देश्य से 'गंगा उत्सव' का वर्चुअल आयोजन कर रहा है। प्रत्येक वर्ष 4 नवंबर को मनाए जाने वाले इस दिवस पर ही माँ गंगा को एक राष्ट्रीय नदी की पहचान दी गई थी। इस वर्ष के आयोजन का मुख्य फोकस पारिस्थितिकी और पर्यावरण के संरक्षण पर है। जिसके अंतर्गत विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से विशेष रूप से युवाओं और बच्चों के भीतर जागरूकता पैदा कर इस राष्ट्रीय नदी के कायाकल्प में सबको भागीदार बनाना है।

राजीव रंजन मिश्रा, वर्तमान में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) के महानिदेशक के रूप में कार्यरत हैं। वह राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के प्रभारी भी हैं। उन्होंने भारत सरकार के साथ कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है, जिसमें नदी बेसिन प्रबंधन, सिंचाई, पर्यावरण, जल और स्वच्छता, आवास, और शहरी विकास जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में कार्य करने का इनके पास समृद्ध अनुभव है।


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