One Year of Lockdown : वाराणसी में सेलफोन मेें सिमटा था दूध-सब्जी से लेकर राशन दवा तक का बाजार
पिछले साल दो दिन के Janata curfew और उसके बाद 15-15 दिन के लिए आम जनमानस को कोरोना महामारी से बचाने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में टोले-मोहल्ले के दुकानदारों ने जो फर्ज निभाया वह वाकई काबिले तारीफ था।
वाराणसी, जेएनएन। पिछले साल दो दिन के Janata curfewऔर उसके बाद 15-15 दिन के लिए आम जनमानस को कोरोना महामारी से बचाने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में टोले-मोहल्ले के दुकानदारों ने जो फर्ज निभाया वह वाकई काबिले तारीफ था।
कालोनी के दुकानदारों ने निभाया सच्चे पड़ोसी का फर्ज
लॉकडाउन के दौरान कालोनी के दुकानदारों ने सच्चे पड़ोसी का फर्ज अदा किया। पहले जो लोग खरीदारी के लिए डिपार्टमेंटल स्टोर और बिग बाजार में जाते थे। वह लॉकडाउन में पड़ोसी की दुकानों पर फोन करते और उनके जरूरत का सारा सामना उनके घर पहुंच जाता था। कालोनी के दुकानदारों ने अपने आसपास अपना नंबर दे दिया था। जब भी किसी को किसी सामान की आवश्यकता पड़ती पड़ोस के दुकानदार उनकी सेवा के लिए तत्पर रहते थे।
दवा की दुकान भी हो गई थी ऑनलाइन
लॉकडाउन में राशन और अन्य जरूरत के सामान उपलब्ध होने के बाद लोगों को दवा की ङ्क्षचता होनी शुरू हो गई। दवा दुकानदारों ने जिला प्रशासन की अनुमति से घर-घर दवाइयों का इंतजाम किया। हर क्षेत्र के दुकानदारों ने अपने फोन नंबर जारी किए। घर से ही ग्राहक फोन करते और दवा दुकानदार उनके घर दवा पहुंचा देते।
सब्जी और दूध के भी हो रहे थे आर्डर
पिछले साल लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा चिंता लोगों को सब्जी और दूध की थी। स्थानीय सब्जी और दूध विक्रेताओं ने जिला प्रशासन से अनुमति लेकर लोगों के घर-घर सब्जी और दूध पहुंचाया। घर-घर में सब्जी और दूध वालों के नंबर थे। एक फोन काल पर सुबह हो या शाम दूध और सब्जी घर पर उपलब्ध हो गई थी।
कोरोना काल में दिखा पुलिस का बदला अंदाज
कोरोना काल में जब लोग खौफ और दहशत के साये में जी रहे थे, तब 'खाकी ने उनकी हिम्मत बढ़ाई। भूखों को खाना खिलाया। चौबीस घंटे सड़कों पर मुस्तैद रही। अपनी जान की परवाह किए बगैर कोरोना संक्रमितों को अस्पताल पहुंचाया।
पुलिस ने एहतियातन घरों में बंद होकर रह रहे लोगों को खाने-पीने का सामान उपलब्ध कराया। हालांकि लोगों की सहूलियत के लिए पुलिस ने इन दिनों सख्ती भी दिखाई। बेवजह घरों से निकले लोगों को पुलिसिया अंदाज में सबक भी सिखाया। कहीं लाउडस्पीकर पर अनाउंसमेंट कर जागरूक किया तो कहीं लापरवाह हो टहल रहे लोगों को रोककर उठक-बैठक करवा उनकी गलती का अहसास भी कराया।
कोरोना काल में लॉकडाउन हुआ तो जिले की पुलिस की भूमिका एकदम नए रूपों में सामने आई। बाजार बंद और सड़कें सुनसान हो चुकी थीं। कहीं कोई कोरोना पॉजिटिव निकल जाता तो आसपास के लोग सहम जाते। संक्रमण क्षेत्रों में बेरिकेड लगने से लोग घरों में लगभग कैद-से हो गए थे। ऐसे हालात में पुलिस मददगार बनकर सामने आई। लॉकडाउन के दौरान राहगीरों को फल वितरित किए, भूखों को खाना खिलवाया। कोरोना से लोगों को बचाने के लिए पुलिस ने कड़ा रुख भी अपनाया। सड़कों पर बेवजह घूमने वालों पर लाठियां भी फटकारीं। उन्हें घरों में सुरक्षित रहने के लिए मजबूर किया। चेकिंग अभियान चलाकर वाहनों से घूमने वालों के चालान काटे। जो भी वाहन सामने आया, पुलिस ने उसे रोक दिया। घर के बाहर घूमने का कोई ठोस जवाब नहीं देने पर ऐसे वाहन चालकों के खिलाफ कार्रवाई की। लोगों में पुलिस का खौफ साफ नजर आया।