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सूर्य ग्रहण पर बोले ज्‍योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी - 'वाराणसी में दिखे न दिखे, प्रभावित तो करता ही है ग्रहण'

विश्व पटल पर 2021 संवत् 2078 में लगने वाले चार ग्रहणों में से दूसरा ग्रहण ज्येष्ठ अमावस्या तद्ननुसार दस जून को वृष राशि पर लग गया। भारतीय मानक समयानुसार ग्रहण का आरंभ दोपहर 1.43 बजे हुआ। कंकणाकृति सूर्य ग्रहण का मोक्ष 6.42 बजे होगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 10 Jun 2021 02:20 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jun 2021 05:47 PM (IST)
सूर्य ग्रहण पर बोले ज्‍योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी - 'वाराणसी में दिखे न दिखे, प्रभावित तो करता ही है ग्रहण'
ग्रहण का आरंभ दोपहर 1.43 बजे हुआ। कंकणाकृति सूर्य ग्रहण का मोक्ष 6.42 बजे होगा।

वाराणसी [प्रमोद यादव]। विश्व पटल पर 2021 संवत् 2078 में लगने वाले चार ग्रहणों में से दूसरा ग्रहण ज्येष्ठ अमावस्या तद्ननुसार दस जून को वृष राशि पर लग गया। भारतीय मानक समयानुसार ग्रहण का आरंभ दोपहर 1.43 बजे हुआ। कंकणाकृति सूर्य ग्रहण का मोक्ष 6.42 बजे होगा। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार यह ग्रहण उत्तरीय अमेरिका के पूर्वी भाग उत्तरीश एशिया और उत्तरी अटलांटिक महासागर में ही दृश्यमान है।

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चालू साल में चार ग्रहण : दरअसल, 2021 में चार ग्रहण लगने हैं। इनमें दो सूर्य ग्रहण व दो चंद्र ग्रहण हैं। इनमें दोनों चंद्र ग्रहण ही भारत में दृश्य हैं। पहला ग्रहण 26 मई को था जो भारत में द़ृश्य हुआ। ज्ञातव्य है कि ग्रहण के दो पक्ष होते है। चूंकि यह एक खगोलीय घटना होती है, इसमें प्रथम पक्ष धार्मिक तो दूसरा वैज्ञानिक होता है। धार्मिक पक्ष के अनुसार ग्रहण जहां पर दिखता है उसका प्रभाव वहीं होता है। धार्मिक कृत्य यथा सूतक स्नानादि की मान्यता होती है। वहीं वैज्ञानिक पक्ष ग्रहण को खगोलीय घटना मानता है। इसका धरतीवासियों पर प्रभाव देखने को मिलता है।

पखवारे भर में दो ग्रहण और शनि जयंती का योग : ग्रहण तब विशष हो जाता है जब एक पखवारे में इसका योग बन जाता है। अभी पूर्णिमा के बाद अमावस्या को फिर ग्रहण लगा है। धरतीवासियों के लिए ग्रहण का प्रभाव कुछ न कुछ अशुभ या शुभ देखने को मिल सकता है। इस बार ग्रहण में खास यह है कि दिवस विशेष यानी ज्येष्ठ अमावस्या को न्याय के देवता सूर्य पुत्र व यमराज के बड़े भाई शनि देव की जयंती मनाई जा रही है। एेसे में इस बार धरती पर सूर्य ग्रहण के साथ शनि जयंती भी एक साथ है और इस समय आकाश मंडल में शनि की चाल 21 मई से श्रवण नक्षत्र पर वक्रीय है जो दस अक्टूबर तक आकाश मंडल में वक्र गति से संचरण करते रहेंगे।

देखा जाए तो नौ ग्रहों में शनि का प्रमुख स्थान है। इन्हें जनतंत्र का कारक सेवक व न्याय तंत्र पर पूरा प्रभाव रखने वाले ग्रह की मान्यता है। बारहों राशियों में से इन राशियों धनु, मकर, कुंभ पर साढ़े साती और दो राशियों पर ढइया, एक राशि पर सातवीं दृष्टि होती है। सब मिलाकर बारहों राशियों में से छह राशियों पर शनिदेव का प्रभाव गोचर में सदैव रहता है। ज्योतिष में शनि ग्रह को पाप ग्रह के रूप में जाना जाता है। धरती पर सबसे अधिक प्रभुत्व रखने वाले ग्रहों में इनका स्थान सर्वोपरि है।

देश को चतुर्दिक मिलेगी मजबूती : भारत की कुंडली वृषभ लग्न कर्क राशि की है। गोचर में शनि की दृष्टि कर्क राशि पर पड़ रही है तो वृषभ लग्न के लिए शनि राजयोग कारी होता है। वहीं चीन की राशि मकर है। मकर राशि में ही शनिदेव की टेढ़ी चाल वक्रीय है। अर्थात विश्वपटल पर भारत की स्थिति वर्तमान समय में तेजी से चतुर्दिक मजबूत होगी और चीन सहित पाकिस्तान आदि की स्थित भारत के सामने कमजोर होती नजर आएगी। वर्तमान समय में वैश्विक पटल पर भारत में राजनैतिक उठापटक दिख सकती है तो सरकार एवं नौकरशाहों में तनातनी का माहौल दिख सकता है।

शनि दोष समाधान : वहीं बारह राशियों में धनु, मकर, कुंभ पर शनि की साढृे साती तो तुला-मिथुन राशि पर शनि की ढइया चल रही है। जिन लोगों की कुंडली में शनि की महादशा अंतर्दशा, प्रत्यंतरदशा या गोचर में शनि अशुभ स्थिति में बैठा हो या मार्केस चल रहा हो या किसी भी प्रकार से शनि पीड़ित कर रहा हो तो यह लोग शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय कर पीड़ा कम कर सकते हैं। इसके लिए शनि जयंती पर तेल से अभिषेक, तेल स्नान, छाया दान, लोहे का तावा, चिमटा, कल्छुल आदि वस्तुआ का दान किया जा सकता है। सुंदरकांड का पाठ, शनि मंत्र, शनि स्त्रोत का पाठ या जप से शनि पीड़ा शांत होती है।


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